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Sunday, March 22, 2020

Vedokta Ratri Suktam with Meaning in Hindi


वेदोक्त रात्रि सूक्त ऋग्वेद के १०वें मंडल के १०वें अध्याय के 127वें सूक्त के अंतर्गत लिखा गया है। यह ऋग्वेद की 8 ऋचाएं हैं जिनमे रात्रि अर्थात रात की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी का स्तवन ( आराधना ) होता है। दुर्गा सप्तशती पाठ के प्रारम्भ और अंत में "वेदोक्त देवी सूक्त" के पाठ के साथ इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यहाँ इस रात्रि सूक्त का उच्चारण हिंदी अर्थ सहित दिया गया है।

अथ वेदोक्तं रात्रि सूक्तम्

विनियोग: - ॐ रात्रीत्यद्यष्टर्चस्य सूक्तस्य कुशिकः, सौभरो रात्रिर्वा भारद्वाजो ऋषिः, रात्रिर्देवता, गायत्री छन्दः, देवीमाहात्म्यपाठे विनियोगः।
 मंत्रः -
ॐ रात्रीव्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभिः। विश्वा अधि श्रियोऽधित।1।
ओर्वप्रा अमर्त्यानिवतो देव्युद्वतः। ज्योतिषा बाधते तमः ।2।

अर्थ-   महत्तत्त्वादिरूप व्यापक इन्द्रियों से सब देशों में समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करने वाली ये रात्रिरूपा देवी अपने उत्पन्न किये हुए जगत के जीवों के शुभाशुभ कर्मों को विशेष रूप से देखती हैं और उनके अनुरूप फल की व्यवस्था करने के लिए समस्त विभूतियों को धारण करती हैं।१।
ये देवी अमर हैं और सम्पूर्ण विश्व को, नीचे फैलने वाली लता आदि को तथा ऊपर बढ़ने वाले वृक्षों को भी व्याप्त करके स्थित हैं; इतना ही नहीं, ये ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञानान्धकार का नाश कर देती हैं।२।

निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती। अपेदु हासते तमः ।3।
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वयः ।4।

अर्थ-   परा चिच्छक्तिरूपा रात्रिदेवी आकर अपनी बहिन ब्रह्मविद्यामयी उषादेवी को प्रकट करती हैं, जिससे अविद्यामय अन्धकार का नाश हो जाता है।३।
ये रात्रिदेवी इस समय मुझ पर प्रसन्न हों, जिनके आनेपर हम लोग अपने घरों में सुख से सोते हैं- ठीक वैसे ही, जैसे रात्रि के समय पक्षी वृक्षों पर बनाये हुए अपने घोंसलों में सुखपूर्वक शयन करते हैं।४।

नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः। नि श्येनासश्चिदर्थिनः ।5।
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा नः सुतरा भव ।6।

अर्थ-   उस करुणामयी रात्रि देवी के अंक में सम्पूर्ण ग्रामवासी मनुष्य, पैरों से चलने वाले गाय, घोड़े आदि पशु, पंखों से उड़ने वाले पक्षी एवं पतंग आदि, किसी प्रयोजन से यात्रा करने वाले पथिक और बाज आदि भी सुखपूर्वक सोते हैं।५।
हे रात्रिमयी चिच्छक्ति! तुम कृपा करके वासनामयी वृकी तथा पापमय वृक को हमसे अलग करो। काम आदि तस्कर समुदाय को दूर हटाओ। तदनन्तर हमारे लिए सुख पूर्वक तरने योग्य हो जाओ- मोक्षदायिनी एवं कल्याणकारिणी बन जाओ।६।

उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव यातय ।7।
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे ।8।

अर्थ-   हे उषा! हे रात्रि की अधिष्ठात्री देवी ! सब और फैला हुआ यह अज्ञानमय कला अन्धकार मेरे निकट आ पहुंचा है। तुम इसे ऋण की भाँति दूर करो- जैसे धन देकर अपने भक्तों के ऋण दूर करती हो, उसी प्रकार ज्ञान देकर इस अज्ञान को भी मिटा दो।७।
हे रात्रिदेवी! तुम दूध देने वळील गौ के समान हो। मैं तुम्हारे समीप आकर स्तुति आदि से तुम्हें अपने अनुकूल करता हूँ।  परम व्योमस्वरूप परमात्मा की पुत्री! तुम्हारी कृपा से मैं काम आदि शत्रुओं को जीत चुका हूँ, तुम स्तोम की भाँती मेरे इस हविष्य को भी ग्रहण करो।८। 

।। इति श्री वेदोक्तं रात्रि सूक्तं सम्पूर्णम।।

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 रात्रि सूक्त का पाठ करने के बाद देव्यथर्वशीर्ष (देवी अथर्वशीर्ष स्तोत्र) का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है, यद्यपि सपतशती के अंग के रूप में इसका उल्लेख नहीं हुआ है तथापि यदि इसका पाठ शुभ फल देता है। इसे यहाँ पढ़ें- देव्यथर्वशीर्षम हिंदी अर्थ सहित
 
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अवश्य पढ़ें: दुर्गा सप्तशती (सभी स्तोत्र, मन्त्र)

Sunday, January 5, 2020

तन्त्रोक्तं रात्रि सूक्तम संस्कृत, हिंदी अर्थ, lyrics

तंत्रोक्त ( तांत्रिक ) रात्रि सूक्त दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में श्लोक 70 से श्लोक 90 तक दिया गया है, यह सूक्त भगवती योगमाया जो भगवान विष्णु की शक्ति हैं, की स्तुति में ब्रह्मा जी ने रचित किया था और भगवती से मधु-कैटभ को मारने के लिए भगवान् विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए विनती की थी. इस स्तोत्र का संस्कृत उच्चारण और अर्थ इस प्रकार है-

अथ तन्त्रोक्तं रात्रि सूक्तम्

ॐ विश्वेश्वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम्.
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः .1
ब्रह्मोवाच 

त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कारः स्वरात्मिका.
सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता. 2

अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषतः.
त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा. 3

त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत्.
त्वयैतत्पाल्यते देवी त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा.4

विसृष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूप च पालने.
तथा संहृतिरूपान्ते जगतोअस्य जगन्मये. 5

महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः.
महामोह च भवती महादेवी महासुरी. 6

प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी.
कालरात्रिर्महरात्रिर्मोह्रात्रिश्च दारुणा. 7

त्वं श्रीस्त्वमीश्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा.
लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शान्तिः क्षान्तिरेव च. 8

खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा.
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डपरिघायुधा. 9

सौम्या सौम्यतराशेषसौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी.
परापराणां  परमा त्वमेव परमेश्वरी. 10

यच्च किञ्चित् क्वचिद्वस्तु सदसद्वाखिलात्मिके.
तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा .11

यया त्वया जगत्स्रष्टा जगत्पात्यत्ति यो जगत्.
सोअपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः .12

विष्णुः शरीरग्रहणमहमीशान एव च.
कारितास्ते यतोअतस्वां ख स्तोतुं शक्तिमान् भवेत् .13

सा त्वमित्थं प्रभावैः स्वैरुदारैर्देवि सन्स्तुता.
मोहयैतो दुराधर्षावसुरौ मधुकैटभौ .14

