Sunday, December 30, 2018

Shiv Tandav Stotram lyrics in Hindi with meaning- शिव तांडव स्तोत्र

Shiva tandav stotram
Lord Shiva

Shri Shiv Tandav Stotram is one of the most popular hymn (mantra) of lord Shiva. When Ravana wanted to take the whole Kailash with him to his kingdom Lanka, Lord Shiva pressed whole mountain with his left thumb and Ravana (रावण) got trapped under the mountain Kailasha. So, to please lord Shiva, he orated the Tandav Stotra and Shiva pleased on him. Lyrics of Tandav Stotram is as written down in hindi and then english.

NOTE: There are two version of Shiva Tandava- one with 15 shlokas and another with 17 shlokas. Shloka 14 and 15 are not used by some people. Here, 17 Shlokas arewritten. If you want to read Tandava Stotra with 15 Shlokas then please skip Shloka no. 14 and no. 15.

Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi and english (with meaning)-

।। अथ श्री शिव तांडव स्तोत्रम ।।

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले।
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम् ।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्निनाद वड्-डमर्वयं।
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।

 उनके बालों से बहने वाले जल से जिनका कंठ पवित्र है, जिनके गले में सांप एक माला की तरह लटका हुआ है और जिनके डमरू से डमड-डमड का नाद हो रहा है, शिव प्रचंड तांडव कर रहे हैं, वे हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

जटा कटाहसंभ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी।
विलोलवीचि वल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्ललाट पट्ट्पावके।
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिःक्षणम् मम।।२।।

गंगा की धारा से युक्त जिनकी लम्बी जटाएं [चक्कर में, round and round] घूम रही है, उनके बालों की लटें [गंगा की] लहरों की भांति लहरा रही हैं, जिनका मस्तक दीप्तिमान है जिस पर धगद-धगद की आवाज करती हुई अग्नि [तीसरा नेत्र] विराजित है, जिस [मस्तक] के शिखर पर अर्धचंद्र सुशोभित है, ऐसे शिव का तांडव प्रति क्षण मेरे मन में आनंद उत्पन्न कर रहा है।

धराधरेन्द्र नंदिनी विलासबन्धु वन्धु-
रस्फुरद्-दिगन्त संतति प्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्ष-धोरणी निरुद्ध-दुर्धरापदि।
क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि।।३।।

 पर्वतराज (हिमालय) की पुत्री (पार्वती) जिनकी अर्धांगिनी हैं, जिस तांडव से सारा संसार कांपने लगता है उसकी सूक्ष्म तरंगें मेरे मन में सुख की लहरें उत्पन्न कर रही हैं, वे शिव जिनके कटाक्ष [तिरछी नजर] से बड़ी-बड़ी आपदाएं भी टल जाती हैं, जो दिगंबर हैं, मेरा मन उन ध्यान में आनंद प्राप्त करे।

जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुंम-द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे।
मनो विनोदमद्-भुतं विंभर्तुभूत-भर्तरि।।४।।

 जिनकी जटा पर लाल-भूरे सर्प अपना मणियों से चमकता फन फैलाये हुए बैठे हैं जो सभी की देवियों के चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जिनका ऊपरी वस्त्र मंद पवन में मदमस्त हाथी के चर्म (skin) की भांति हिल रहा है, जो सभी जीवों के रक्षक हैं मेरा मन उनके इस तांडव से पुलकित हो रहा है।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः।
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः।।५।।

 जो नाचते हुए अपने पैरों की धूल से सहस्र लोचन (जिनके हजार नेत्र हैं अर्थात इंद्र) आदि देवताओं पर कृपा करते हैं, धरती पर नाचने से जिनके पैर भूरे रंग के हो गए है, जिनकी जटा सर्पराज की माला से बंधी है, चकोर पक्षी के मित्र चन्द्रमा जिनके मस्तक पर शोभित हैं, वे हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

ललाट चत्वरज्व-लद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं।
महा कपालि संपदे शिरोजटालमस्तु नः।।६।।

जिनके ललाट पर अग्नि की चिंगारी जल रही है और अपनी दीप्ति फैला रही है, इस अग्नि ने कामदेव के पांच तीरों को नष्ट कर कामदेव को भस्म कर दिया था, जो अर्ध चंद्र से सुशोभित हैं उनकी जटाओं में स्थित सम्पदा हमें प्राप्त हो।

