Saturday, August 29, 2020

Ganga Stotram Lyrics in Sanskrit with Hindi Meaning

Maa ganga

 Ganga Stotram lyrics in Hindi-

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तवपदकमले।1। 

हे देवों की देवी भगवती गंगा! तुम तीनों लोकों को तारने वाली हो, तुम तरल लहरों से युक्त हो, हे शंकर के शीश पर विहार करने वाली विमला (जो पूर्ण रूप से स्वच्छ हो), मेरी भक्ति सदा तुम्हारे चरणों में स्थापित रहे।।

भागिरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानं ।2। 

हे भागीरथी, सुखदायिनी, माँ! तुम्हारे जल की महिमा ग्रंथों में प्रशस्त है, मैं तुम्हारी महिमा नहीं जानता, मेरे इस अज्ञानता के बाद भी मेरी रक्षा करो।।

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्क्रतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारं ।3।

 हे गंगे! तुम श्रीहरि के चरणों से तरंग के रूप में निकली हो, तुम्हारी तरंग हिम (बर्फ), चन्द्र और हीरे के समान है, मेरे बुरे कर्मों से मेरे मन पर जो बोझ है उसे दूर करो और अपनी कृपा करके मुझे इस भवसागर से पार करो।।

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं  खलु तेन ग्रहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रुष्टुं न यमः शक्तः ।4। 

जो तुम्हारे शुद्ध जल को पीता है उसे अवश्य ही परमपद की प्राप्ति होती है, हे माता गंगे! जो तुम्हारा भक्त होता है उस पर यम भी नजर नहीं डाल पाता है ।।

पतितोद्धारिणी जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।5।

हे जाह्नवी गंगे! तुम पतितों का उद्धार करती हो, तुम हिमालय (गिरिवर) को काटकर उसे सुन्दर बनाती हो, हे भीष्म को उत्पन्न करने वाली मुनि कन्या (जाह्नु ऋषि की कन्या), तुम पतितों की रक्षा करती हो और तीनों लोकों को समृद्ध करती हो।।

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ।6।

तुम कल्पलता की भाँति विश्व को फल प्रदान करती हो, जो तुम्हें प्रणाम करता है वह कभी शोक में नहीं गिरता है, तुम समुद्र में इस प्रकार विहारती (मिल जाती) हो जिस प्रकार कोई अविवाहित कन्या तिरछी नजरें करके अपने मार्ग से मुड़ जाती है।।

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोSपि न जातः।
नरकनिवारिणि जाहनवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ।7।

 हे माता! जो तुम्हारे तुम्हारे शुद्ध जल की धार में एक बार स्नान कर लेता है, वह दूसरी बार किसी के पेट से जन्म नहीं लेता (उसका पुनर्जन्म नहीं होता), हे जाह्नवी गंगे! तुम नरक से छुड़ाती हो, तुम अशुद्धियों का नाश करती हो, तुम्हारी महिमा ऊँची है।।

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भ्रत्यशरण्ये ।8।

अपनी पवित्र लहरों से अशुद्ध शरीर को पुनः शुद्ध करने वाली हे करुणामयी दृष्टि वाली जाह्नवी! तुम्हारी जय हो-जय हो, इंद्र के मुकुट की मणि तुम्हारे चरणों में विराजित है, तुम अपने शरणागत को सुख प्रदान करती हो, शुभ प्रदान करती हो।।

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलुं संसारे ।9।

हे भगवती! मेरे रोग, शोक, ताप (पीड़ा), पाप और मेरी कुमति को हर लो, तीनों लोकों की समृद्धि हो, पृथ्वी का हार हो और मेरा आश्रय हो।।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातर्वन्दये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ।10।

हे अलकनंदा! हे परमानंद स्वरूपिणी! हे दीन-दुखियों से वन्दित करुणामयी देवी! मेरी विनती सुनो, जो तुम्हारे किनारों पर निवास करता है वह मानो वैकुण्ठ में निवास करता है।।

 वर्मिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः।11।

 तुम्हारे निकट कछुआ, मछली, कमजोर गिरगिट या मलिन (छोटा) जीव बनकर रहना भी तुमसे दूर एक राजा बनकर रहने से अच्छा है।।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गङ्गास्तवमिमम-अमलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ।12।