प्रबोधं च जगत्स्वामी नीयतामच्युतो लघु.
बोधश्च क्रियतामस्य हन्तुमेतौ महासुरौ.15
इति रात्रिसूक्तम्

Raatri Suktam meaning in Hindi-
१. जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत को धारण करने वाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेजःस्वरुप भगवान् विष्णु की अनुपम शक्ति हैं.
२. ब्रह्माजी कहते हैं- देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा और तुम्हीं वषट्कार हो, स्वर भी तुम्हारे ही स्वरुप हैं. तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो. नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार- इन तीनों मात्राओं के रूप में तुम्हीं स्थित हो.
३. इन तीन मात्राओं के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेष रूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो, देवि! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो.
४. देवि! तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करती हो. तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती है. तुमसे ही इसका पालन होता है और सदा तुम्हीं कल्प के अंत में सबको अपना ग्रास बना लेती हो.
५. जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालन-काल में स्थितिरूपा हो तथा अल्पान्त के समय तुम संहार रूप धारण करने वाली हो.
६. तुम्ही महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो.
७. तुम्हीं तीनो गुणों को उत्पान करने वाली सबकी प्रकृति हो. भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो.
८. तुम्ही श्री, तुम्ही ईश्वरी, तुम्ही ह्रीं और तुम्ही बोधस्वरूपा बुद्धि हो. लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्ही हो.
९. तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शंख और धनुष धारण करने वाली हो. बाण, भुशुण्डी और परिघ- ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं.
१०. तुम सौम्य और सौम्यतर हो- इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य और सुन्दर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दर हो. पर और अपर- सबसे परे रहने वाली परमेश्वरी तुम्ही हो.
११. सर्वस्वरूपे देवि! कहीं भी सत-असत जो कुछ वस्तुएं हैं और उन सब की जो शक्ति है, वह तुम्ही हो. ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?
१२. जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं उन भगवान् को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता है?
१३. मुझको, भगवान्  शंकर को तथा भगवान् विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है. अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है?
१४. देवि! तुम तो अपने इन उदार भावों से ही प्रशंसित हो. ये जो दोनों दुधुर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो.
१५. जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही निद्रा से जगा दो और साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो.

इति रात्रिसूक्तम्

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Saturday, April 27, 2019

Vedoktam Devi Suktam (Durga Saptashati) lyrics in Hindi

devi bhagwati gurga
यह सूक्त ऋग्वेद के मंडल १० के सूक्त १२५ में लिखा गया है, इसे कहीं-कहीं वाकम्भरणी सूक्त भी कहा गया है,

 ऋग्वेदोक्तं देवी सूक्तम् ( हिन्दी अर्थ सहित ) -

 विनियोगः -
ॐ अहमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य वागाम्भृणी ऋषिः, सच्चित्सुखात्मकः सर्वगतः परमात्मा देवता, द्वितीयाया ऋचो जगती, शिष्टानां त्रिष्टुप् छन्दः, देविमाहात्म्यपाठे विनियोगः 

ध्यानम्  -
ॐ सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुःशराम्श्च् दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता,
आमुक्ताङ्ग्दहारकङ्क्णरणत्कान्चीरणन्नूपूरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला.

देवीसूक्तम् -

ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः।
अहं मित्रावरुणोभा विभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ।।1।।

अहं  सोममाहनसं विभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ।।2।।

अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्य्यावेशयन्तीम् ।।3।।

मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ।।4।।

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ।।5।।

अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ ।
अहं जनाय समदं क्रिणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश ।।6।।

अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे ।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ।।7।।

अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा ।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव ।।8।।

।। इति श्री ऋग्वेदोक्तं देवी सूक्तं संपूर्णम् ।। 

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 Hindi Meaning of Devi Suktam-

ध्यान- 
जो सिंह की पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है, जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, तीन नेत्रों से सुशोभित होती हैं, जिनके भिन्न भिन्न अंग बांधे हुए बाजूबंद, हार, कंकण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं तथा जिनके कानों में रत्नजड़ित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूरकरने वाली हों।

मन्त्र ( अर्थ )-

[ महर्षि अम्भृण की कन्या का नाम वाक् था, वह ब्रह्म ज्ञानिनी थी, उसने देवी के साथ अभिन्नता धारण कर ली थी, ये उसी के उद्गार ( वचन ) हैं- ] मैं सच्चिदानंदमयी सर्वात्मा देवी रूद्र, वसु, आदित्य, तथा विश्वेदेव गणों के रूप में विचरती हूँ। मैं ही मित्र और वरुण दोनों को, इंद्र और अग्नि तथा दोनों अश्विनीकुमारों को धारण करती हूँ।।१।।

मैं ही शत्रुओं के नाशक आकाशचारी देवता सोम को, त्वष्टा प्रजापति को तथा पूषा और भाग को भी धारण करती हूँ। जो हविष्य से संपन्न हो देवताओं को हविष्य की प्राप्ति कराता है, उस यजमान के लिए मैं ही उत्तम यज्ञ का फल और धन प्रदान करती हूँ।।२।।

मैं सम्पूर्ण जगत की अधीश्वरी अपने उपासकों को धन की प्राप्ति कराने वाली, साक्षात्कार करने योग्य परब्रह्म को अपने से अभिन्न रूप में जानने वाली तथा पूजनीय देवताओं में प्रधान हूँ। मैं प्रपंच रूप से अनेक भावों में स्थित हूँ। सम्पूर्ण भूतों में मेरा प्रवेश है। अनेक स्थानों में रहने वाले देवता जहां कहीं जो कुछ भी करते हैं, वह सब मेरे लिए करते हैं।।३।।

जो अन्न खाता है, वह मेरी शक्ति से ही खाता है, इसी प्रकार जो देखता है, जो सांस लेता है और जो कही हुई बात सुनता है वह मेरी ही सहायता से उन सब कर्मों को करने में समर्थ होता है। जो मुझे इस रूप में नहीं जानते, वे न जानने के कारण ही दीन दशा को प्राप्त होते जाते हैं। हे बहुश्रुत, मैं तुम्हे श्रद्धा से प्राप्त होने वाले ब्रह्मतत्व का उपदेश करती हूँ, सुनो- ।।४।।

मैं स्वयं ही देवताओं और मनुष्यों द्वारा सेवित इस दुर्लभ तत्व का वर्णन करती हूँ, मैं जिस जिस पुरुष की रक्षा करना चाहती हूँ, उस-उस को सब की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बना देती हूँ, उसी को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, परोक्षज्ञान संपन्न ऋषि तथा उत्तम मेधाशक्ति से युक्त बनाती हूँ।।५।।

मैं ही ब्रह्मद्वेषी हिंसक असुरों का वध करने के लिए रूद्र के धनुष को चढाती हूँ। मैं ही शरणागत जनों की रक्षा के लिए शत्रुओं से युद्ध करती हूँ तथा अन्तर्यामी रूप से पृथ्वी और आकाश के भीतर व्याप्त रहती हूँ।।६।।