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्जवलद्ध-
नंजया धरीकृत प्रचण्डपंचसायके।
धराधरेन्द्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।

 उनके  कराल (डरावने) मस्तक के तल पर धगद-धगद की ध्वनि करती हुई अग्नि जल रही है जिसने पांच तीर वाले (कामदेव) को नष्ट कर दिया था, तांडव की कदमताल से धरती (जो कि पर्वत पुत्री पार्वती का अंश है) के वक्ष पर सजावटी रेखाएं खिंच गयी हैं, मेरा मन त्रिनेत्रधारी शिव के इस तांडव से अत्यंत प्रसन्न है।

नवीनमेघ मंडली निरुद्ध-दुर्धरस्फुरत्कुहु-
निशीथनीतमः प्रबद्धबद्ध कन्धरः।
निलिम्पनिर्झरी धरस्तनोतु-कृत्ति-सिन्धुरः।
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः।।८।।

महान तांडव के स्पंदन (धड़क) से शिव की गर्दन बादलों की परतों से ढकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है, हे गंगा को धारण करने वाले, हे गजचर्म पहनने वाले, हे अर्धचंद्रधारी, हे सारे संसार का भार उठाने वाले शिव! हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

प्रफुल्ल नील पंकज-प्रपंचकालिमप्रभा ।
विडंबि कंठकंधरारुचि प्रबन्धकंधरम्।
रमच्च्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं।
गजच्छिदान्ध कच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे।।९।।

ब्रह्माण्ड की काली चमक (हलाहल विष) उनके गले में नीले कमल की तरह प्रतीत हो रहा है और करधनी की भाँती प्रतीत हो रहा है जिसे उन्होंने स्वयं रोक रखा है, जिन्होंने स्मर (कामदेव) और त्रिपुरासुर का अंत किया, जो सांसारिक बंधनों को नष्ट करते हैं, जिन्होंने दक्ष, अंधकासुर और गजासुर को विदीर्ण किया और यम को पराजित किया था मैं उन शिव की पूजा करता हूँ।

अखर्व(अगर्व) सर्वमंगला कलाकदंबमञ्जरी।
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं।
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।१०।।

वे सभी की सम्पन्नता के लिए कभी न कम होने वाले मंगल का भण्डार हैं, वे सभी कलाओं के स्रोत हैं, कदम्ब के फूलों से आने वाली शहद की सुगंध के कारण उनके चारों ओर मधुमक्खियां घूमती रहती हैं, जिन्होंने स्मर (कामदेव) और त्रिपुरासुर को नष्ट किया, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त करते हैं, जिन्होंने दक्ष, अंधकासुर और गजासुर का अंत किया और यम को पराजित किया था मैं उन शिव की पूजा करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फु-
रद्-धगद्-धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन्मृदंग-तुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंड ताण्डवः शिवः।।११।।

उनकी भौहें आगे-पीछे गति कर रही हैं जो तीनों लोकों पर उनके स्वामित्व को दर्शाती हैं, उनकी गर्दन पर फुफकार मारते हुए सांप लोट रहे हैं, उनके मस्तक पर डरावनी तीसरी आँख यज्ञ की अग्नि की भाँति धड़क रही है, मृदंगों से लगातार धिमिध-धिमिध की ध्वनि हो रही है और इस ध्वनि पर शिव तांडव कर रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्र-
जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्।१२।।

 मैं आरामदायक बिस्तर और कठोर भूमि का स्पर्श में समानता कब देखूंगा? मैं मोतियों के हार और साँपों के हार को समान रूप से कब देखूंगा? मैं मित्र और शत्रु में एकरूपता कब देखूंगा? मैं कब सुन्दरता और कुरूपता को सामान दृष्टि से कब देखूंगा? मैं कब सम्राट और सामान्य लोगों को एकरूपता से देखूंगा? मैं दृष्टि और आचरण की समानता से सदाशिव की पूजा कब करूँगा?

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्।
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः।
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।

मैं कब मन के पापयुक्त स्वभाव से मुक्त होकर गंगा के किनारे घने जंगलों की गुफाओं में दोनों हाथों को सर पर रखकर शिव की तपस्या में लीन रहूँगा? मैं कब नेत्रों के भटकाव (काम भावना) से मुक्त होकर माथे पर तिलक लगाकर शिव की पूजा करूँगा? मैं कब शिव के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए सुखी होऊंगा?