हे भुवनेश्वरी! पुण्य प्रदान करने वाली, समृद्धि प्रदान करने वाली, हे जलरूपिणी (द्रवमयी) मुनि कन्या! जो इस निर्मल गंगा स्तव (गंगा स्तोत्र) का नित्य पाठ करता है, वह सच्ची सफलता प्रात करता है।।

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः।
मधुराकान्तापञ्झटिकाभिः परमानन्दकलित-ललिताभिः।13।

जिसके मन में देवी गंगा की भक्ति होती है उसे सदा मुक्ति का सुख प्राप्त होता है, यह मधुर, सुखप्रद गंगा स्तोत्र जो पझ्झटिका छंद में लिखा गया है, यह कलित(कलारहित)-ललित (सरल) परमानंद के समान है।।

गङ्गा स्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छित-फलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवक-शङ्कररचितम् पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः ।14।

यह गंगा स्तोत्र इस ब्रह्माण्ड का सार है, वांछित फलकी प्राप्ति कराने वाला है और परम शुद्ध है, शंकरसेवक (आदि शंकराचार्य) द्वारा रचित इस स्तोत्र को जो पढता है वह सुखी होता है, इस प्रकार यह स्तव [समाप्त] है।।

Benefits by Ganga Stotram:

 By reciting this hymn called Shri Ganga Stotram, one can achieve peace of his mind and get rid of the burden (in mind) of evil-deeds he/she have done in past. Reading this Stotra in the morning is assumed to be even more auspicious. May Bhagwati Ganga shower us with joy and holyness. Some people also find it favorable to chant when bathing.


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Monday, August 10, 2020

Ganesha Pancharatnam lyrics in English and Sanskrit with Meaning

Shri Ganesha

Shri Ganesha Pancharatnam Lyrics:

Mudakaraata modakam, Sadaa Vimukti Saadhakam,
Kalaa-dharaa-vatamsakam, Vilaasi Loka Rakshakam.
Anaayakaika-naayakam, Vinaashitebhadaityakam,
Nataashubhaashu naashakam namaami tam vinaayakam. 1

मुदकरात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम्
कला धरावतंसकं विलासि-लोकरक्षकम्
अनायकैक-नायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकम् नमामि तं विनायकम्।1।

Natetaraati-bheekaram Navodita-ark Bhaasvaram,
Namatsuraari nirjaram nataadhika-ap Dud-dharam.
Sureshwaram Nidheeshwaram Gajeshwaram Ganeshwaram,
Maheshwaram Tamaashraye Paraatparam Nirantaram. 2

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्क-भास्वरम्
नमत्सुरारि निर्जरम् नताधिकापदुद्धरम्
सुरेश्वरम् निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरम् तमाश्रये परात्परं निरन्तरम्।2।

Samasta-loka Shankaram Nirasta-Daitya Kunjaram,
Dare-taro-daram varam, Vare-bhavatra-maksharam.
Kripakaram Kshamakaram Mudakaram Yashaskaram,
Manaskaram Namaskritaam Namas- karomi Bhaaswaram. 3

समस्तलोकशङ्करम् निरस्तदैत्यकुञ्जरम्
दरेतरोदरम् वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरम् यशस्करम्
मनस्करं नमस्कृताम् नमस्करोमि भास्वरम्।3।

Akimchana-arti Maarjanam Chirantano-okti Bhaajanam,
Puraari Purva-nandanam, Suraarigarva-charvanam.
Prapancha-naasha Bheeshanam Dhananjayaadi-Bhushanam,
Kapola-daana vaaranam, bhaje purana-vaaranam. 4

अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनम् सुरारिगर्व चर्वणम्
प्रपञ्चनाश-भीषणम् धनञ्जयादि भूषणम्
कपोलदानवारणं भजेपुराणवारणम्।4।

Nitaanta-Kaanta-Danta-Kaanti-Manta-Kaanta-Kaatamajam,
Achintya Roopa-manta-heena-mantaraay krintanam.
Hridayantare Nirantaram Vasantamev Yoginaam,
Tameka-dantameva Tam, Vichintayaami Santatam. 5

नितान्तकान्त-दन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तराय-कृन्तनम्
हृदन्तरे निरन्तरम् वसन्तमेव योगिनाम्
तमेकदन्तमेव-तं विचिन्तयामि संततम्।5।

PhalaShruti:
MahaGanesha-Pancharatnam-aadarena Yo-anvaham,
Prajal-pati Prabhatake Hridi-smaran Ganeshwaram.
Arogataam-adoshataam Su-saasihi-teem Suputrataam,
Samaahitaa-ayurashta-bhootim-abhyu-paiti So chiraat. 

महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहम्
प्रजल्पति-प्रभातके हृदि-स्मरन् गणेश्वरं
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम्
समाहितायुर्-अष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात्।6।
 

इति श्री गणेशपंचरात्नम सम्पूर्णं

Ganesha Pancharatnam meaning in Hindi-

अर्थ- जो अपने हाथों में सदैव प्रसन्नतापूर्वक मोदक को धारण किये रहते हैं, जो सदा अपने साधकों (भक्तों) को मुक्ति प्रदान करते हैं, जिन्होंने चन्द्रमा को आभूषण के रूप में धारण किया है और जो सभी लोकों के रक्षक हैं, जो अनाथों के नाथ और गजासुर के संहारकर्ता हैं, जो तीव्र वेग से सभी अशुभों का नाश करते हैं उन विनायक को नमस्कार है. 1

जो घमंड से भरे लोगों के लिए भयंकर रूप धारण करते हैं, जो उगते हुए सूर्य की भांति चमकते हैं, जो देवों के द्वारा नमस्कृत और निर्जर (कभी वृद्ध न होने वाले) हैं, जो अपने शरणागतों की बाधाओं को दूर करते हैं, उन सुरेश्वर, निधीश्वर (समृद्धि के देव), गजेश्वर और गणेश्वर (गणों के राजा), महेश्वर की मैं शरण लेता हूँ. 2

जो सभी लोकों में शुभ हैं, जो बड़े-बड़े दैत्यों को दूर करते हैं, जिनका बड़ा उदर (पेट) समृद्धि का प्रतीक है और जिनका मुख अविनाशी प्रकृति को दर्शाता है, जो अपने भक्तों पर कृपा, क्षमा, आनंद और यश और बुद्धि की वर्षा करते हैं, उन विनायक के ओजस्वी रूप को मैं प्रणाम करता हूँ. 3

जो अपने शरणागतों की पीड़ा को दूर करते हैं, जिसकी प्राचीन काल से प्रशंसा हो रही है, जो भगवान् शिव (पुरारी) के पूर्वनन्दन (पुत्र) हैं, जो देवताओं के शत्रुओं के घमंड को चबा जाते हैं, जो प्रलय के समय प्रचंड शक्ति धारण करते हैं, जो अग्नि की शक्ति से विभूषित हैं, जिनके गालों (कपोलों) से कृपा की धारा बहती है उन आदिदेव श्री गणेश को मैं पूजता हूँ. 4

जिनका एकदन्त रूप भक्तों को प्रिय है, जो यम के संहारक (शिव) के पुत्र हैं, जिनका अनादि रूप अकल्पनीय है और जो भक्तों  के कष्टों को हर लेते हैं, जो योगियों के ह्रदय में निरंतर वास करते हैं, उन एकदन्त भगवान् का मैं ध्यान करता हूँ. 5

जो इस महागणेश पंचरत्न को भक्तिपूर्वक एवं भगवान् गणेश का ह्रदय में ध्यान करके पढ़ते हैं, उन्हें रोगों और दोषों से मुक्ति मिलती है और उन्हें गुणवान पत्नी और पुत्र की प्राप्ति होती है, वे लोग अष्ट ऐश्वर्य पाकर लम्बी आयु प्राप्त करते हैं. 6

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Wednesday, August 5, 2020

शिव रक्षा स्तोत्र- Shiva Raksha Stotram lyrics in Hindi

Lord shiva
शिव रक्षा स्तोत्र के रचयिता (Writer) याज्ञवल्क्य ऋषि हैं. भगवान नारायण ने याज्ञवल्क्य ऋषि के सपने में इस स्तोत्र का वर्णन किया था.

Shiva Raksha Stotra Lyrics in hindi-

सभी बुरी शक्तियों, रोगों, दुर्घटनाओं और दरिद्रता से रक्षा के लिए भगवान् शिव के इस रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
भगवान् शिव मृत्युंजय कहे जाते हैं, अर्थात जिसने मृत्यु को जीत लिया हो। अपने परिवार की सभी प्रकार के दुःख, दारिद्र, बीमारी और अपमृत्यु से रक्षा करने के लिए साधक को शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ (नित्य प्रतिदिन या केवल सोमवार को) करना चाहिए। यह स्तोत्र इस प्रकार है-