मैं ही इस जगत के पिता रूप आकाश को सर्वाधिष्ठान स्वरुप परमात्मा के रुप में उत्पन्न करती हूँ। समुद्र में तथा जल में मेरे कारण चैतन्य ब्रह्म की स्थिति है, अतएव ( इसी कारण से ) मैं समस्त भुवन में व्याप्त रहती हूँ तथा उस स्वर्गलोक का भी अपने शरीर से स्पर्श करती हूँ।।७।।

मैं कारण रूप से जब समस्त विश्व की रचना आरम्भ करती हूँ तब दूसरों की प्रेरणा के बिना स्वयं ही वायु के भाँति चलती हूँ, स्वेच्छा से ही कर्म में प्रवृत्त होती हूँ, मैं पृथ्वी और आकाश दोनों से परे हूँ, अपनी महिमा से ही मैं ऐसी हुई हूँ।।८।।

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Wednesday, July 4, 2018

Shri Kanakadhara Stotram lyrics in Hindi | Sanskrit

Kanakadhara stotram lyrics
Goddess Lakshmi
कनकधारा स्तोत्रम - अङ्गम हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती-
kanakadhara stotram lyrics in hindi sanskrit-

It is believed that Adi Shankaracahrya composed this hymn Sri Kanakdhara stotram to praise Godess Lakshmi and to shower wealth in home of a poor lady who gave him olive (amla fruit) as Bhiksha. Kanak means gold and Dhara means stream.

This incident happened on Akshay Tritiyaa. Adi Sankara was in the age of 8 years.
Best day for initiating this mantra: Friday or any Full Moon day.

अङ्गम हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती,
भृङ्गाङ्गगनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला,
मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवतायाः ।।१।।

जैसे भँवरे अधखिले पुष्पों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेते हैं , उसी प्रकार जो भगवान् विष्णु के अंगों पर सदैव पड़ती रहती है, जिसमें सभी ऐश्वर्यों का निवास है, सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री भगवती देवी महालक्ष्मी की वह कृपादृष्टि दृष्टि मुझ पर मंगलदायी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वडने मुरारेः,
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या,
सा में श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ।।२।।

जैसे भ्रमरी (भँवरे) कमल के पत्तों पर मंडराते रहती हैं, उसी प्रकार जो भगवान हरि के मुखारविंद की ओर प्रेमपूर्वक जाकर लज्जा के कारण लौट आती है, समुद्र कन्या देवी लक्ष्मी की वह मनोहर दृष्टि मुझे धन-संपत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्,
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ।।३।।

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जो सम्पूर्ण देवताओं के राजा इंद्र के पद का वैभव विलास देने में समर्थ हैं, श्री भगवान् हरि को  आनंदित करने वाली हैं तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर दिखाई पड़ती हैं उन देवी लक्ष्मी के अधखुले नेत्रों की क्षण भर के लिए मुझ पर भी अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम-
आनदकंदमनिमेषमनङ्ग-तन्त्रम ।
आकेकरस्थितकनीनि-कपक्ष्मनेत्रं,
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ।।४।।

जिसकी पुतली एवं भौंहें काम के वशीभूत हो अर्ध विकसित एकटक नयनों को देखने वाले आनंदकंद सच्चिदानंद भगवान मुकुन्द को अपने सन्निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती है। ऐसे शेषशायी भगवान विष्णु की अर्द्धंगिनी श्री लक्ष्मी जी के नेत्र हमें प्रभूत धन-संपत्ति प्रदान करने वाले हों।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या,
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला,
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ।।५।।

जिन श्री हरि के कौस्तुभमणि से वशीभूत वक्षस्थल में इन्द्रनीलमय हारावली के समान सुशोभित होती है तथा उन भगवान के भी चित्त मे काम अर्थात स्नेह फैलाने वाली कमलवासिनी देवी लक्ष्मी की कटाक्ष माला मेरा मंगल करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर-
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर-
भद्राणि में दिशतु भार्गवनन्दनायाः ।।६।।

जिस प्रकार मेघों की घनघोर घटा में बिजली चमकती है उसी प्रकार कैटभ दैत्य के शत्रु भी विष्णु भगवान के काले मेघों के समान मनोहर वक्ष:स्थल पर आप विद्युत के समान देदीप्यमान होती हैं तथा जो समस्त लोकों की माता, भार्गव-पुत्री भगवती श्री लक्ष्मी की पूजनीयामूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्,
मांगल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ||७||


समुद्रकन्या लक्ष्मी का वह मंदालस, मंथर, अर्धोंन्मीलित चंचल दृष्टि के प्रभाव से कामदेव ने मंगलमूर्ति भगवान मधुसूदन के हृदय में प्राथमिक (मुख्य) स्थान प्राप्त किया था। वही दृष्टि यहां मेरे ऊपर पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम
अस्मिन्नकिंचनविहङ्गशिशौ  विषण्णे |
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नरायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ||८||

भगवान नारायण की प्रेमिका लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ, दाय रूपी अनुकूल वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को दीर्घकाल के लिए परे हटाकर विषादग्रस्त मुझ दीन-दुखी सदृश्य जातक पर धनरुपी जलधारा की वर्षा करे।

इष्टा विशिष्ट्मतयोऽपि यया दर्याद्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते |
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ||९||

विलक्षण मतिमान मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी कृपा दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को अनायास ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं कमलासना कमला लक्ष्मी की वह विकसित कमल गर्भ के सदृश्य कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोSभिलाषित पुष्टि-सन्तत्यादि वृद्धि प्रदान करें।

गीर्देवतेति गरुणध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्ल्भेति।
 सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्मै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै।।१०।।

जो भगवती लक्ष्मी वृष्टि-क्रीड़ा के अवसर पर वाग्देवता अर्थात ब्रह्म शक्ति के स्वरूप में विराजमान होती है और पालन-क्रीड़ा के समय पर भगवान गुरुड़ ध्वज अथवा विष्णु भगवान सुंदरी पत्नी लक्ष्मी (वैष्णवी शक्ति) के स्वरूप में स्थित होती है तथा प्रयल लीला के समय शाकंभरी (भगवती दुर्गा) अथवा भगवान शंकर की प्रिय पत्नी पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में विद्यमान होती है उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु भगवान विष्णु की नित्ययौवन प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्टयै नमोऽस्तु पुरषोत्तमवललभाय।।११।।

हे लक्ष्मी! शुभकर्म फलदायक! श्रुति स्वरूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों के समुद्र स्वरूपा रति के रूपा में स्थित आपको नमस्कार है। शतपत्र कमल-कुंज में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा रमा को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तम श्री हरि की अत्यंत प्राणप्रिय पुष्टि-रूपा लक्ष्मी को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालिकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवाल्ल्भायै।।१२।।


कमल के समान मुखवाली लक्ष्मी को नमस्कार है। क्षीर समुद्र में उत्पन्न होने वाली रमा को प्रणाम है। चंद्रमा और अमृत की सहोदर बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी को नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरूहाक्षि।
त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्तानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।।१३।।