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं-महनिशं।
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः।।१४।।

 देवांगनाओं के सिर में गुंथे कदम्ब के पुष्पों की मालाओं के झड़ते सुगन्धित पराग से मनोहर, शोभा के धाम महादेव के अंगों की सुंदरता आनंदयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सदा बढ़ाती रहे।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी।
महाष्टसिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः।
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्।।१५।।

बड़वानल (समुद्र की अग्नि) की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों और चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गयी मंगल ध्वनि सब पर मन्त्रों में श्रेष्ठ शिव मन्त्र से परिपूर्ण होकर हम सांसारिक दुखों को नष्ट कर विजय पाएं।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं।
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिम्।
विमोहनं हि देहनाम् तु शंकरस्य चिन्तनम।।१६।।

पवित्र मन से शिव का मनन (चिंतन) करके इस महान से भी महानतम स्तव ( स्तोत्र ) का जो भी नित्य अखंड पाठ करता है, गुरु शिव उस की ओर गति करते हैं, उस शिव की भक्ति प्राप्त होती है, इस भक्ति को पाने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है, शिव के मनन से ऐसे व्यक्ति का मोह नष्ट हो जाता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं।
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां।
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः।।१७।।

शम्भू (शिव) की पूजा की समाप्ति के समय शाम को जो दशानन रावण के इस स्तोत्र (छंद) का पाठ करते हैं, जो इस पूजा में दृढ़ रहते हैं वे हाथी घोड़ों के रथ पर चलते हैं (सम्पन्नता दर्शाने के लिए. देवी लक्ष्मी की कृपा उन पर बनी रहती है, श्री शम्भू उन पर वरदान बनाये रखते हैं।

।। इति रावण रचितं शिव तांडव स्तोत्रं सम्पूर्णम।।

Monday, December 24, 2018

भैरो बाबा की आरती Bhairo Baba ki Arti, सुनो जी भैरव लाडले

bhairo baba ki arti
bhaairo baba

भैरो बाबा की आरती (Bhairav Baba ki aarti)

सुनो जी भैरव लाडले, कर जोड़ कर विनती करूँ
कृपा तुम्हारी चाहिए , में ध्यान तुम्हारा ही धरूँ

मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन सुन लीजिए
मैं हूँ मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो कीजिए

महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ
सुनो जी भैरव लाडले...

करते सवारी श्वानकी, चारों दिशा में राज्य है
जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं |
हथियार है जो आपके, उनका क्या वर्णन करूँ
सुनो जी भैरो लाडले...

माताजी के सामने तुम, नृत्य भी करते हो सदा
गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा
एक सांकली है आपकी तारीफ़ उसकी क्या करूँ
सुनो जी भैरो लाडले...

बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है
आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है
श्री प्रेतराज सरकारके, मैं शीश चरणों मैं धरूँ
सुनो जी भैरव लाडले...

निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें
सर पर तुम्हारे हाथ रखकर आशीर्वाद देती रहे

कर जोड़ कर विनती करूँ अरुशीश चरणों में धरूँ
सुनो जी भैरव लाड़ले, कर जोड़ कर विनती करूँ

Bhairav Ji Ki Aarti (bhairo baba aarti)-


Suno ji bhairav ladle kar jod kar vinti karun,
Kripa tumhari chahiye, mein dhyaan tumhara hi dharun,

Mein charan choota aapke, arji meri sun leejiye,
mein hun mati ka mand, meri kuch madad to keejiye,

mahima tumhari bahut, kuch thodi si me barnan karun,
suno ji bhairo ladle...

karte sawari shwaan ki, chaaron disha me rajya hai,
jitne bhoot or pret, sabke aap hi sartaaj hai,
hatiyaar hai jo aapke, unka mein kya warnan karun,
suno ji bhairo ladle...

mataji ke saamne tum, nritya bhi karte ho sada,
ga ga ke gun anuvaad se, unko rijhaate ho sada,
ek saankali hai aapki, taarif uski kya karun,
suno ji bhairav ladle...

bahut si mahima tumhari, mehndipur sarnaam hai,
aate jagat ke yaatri bajrang ka sthaan hai,
shree pretraj sarkar ke, me shees charno me dharun,
suno ji bhairav ladle...

Nishdin tumhare khel se, mata ji khush  hoti rahen,
sir per tumhare haath rakhkar asheerwad deti rahein,
kar jor kar vinti karun aru sheesh charno me dharun,
suno ji bhairav laadle, kar jod kar vinti karun.

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