विनियोग-
ॐ अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमंत्रस्य याज्ञवल्क्यऋषिः, श्री सदाशिवो देवता, अनुष्टुपछन्दः श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिव रक्षा स्तोत्रजपे विनियोगः।

अर्थ- ॐ इस शिव रक्षा स्तोत्र मन्त्र के याज्ञवल्क्य ऋषि हैं श्रीसदाशिव देवता हैं अनुष्टुप छंद है, श्री सदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिव रक्षा स्तोत्र के जप का यह विनियोग है।

चरितम् देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारम् परमोदारम् चतुर्वर्गस्य साधनम् ।1।

देवों के देव महादेव का चरित (वर्णन) पवित्र-पावन है, अपार (जिसका अंत न हो) है, परम उदार है और धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष इन चारों वर्गों को सिद्ध करने वाला है।

गौरी विनायाकोपेतम् पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवम् ध्यात्वा दशभुजम् शिवरक्षां पठेन्नरः।2।

जो गौरी और विनायक के साथ हैं, त्रिनेत्रधारी और पंचमुखी शिव हैं, उन दशभुज का ध्यान करके शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

गंगाधरः शिरः पातु भालमर्धेन्दु शेखरः।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषणः ।3।

अपनी जटाओं में गंगा को धारण करने वाले मेरे मस्तक की रक्षा करें, अर्धचन्द्र धारण करने वाले मेरे माथे की रक्षा करें। कामदेव का ध्वंस (संहार) करने वाले मेरे नेत्रों की रक्षा करें, सर्प को आभूषण की तरह पहनने वाले मेरे कानों की रक्षा करें।

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शितिकन्धरः ।4।

त्रिपुरासुर का वध करने वाले मेरी नाक की रक्षा करें, जगत के स्वामी जगत्पति मेरे मुख की रक्षा करें। वाणी के देव वागीश्वर मेरी जिव्हा की और शितिकंधर ( नीले गले वाल) मेरी गर्दन की रक्षा करें।

श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।
भुजौ भूभार संहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।5।

श्री अर्थात सरस्वती जिनके कंठ में स्थित हैं वे मेरे कंठ की रक्षा करें, विश्व की धुरी को धारण करने वाले शिव मेरे कन्धों की रक्षा करें। [असुरों को मारकर] पृथ्वी के भार को कम करने वाले मेरी भुजाओं की रक्षा करें, पिनाक (धनुष) धारण करने वाले मेरे हाथों की रक्षा करें।

हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ।6।

शंकर जी मेरे ह्रदय की रक्षा करें, गिरिजापति मेरे जठर (पेट)  रक्षा करें। श्री मृत्युंजय मेरी नाभि की रक्षा करें और व्याघ्र (बाघ) के चर्म को पहनने वाले मेरी कमर की रक्षा करें।

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागत वत्सलः।
उरु महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ।7।

दीन-दुखियों और शरणागतों से प्रेम करने वाले मेरी हड्डियों  की रक्षा करें, महेश्वर मेरी जाँघों की रक्षा करें तथा जगदीश्वर मेरे घुटनों (जानुनों) की रक्षा करें।

जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ।8।

जगत के रचयिता जंघाओं की रक्षा करें, गणों के अधिपति मेरे गुल्फों (टखनों) की रक्षा करें, करुना के सागर मेरे पैरों की रक्षा करें और सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें।

एताम् शिवबलोपेताम् रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्।9।

जो सुकृती (धन्य) व्यक्ति शिवकीशक्ति से युक्त इस रक्षा [स्तोत्र] का पाठ करता है, वह सभी कामों (इच्छाओं) को भोग कर अंत में शिव से मिल जाता है (शिव के समीप हो जाता है। )

गृहभूत पिशाचाश्चाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूराद् आशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्।10।

तीनों लोकों में जितने भी ग्रह, भूत, पिशाच आदि विचरते हैं, वे सब शिव के नामों से मिली रक्षा से तत्काल दूर भाग जाते हैं।

अभयम् कर नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।11।

जो भी पार्वतीपति शिव के इस कवच को अपने कंठ में भक्ति के साथ धारण कर लेता है, तीनों लोक उसके वश में हो जाते हैं।

इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत् ।12।

श्री नारायण ने सपने में याज्ञवल्क्य ऋषि को इस शिवरक्षा [स्तोत्र] का जैसा उपदेश दिया, योगीन्द्र ने प्रातः उठकर वैसा ही इसे लिख दिया।

।इति श्री शिवरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम।

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