हे कमलाक्षि! आपके चरणों में की हुई स्तुति ऐश्वर्यदायिनी और समस्त इंद्रियों को आनन्दकारिणी है तथा साम्राज्य अर्थात पूर्णाधिकार देने में सर्वथा समर्थ एवं संपूर्ण पापों को नष्ट करने में उद्यत है। माता, मुझे आपके चरण कमलों की वन्दना करने का सदा शुभ अवसर प्राप्त होते रहे।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
सन्नोती वचनाङ्गमानसैस
त्वां मुरारीहृदयेश्वरीम भजे।।१४।।


जिनके कृपा-कटाक्ष (तिरक्षी चितवन) के लिए की गई उपासना (आराधना), सेवक (उपासक) के लिए समस्त मनोरथ और संपत्ति का विस्तार करती है, उस भगवान मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी का मैं मन, वचन और काया से भजन करता हूं।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्येशोभे।
भगवती हरिवल्ल्भे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यं।।१५।।


जिनके कृपा-कटाक्ष (तिरक्षी चितवन) के लिए की गई उपासना (आराधना), सेवक (उपासक) के लिए समस्त मनोरथ और संपत्ति का विस्तार करती है, उस भगवान मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी का मैं मन, वचन और काया से भजन करता हूं।

दिघस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट -
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलाप्लुताड्ंगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष -
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम।।१६।।


दिग्गजों के द्वारा कनक कुंभ (सुवर्ण कलश) के मुख से पतित आकाशगंगा के स्वच्छ, मनोहर जल से जिस (भगवान) के श्री अंग का अभिषेक (स्नान) होता है उस समस्त लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु पत्नी, क्षीर सागर की पुत्री, जगन्माता लक्ष्मी को मैं प्रात:काल नमस्कार करता हूं।

कमल कमलाक्षवल्ल्भे
त्वं करुणापुरतरङ्गितैरपाङ्गै।
अवलोकय मामकिंचनानाम
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः।।१७।।


हे कमलनयन भगवान विष्णु प्रिय लक्ष्मी! मैं दीन-हीन मनुष्यों में अग्रमण्य हूं इसलिए आपकी कृपा का स्वभाव सिद्ध पात्र हूं। आप उमड़ती हुई करुणा के बाढ़ की तरल तरंगों के सदृश्य कटाक्षों द्वारा मेरी दिशा में अवलोकन कीजिए।

स्तुवन्ति ये  स्तुतीभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरम रमाम।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः।।१८।।


जो मनुष्य इन स्तोत्रों के द्वारा नित्य प्रति वेदत्रयी स्वरूपा तीनों लोकों की माता भगवती रमा (लक्ष्मी) का स्तोत्र पाठ करते हैं वे भक्तगण इस पृथ्वी पर महागुणी और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं एवं विद्वद्जन भी उनके मनोगत भाव को समझने के लिए विशेष इच्छुक रहते हैं।

।।इति श्री कनक धारा स्तोत्रम सम्पूर्णम।।

Monday, June 18, 2018

MahaLakshmi Ashtakam Lyrics- Mahalaxmi Stotram lyrics in English


mahalakshmi stotram
Mahalakshmi ashtakam

महा लक्ष्मी अष्टकं स्तोत्र हिंदी hindi lyrics-(Click here for English)

This hymn called Mahalakshmi Ashtakam or MahaLakshmi Stotram is chanted by the devotees of Goddess Laxmi to please her and to gain prosperity and wealth. This Stotra or Ashtakam fulfils material desires and financial goals of the devotee. This stotra is said to first orated by Lord Indra.

When and how to chant Mahalakshmi Stotram?

1. Padma purana says that this stotra should be chanted 8 times a day continuously for 41 days. Doing this can open your fortune.
 
2. Also, when any mantra is chanted 108 times, it will overcome ill effects of 9 planets. Chanting this mantra 108 times will be more beneficial to anyone.
 
3. For those who are busy in their life, they can do this paatha in the early morning every day.
 
4. Chanting Mahalakshmi Ashtakm on Deepawali is considered very auspicious.


।।अथ इंद्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्मी स्तोत्रम् )।।


नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।१।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।२।।

मैं महामाया कही जाने वाली देवी महालक्ष्मी को प्रणाम करता हूँ, श्री पीठ में देवता जिनकी पूजा करते हैं। जिनके हाथ में शंख, चक्र और गदा शोभित है उन महालक्ष्मी (देवी) को नमस्कार है।
उन देवी को नमस्कार है जो गरुड़ पर आरूढ़ होती हैं और कोलासुर के लिए जो भयंकर प्रतीत होती हैं। सभी पापों को हरने वाली महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।३।।s
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।४।।
 
जो सबकुछ जानती है और जो सभी वरदान देने वाली है, जो सभी दुखों को हर लेतीं हैं उन महालक्ष्मी को नमस्कार है।
सभी प्रकार की सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाली तथा मोक्ष प्रदान करने वाली देवी जो सदैव मन्त्र के सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहती हैं, उन महालक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।५।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।६।।
 
वे जो आदि और अंत से रहित हैं और जो आदिशक्ति हैं उन योग से जन्मीं और योग से जुड़ीं महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है। जो स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों में विद्यमान हैं, जो रुद्राणी देवी का भयंकर रूप हैं। जो महाशक्ति के उदर (womb) में स्थित हैं उन महापाप को हरने वाली महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है।

पद्मासनस्थिते देवि परब्रम्हस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।७।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।८।।
 
जो कमल के आसान पर विराजमान हैं और जो परब्रम्ह का स्वरुप हैं उन महादेवी सम्पूर्ण जगत की माता महालक्ष्मी को नमस्कार है।
जिन्होंने सफ़ेद वस्त्र पहने हुए हैं और जो अनेको आभूषणों से सुशोभित हैं उन (संसार में निहित) महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है।

फलश्रुति: -
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।।
जो पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ महालक्ष्मी स्तोत्र को पढ़ता है वह सभी सिद्धियों और समृद्धि को प्राप्त करता है।
प्रतिदिन एक बार पाठ करने वाले के महान पापों का भी नाश हो जाता है। दो बार पढ़ने वाले को धनधान्य की प्राप्ति होती है।

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ।।

तीन बार इस स्तोत्र को पढ़ने वाले के शत्रुओं का नाश हो जाता है और महालष्मी सदैव उससे प्रसन्न होतीं है।

।। इति श्री महालक्ष्मी अष्टकम सम्पूर्णम।।

Shri MahaLakshmi Ashtakam (stotram) English Lyrics

om
Namaste- astu Mahamaaye shripeethe- surpujite
shankha- chakra- gadaa- haste Mahalakshmi Namostute, 1
Namaste Garudharudhe, Kolasura- bhayankari
Sarva- paap- hare devi, Mahalakshmi Namostute, 2

Sarvagye sarva varade sarvadushta bhayankari,
Sarva- dukhh- hare devi Mahalakshmi Namostute, 3
Siddhi buddhi prade devi bhukti mukti pradaayini,
Mantra moorte sada devi Mahalakshmi Namostute, 4

Aadyanta- rahite devi Aadyashakti Maheshwari,
Yogaje yogsambhoote, Mahalakshmi Namostute, 5
Sthulsukshm- maharaudre mahashakti mahodare,
Mahapaapa- hare devi Mahalakshmi Namostute, 6

Padmaasana- sthite devi Parabramha- swarupini,
Parameshi JaganmaatarMahalakshmi Namostute, 7
Shwetaambar- dhare devi Nana-alankaar bhushite,
Jagat- sthite JaganmaatarMahalakshmi Namostute, 8

Mahalakshmyashtakam Stotram yah pathed-bhaktimaanarah,
Sarvsiddhimavapnoti rajyam praapnoti sarvada, 9
Ekakaale pathennityam Mahapaapa- vinashanam,
dwikaalam yah pathennityam dhan-dhaanya- samanvitah, 10

Trikaaalam yah pathennityam Mahashatru Vinaashanam,
Mahalakshmeer- bhavennityam prasanna varadaa shubha, 11

iti shri mahalakshmi ashtakam sampurnam

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Wednesday, May 30, 2018

Keelak Stotram | कीलक स्तोत्र अर्थ सहित Lyrics

Chandi Keelak Stotram


कीलक स्तोत्र का पाठ दुर्गा सप्तशती (देवी माहात्म्य) के अंतर्गत किया जाता है। इस स्तोत्र का पाठ अनिवार्य रूप से दुर्गा कवच और अर्गला स्तोत्र के बाद किया जाता है।

इस स्तोत्र के पहले मंत्र का ३१ बार प्रतिदिन जप करने से मन में शान्ति प्राप्त होती है। यहाँ कीलक स्तोत्र का पूरा विवरण अर्थ सहित दिया गया है। 
~~अथ कीलक स्तोत्रम्~~
विनियोगः- ॐ अस्य कीलकमंत्रस्य शिव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीमहासरस्वती देवता श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।।
ॐ नमश्चण्डिकायै
मार्कण्डेय उवाच
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे ।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ।।१।।
सर्वमेतद्विजानियान्मंत्राणामभिकीलकम् ।
सो-अपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ।।२।।

मार्कण्डेय जी कहते हैं- विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, तीनों वेद ही जिनके तीन नेत्र हैं, जो कल्याण प्राप्ति के हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करते हैं, उन भगवान् शिव को नमस्कार है। मन्त्रों का जो अभिकीलक है अर्थात मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शापरूपी कीलक का निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिए (और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिए)।।१-२।।

सिध्यन्त्युच्याटनादीनि वस्तुनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ।। ३।।
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्यते सर्वमुच्चाटनादिकम् ।।४।।

उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति होती है; तथापि जो अन्य मन्त्रों का जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से ही सच्चिदानन्दस्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती हैं। उन्हें अपने कार्य की सिद्धि के लिये मंत्र, औषधि तथा अन्य किसी साधन के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती | बिना जप के उनके उच्चाटन आदि समस्त अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं ।।३-४।।

समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास  सर्वमेवमिदं शुभम् ।।५।।
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।

समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावान्नियन्त्रणाम् ।।६।।

इतना ही नहीं ,उनकी संपूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती है | लोगों के मन में यह शंका थी कि 'जब केवल सप्तशती की उपासना से भी सामान रूप से अथवा सप्तशती को छोड़कर अन्य मंत्रो की उपासना से भी सामान रूप से सब कार्य सिद्ध होते है, अब इनमे श्रेष्ठ कौन सा साधन है?' लोगों की इस शंका को सामने रखकर भगवान् शंकर ने अपने पास आए हुए जिज्ञासुओं को समझाया की यह सप्तशती नामक संपूर्ण स्रोत ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है तदनन्तर भगवती चण्डिकाके सप्तशती नामक स्त्रोत को महादेव जी ने गुप्त कर दिया; सप्तशती के पाठसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उसकी कभी समाप्ति नहीं होती; किंतु अन्य मंत्रो के जपजन्य पुण्य की समाप्ति हो जाती है, अतः भगवान् शिव ने अन्य मंत्रो की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठता का निर्णय किया उसे जानना चाहिए ।।५-६।।

सोअपि  क्षेममवाप्नोति  सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ।।७।।
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम ।।८।।

अन्य मंत्रो का जप करनेवाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्त्रोत और जप का अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्ण रूप से ही कल्याण का भागी होता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित होकर भगवती कीसेवा में अपना सर्वस्वा समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसाद रूप से ग्रहण करता है, उसी पर भगावती प्रसन्न होती है; अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती; इस प्रकार सिद्धि के प्रतिबंधक रूप कीलके द्वारा महादेव जी ने इस स्त्रोत को कीलित कर रखा है ।।७-८।।

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोअपि गन्धर्वो जायते नरः।।9।।
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ।।१०।।

जो पूर्वोक्त रीति से निष्कीलन करके इस सप्तसती स्त्रोत का प्रतिदिन स्पष्ट उच्चारणपूर्वक पाठ करता है, वह मनुस्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गांधर्व भी होता है । सर्वत्र विचरते रहने पर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता | वह अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागने के अनन्तर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।9-10।।

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ।।११।।
सौभाग्यादि च यत्किञ्चित्त दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं  तत्प्रसादेन तेन  जाप्यमिदं शुभम् ।।१२।।

अतः कीलन को जानकार उसका परिहार करके ही सप्तसती का पाठ आरंभ करे, जो ऐसा ही करता उसका नाश हो जाता है, इसलिए कीलकऔर निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही यह स्त्रोत निर्दोष होता है और विद्वान् पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का ही पाठ आरंभ करते है। स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृश्टिगोचर होता है, वह सब देवी के प्रसाद का ही फल है | अतः इस कल्याणमय स्त्रोत का सदा जप करना चाहिए ।।११-१२।।

शनैस्तु जप्यमाने-अस्मिन स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव  समग्रापि  ततः  प्रारभ्यमेव  तत् ।।१३।।
ऐश्वर्यं    यत्प्रसादेन   सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः।।ॐ।।१४।।

इस स्त्रोत का मंद स्वर से पाठ करने पर स्वल्प फल की सिद्धि है, अतः उच्च स्वर से ही इसका पाठ आरंभ करना चाहिए जिनके प्रसाद से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है, उन कल्याणमयी जगदम्बा की स्तुति मनसा क्यों नहीं करते ?
इति श्री देव्याः कीलकस्तोत्रम सम्पूर्णम् ।

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Thursday, May 24, 2018

अर्गला स्तोत्रम् | Argala Stotram lyrics in Hindi

argala stotram prayer hindi sanskrit
jayanti mangla

अर्गला स्तोत्र का पाठ दुर्गा कवच के बाद और कीलक स्तोत्र के पहले किया जाता है। यह देवी माहात्म्य के अंतर्गत किया जाने वाला स्तोत्र अत्यंत शुभकारक और लाभप्रद है।

इस स्तोत्र का पाठ नवरातत्रि के अलावा देवी पूजन में भी किया जाता है।

।। अथार्गलास्तोत्रम् ।।

विनियोग- ॐ अस्य श्री अर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्रीमहालक्ष्मीर्देवता श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

ॐ नमश्चण्डिकायै
[ मार्कण्डेय उवाच ]
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।। १।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते ।।२।।

ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है। 
मार्कण्डेय जी कहते हैं - जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा - इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो। देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो।।

मधुकैटभविद्राविविधातृ वरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।३।।
महिषासुरनिर्णाशि भक्तनाम सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। ४।।

मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवि! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।। महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।३-४।।

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनी।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। ५ ।।
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनी।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। ६।।

रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।५-६।।

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनी।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। ७।।
अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। ८।।

सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभग्य प्रदान करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। देवि! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।७-८।।

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। ९।।
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वाम चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। १०।।

पापों को दूर करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा (हमेशा) मस्तक झुकाते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। रोगों का नाश करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।९-१०।।

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। ११।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १२।।

चण्डिके! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। मुझे सौभाग्य और आरोग्य (स्वास्थ्य) दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।११-१२।।

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १३।।
विधेहि देवि कल्याणम् विधेहि परमां श्रियम।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १४।।

जो मुहसे द्वेष करते हों, उनका नाश और मेरे बल की वृद्धि करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम संपत्ति प्रदान करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। १३-१४।।

सुरसुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १५।।
विद्यावन्तं यशवंतं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १६।।

अम्बिके! देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों को तुम्हारे चरणों पर घिसते हैं तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। तुम अपने भक्तजन को विद्वान, यशस्वी, और लक्ष्मीवान बनाओ तथा रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१५-१६।।

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १७।।
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र संस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १८।।

प्रचंड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके! मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। चतुर्भुज ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१७-१८।।

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वत भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। १९।।
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। २०।।

देवि अम्बिके! भगवान् विष्णु नित्य-निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। हिमालय-कन्या पार्वती के पति महादेवजी के द्वारा होने वाली परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१९-२०।।

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। २१।।
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। २२।।

शचीपति इंद्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाल परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। प्रचंड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२१-२२।।

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदये अम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। २३।।
पत्नीं मनोरमां देहिमनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ।। २४।।

देवि! अम्बिके तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनंद प्रदान करती हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार से तारने वाली तथा उत्तम कुल में जन्मी हो।।२३-२४।।

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशती संख्या वरमाप्नोति सम्पदाम्। ॐ ।। २५।।

जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता है, वह सप्तशती की जप-संख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है। साथ ही वह प्रचुर संपत्ति भी प्राप्त कर लेता है।।२६।।

।। इति देव्या अर्गला स्तोत्रं सम्पर्णम ।।
 
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Monday, May 14, 2018

AshtaLakshmi Stotram lyrics in hindi अर्थ सहित

the hindu prayer stotram
Asht Lakshmi
View This in - || English ||

श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम | हिंदी |
देवी शक्ति के आठ रूपों की पूजा का सकारात्मक परिणाम मिलता है | जो व्यक्ति सच्चे मन से अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के द्वारा पूजा करता है उसे देवी की कृपा से सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है | अष्ट लक्ष्मी स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से देवी की असीम अनुकम्पा प्राप्त होती है |

मुख्यतः इस स्तोत्र का पाठ तथा साथ में श्री यंत्र पूजा व्यवसाय और धन की प्राप्ति के लिए किया जाता है | यदि संभव हो तो पूजा के दौरान सफ़ेद वस्त्र पहनने चाहिए |

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से पहले पूजा के स्थान को अच्छी तरह पवित्र चाहिए | संभव हो तो गंगाजल का प्रयोग करें | अपने सामने लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करके श्री यन्त्र को भी स्थापित करना चाहिए | पाठ के अंत में देवी को खीर का भोग अर्पित करके अपने बाद में भोग को प्रसाद के रूप में परिवार में बाँट देना चाहिए |

ॐ- अथ श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम -ॐ

आदि लक्ष्मी-
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये |
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ||
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते |
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् || १ ||

धान्य लक्ष्मि-
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये |
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ||
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते |
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् || २ ||

धैर्य लक्ष्मि- 
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये |
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ||
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते |
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् || ३ ||

गजलक्ष्मि-
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये |
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ||
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते |
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् || ४ ||

सन्तानलक्ष्मि-
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये |
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ||
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते |
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् || ५ ||

विजयलक्ष्मि-
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये |
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ||
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे |
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् || ६ ||

विद्यालक्ष्मि-
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये |
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ||
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते |
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् || ७ ||

धनलक्ष्मि-
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये |
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ||
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते |
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् || ८ ||

फ़लशृति-

श्लोक- अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि |
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी ||

श्लोक- शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः |
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ||

 -इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम- 
 
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Shri Ashtalakshmi Stotra in English

Adilaksmi
sumanasa vandita sundari madhavi, candra sahodari hemamaye
munigana vandita moksapradayani, manjula bhasini vedanute|
pankajavasini deva supujita, sadguna varsini sanityute
jaya jayahe madhusudana kamini, adilaksmi paripalaya mam||1||

Dhanyalaksmi
ayikali kalmasa nasini kamini, vaidika rupini vedamaye
ksira samubhava mangala rupini, mantranivasini mantranute|
mangaladayini ambujavasini, devaganasrita padayute
jaya jayahe madhusudana kamini, dhanyalaksmi paripalaya mam||2||

Dhairyalaksmi
jayavarvarsini vaisnavi bhargavi, mantra svarupini mantramaye
suragana pujita sighra phalaprada, nnana vikasini sastranute|
bhavabhayaharini papavimocani, sadhu janasrita padayute
jaya jayahe madhusudhana kamini, dhairlaksmi paripalaya mam||3||
Gajalaksmi

jaya jaya durgati nasini kamini, sarvaphalaprada sastramaye
radhagaja turagapadati samavrta, parijana mandita lokanute|
harihara brahma supujita sevita, tapa nivarini padayute
jaya jayahe madhusudhana kamini, gajalaksmi rupena palaya mam||4||

Santanalaksmi
ayikhaga vahini mohini chakrini, ragavivardhini  gyaanamaye
gunaganavaradhi lokahitasini, saptasvara bhusita gananute|
sakala surasura deva munisvara, manava vandita padayute
jaya jayahe madhusudana kamini, santanlaksmi paripalaya mam||5||

Vijyalaksmi
jaya kamlasini sadgati dayini, nnanavikasini ganamaye
anudina marcita kun kuma dhusara, bhusita ganayute|
kanakadharastuti vaibhava vandita, sankaradesika manayapade
jaya jayahe madhusudana kamini, vijyalaksmi paripalaya mam||6||

Vidyalaksmi
paranata suresvari bharati bhargavi, sokvinasini ratnamye
manimaya bhusita karnavibhusana, santi samavrta hasyamukhe|
navanidhi dayini kalimalaharni, kamita phalaprada hastayute
jaya jayahe madhusudana kamini, vidyalaksmi sada palaya mam||7||

Dhanalaksmi
dhimidhimi dhindhimi dhindhimi-dindhimi, dundhubhi nada supurnamaye
ghumaghuma ghunghuma ghunghuma ghunghuma,sankha ninadasuvadyanute|
veda puranetihasa supujita, vaidika marga pradarsyute
jaya jayahe madhusudana kamini, dhanlaksmi rupena palaya mam||8||
Phalashruti-
Shlok- astalaksmi namastubhyam varade kamarupini |
visnuvaksah sthala rudhe bhakta moksa pradayini ||

Shlok-sankha cakragadahaste visvarupinite jayah |
jaganmatre ca mohinyai mangalam subha manglam || ॐ ||

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Monday, April 23, 2018

Lelo ye aarti ki thali ho jagdame ambe

jagdambe maa

Lelo Ye Aarti Ki Thali Ho Jagdambe Ambe-

लेलो ये आरती की थाली हो जगदम्बे अम्बे। इस आरती को बहुत कम लोग ही जानते हैं फिर भी उत्तर भारत में यह आरती कई जगह प्रचलित है। यहाँ इस आरती की पूरी लिरिक्स हिंदी और english में दी गयी है। 

लेलो ऐ आरती की थाली ओ जगदम्बे अम्बे,
कब से खड़ा हूँ तेरे द्वार,ओ जगदम्बे अम्बे ||
वर्षों से बैठा मैया आशा लगाये,
विनती हमारी अम्बे खाली न जाये |
ले लो ये आरती की थाली....

भूखे को भोजन मैया प्यासे को पानी,
निर्धन को माया दिलाती, ओ जगदम्बे अम्बे ||

अन्धन को आँखे मैया कोढ़िन को काया ,
बाँझन की गोद भराती जगदम्बे आंबे ||
ले लो ये आरती की थाली ...

काहे के मैया तुम्हरे मंदिर बने है,
काहे के लागे चारों खम्ब,ओ जगदम्बे अम्बे ||
सोने के मैया तुम्हरे मंदिर बने है,
रूप के लागे चरों खम्ब ओ जगदम्बे अम्बे ||
ले लो ये आरती की थाली....

को जो चढ़ावे मैया ध्वजा नारियल,
को जो चढ़ावे नौलखा हार ओ जगदम्बे अम्बे||
राजा चढ़ावे मैया ध्वजा नारियल,
रानी चढ़ावे नौलख हार,ओ जगदम्बे अम्बे ||
ले लो ये आरती की थाली....

काहे के लाने मैया ध्वजा नारियल,
काहे के लाने नौलखा हार ओ जगदमबे अम्बे||
संतत के लाने मैया ध्वजा नारियल,
सम्पत के लाने नौलखा हार,ओ जगदम्बे अम्बे ||
ले लो ये आरती की थाली....

अन्धियारे घर में मैया दियला जलाये दे
दुखियों के घर में मैया सुख तो बरसाए दे
जो जैसो आवे मैया ताहे तैसो दीजो,
विमुख कोऊ न जाए ,ओ जगदम्बे अम्बे ||
ले लो ये आरती की थाली....

सुमिर सुमिर मैया तेरो जस गाये लाऊँ,
तेरो जस गाये लाऊँ मैया मनाये लाऊँ,
शरण छोड़ कहाँ जाएँ ओ जगदम्बे अम्बे,
चरणों में शीश नवायें ओ जगदम्बे अम्बे ||

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कब से खड़ा हूँ तेरे द्वार ओ जगदम्बे अम्बे ,
ले लो ये आरती की थाली हो जगदम्बे अम्बे ||

Le lo Ye Aarti Ki Thali o jagdambe ambe- 

This Arti has very rare presence in Most areas. Here, The Hindu Prayer is providing lyrics of this Aarti in english.

Lelo ye aarti ki thali ho jagdambe ambe,
kab se khada hun tere dwaar o jagdambe ambe
varshon se baitha maiya asha lagaye,
vinti hamari ambe khali na jaaye.
lelo ye aarti ki thali...


bhuke ko bhojan maiya pyase ko pani,
andhiyaare ghar me maiya diyala jalaye do
kab se khada hun tere dwar o jagdambe ambe,


nirdhan ko maya dilati ho jagdambe ambe
andhan ko aankhe maiya khodin ko kaya,
 banjhan ki god bharati , ho jagdambe ambe
lelo ye aarti ki thali...


kaahe ke maiya tumhre mandir bane hain,
kahe ke laage chaaro khamb ho jagdambe ambe
sone ke maiya tumhre mandir bane hai,
Roop ke laage charo khamb ho jgdambe ambe
le lo ye aarti ki thali...


ko jo chadave maiya dwaja nariyal,
ko jo chadave naulakh haar ho jagdambe ambe
Raja chadave maiya dhwaja nariyal,
Rani chadave naulakh haar ho jagdambe ambe
le lo ye aarti ki thali o..


kahe ke laane maiya dhwaja nariyal,
kahe ke laane maiya nolakh haar ho jagdambe ambe
santat ke laane maiya dhwaja nariyal,
Sampat ke laane nolakh haar ho jagdambe ambe
lelo ye aarti ki thali maa jagdambe ambe ...


dukhiyon ke ghar me maiya sukh to barsaye do
Jo jaiso aave maiya taahe taiso deejo,
vimukh koi na jaaye, o jagdambe ambe
lelo ye arti ki thali o...


sumar sumar maiya tero jas gaye laun,
tero jas gaa laun maiya tohe manaye laun,
Sharan chod kahan jaaye o jagdambe ambe
Charno me shees navaye, ho jagdambe ambe
lelo ye aarti ho jagdambe...

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le lo ye aarti ki thali ho jagdambe ambe.

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Thursday, March 22, 2018

Ganga Maa Ki Aarti

jai gange mata
ganga maa

गंगे माँ की आरती -

ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, मन वांछित फल पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

चन्द्र सी ज्योत तुम्हारी, जल निर्मल आता ।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुखदाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

एक बार ही जो तेरी, शरणागति आता ।
यम की त्रास मिटाकर, परम गति पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

आरती मात तुम्हारी, जो जान नित्त जाता ।
दास वाही सहज में, मुक्ति को पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, मन वांशित फल पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

Gange Maa Ki Aarti-

Om Jai Gange Mata, Shri Jai Gange Mata
Jo Nar Tumko Dhyata, Man Vanchhit Phal Pata
Om Jai Gange Mata.....
Chandra Si Jyot Tumhari, Jal Nirmal Aata
Sharan Pade Jo Teri, So Nar Tar Jata
Om Jai Gange Mata.....
Putra Sagar Ke Tare, Sab Jag Ko Gyata
Kripa Drishti Tumhari, Tribhuvan Sukh Data
Om Jai Gange Mata.....
Ek Bar Jo parani, sharan teri aata
Yum Ki Tras Mitakar, Paramgati Pata
Om Jai Gange Mata.....
Aarti Mat Tumhari, Jo Jan Nitya Gata
Sevak Wahi Sahaj Me, Mukti Ko Pata
Om Jai Gange Mata.....

Mangal Ki Seva Sun Meri Deva Arti Lyrics

Mangal Ki Seva sun meri deva

Mangal Ki Seva Sun Meri Deva aarti-

मंगल की सेवा सुन मेरी देव हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े
पान सुपारी धवज़ा नारियल ले ज्वाला तेरी भेंट धरे
सुन जगदांबे ना कर बिलंबे संतान के भंडार भरे
संतान प्रतिपली सदा ख़ुसाली जै काली कल्याण करे

बुद्धि विधाता तू जग्मता मेरा कारज सिद्ध करे
चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पड़े
जब जब भीर पड़ी भक्तन पर तब तब आए सहाय करे
संतन प्रतिपली सदा ख़ुसाली जै काली कल्याण करे

गुरु के वार सकल जाग मोयो करुणी रूप अनूप धरे
माता होकर पुत्र खिलावे कई भार्या भोग करे
सन्तन सुखदायी सदा सहाइ संत खड़े जैकर करे
संतान प्रतिपली सदा ख़ुसली जय काली कल्याण करे
मा जय काली कल्याण करे

ब्रम्‍हा विष्णु महेश फल लिए भेंट देने सब द्वार खड़े
अटल सिंहासन बैठी माता सिर सोने का छत्र फिरे
वार शनीचर कुमकुम वरनी जब लुंकड़ पर  हुक्म करे
संतान प्रतिपली सदा खुशहाली जय काली कल्याण करे

खड़ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिए रक्तबीज़ को भस्म करे
शुम्भ निशुम्भ छन ही मे मारे महिससुर को पकड़ दले
आदित वारी आदि भवानी जन अपने का कष्ट हारे
संतान प्रतिपली सदा खुशहाली जय काली कल्याण करे
मा जय काली कल्याण करे

कुपित होय सब दानव मारे चण्ड मुण्ड सब चूर करे
जब तुम देखो दया रूप हो पल मे संकट दूर करे
सौम्य स्वाभाव धरो मेरी माता जन की अरज कबूल करे
संतान प्रतिपली सदा खुशहाली जय काली कल्याण करे

सात बार की महिमा वर्नी सब गुण कौन बखान करे
सिंह पीठ पर चड़ी भवानी अटल भवन मे राज करे
दर्शन पावे मंगल गावे शिव साधक तेरी भेंट धरे
संतान प्रतिपली सदा खुशहाली जय काली कल्याण करे
मा जय काली कल्याण करे

ब्रम्‍हा वेद पड़े तेरे द्वारे शिव शंकर हरी ध्यान करे
श्री कृष्णा तेरी करे आरती चँवर कुबेर दुलार करे
जय जननी जय मात भवानी अचल भवन मे राज करे
संतान प्रतिपली सदा खुशहाली जय काली कल्याण करे
मा जय जय काली कल्याण करे

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े
पान सुपारी धवज़ा नारियल ले ज्वाला तेरी भेंट धरे
सुन जगदांबे कर ना बिलंबे संतान के भंडार भरे
संतान प्रतिपली सदा खुशहाली जय काली कल्याण करे

Mangal Ki Seva arti lyrics in English

Mangal Ki Seva Sun Meri Deva Hath Jod Tere Dwar Khade
Pan Supari Dhawaza Nariyal Le Jwala Teri Bhent Dhare
Sun Jagdambe Na Kar Bilambe Santan Ke Bhandar Bhare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare

Buddhi Vidhata Tu Jagmata Mera Karaj Siddha Kare
Charan Kamal Ki Liya Aasra Charan Tumhari Aan Pade
Jab Jab Bheer Pade Bhaktan Par Tab Tab Aaye Sahay Kare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare

Guru Ke Baar Sakal Jag Moyo Karuni Roop Anoop Dhare
Mata Hokar Putra Khilave Kai Bar Aa Bhog Kare
Shukra Sukhdayi Sada Sahai Sant Khade Jaikar Kare
Santan Pratipali Sada Khushali Jai Kali Kalyan Kare
Maa Jai Kali Kalyan Kare

Bramha Vishnu Mahesh Phal Liye Bhent Dene Sab Dwar Khade
Atal Sinhasan Baithi Mata Phir Sone Ka Chatra Phire
Var Sanichar Kumkum Varni Jab Hukm Kare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare
Maa Jai Kali Kalyan Kare

Khadag Khapar Trishul Hath Liye Raktbeez Ko Bhasm Kare
Sumbh Nishumbh Chan Hi Me Mare Mahisasur Ko Pakad Dale
Aa Ditwari Aadi Bhawani Jan Apne Ka Kasht Hare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare
Maa Jai Kali Kalyan Kare

Kupit Hoye Sab Danav Mare Chand Mund Sab Choor Kare
Jab Tum Dekho Daya Roop Ho Pal Me Sankat Door Kare
Somya Swabhav Dharo Meri Maata Jan Ki Arj Kabool Kare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare
Maa Jai Kali Kalyan Kare Maa Jai Kali Kalyan Kare

Saat Bar Ki Mahima Varni Sab Gun Kon Bakhan Kare
Singh Peeth Par Chadi Bhawani Atul Bhawan Me Raj Kare
Darshan Pawe Mangal Gave Shiv Shadhak Teri Bhent Dhare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare
Maa Jai Kali Kalyan Kare Maa Jai Kali Kalyan Kare

Bramha Ved Pade Tere Dware Shiv Shankar Hari Dhyan Kare
Shri Krishna Teri Kare Aarti Shravan Kuber Dular Kare
Jai Janni Jai Mat Bhawani Achal Bhawan Me Raj Kare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare
Maa Jai Kali Kalyan Kare Maa Jai Kali Kalyan Kare

Mangal Ki Seva Sun Meri Deva Hath Jod Tere Dwar Khade
Pan Supari Dhawaza Nariyal Le Jwala Teri Bhent Dhare
Sun Jagdambe Na Kar Bilambe Santan Ke Bhandar Bhare
Santan Pratipali Sada Khusali Jai Kali Kalyan Kare

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Tags: Kali mata ki Arti, Sun meri deva, Aarti in Hindi

Wednesday, March 21, 2018

Gayatri Mata Ki Aarti

Jai Gayatri Mata
Gayatri Mata

Gayatri Maa Ki Aarti-

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक क‌र्त्री।
दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे।
भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥


भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥


जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥
॥जयति जय गायत्री माता...॥

तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता।
सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥


जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥


Gayatri Maa Ki Aarti-

Jai Gayatri Mata, 
Jayati Jai Jayati Mata।
Sat Maraga Para Hamen Chalao, 
Jo Hai Sukhadata॥
Jayati Jai Gayatri Mata...

Adi Shakti Tuma Alakha 
Niranjana Jaga Palana Kartri।
Dukha, Shoka, Bhaya, Klesha,
 Kalaha Daridraya Dainya Hartri॥
Jayati Jai Gayatri Mata...


Swaha, Swadha, Shachi, Brahmani,
 Radha, Rudrani।
Jai Satarupa, Vani, Vidya,

 Kamala, Kalyani॥
Jayati Jai Gayatri Mata...



Janani Hama Hai, Dina, Hina, Dukha,

Daridra Ke Ghere।
Yadyapi Kutila, Kapati Kaputa, 

Tau Balaka Hai Tere॥
Jayati Jai Gayatri Mata...



Snehasani Karunamayi Mata,

 Charana Sharana Dijai।
Bilakha Rahe Hama Shishu Suta Tere,

 Daya Drishti Kijai॥
Jayati Jai Gayatri Mata...



Kama, Krodha, Mada, Lobha, Dambha,

 Durbhava, Dvesha Hariye।
Shuddha Buddhi, Nishpaapa Hridaya,

 Mana Ko Pavitra Kariye॥
Jayati Jai Gayatri Mata...


Tuma Samartha Saba Bhanti Tarini,

 Tushti, Pushti Trata।
Sat Marga Para Hame Chalao,

 Jo Hai Sukhadata॥
Jayati Jai Gayatri Mata...