Wednesday, May 30, 2018

Keelak Stotram | कीलक स्तोत्र अर्थ सहित Lyrics

Chandi Keelak Stotram


कीलक स्तोत्र का पाठ दुर्गा सप्तशती (देवी माहात्म्य) के अंतर्गत किया जाता है। इस स्तोत्र का पाठ अनिवार्य रूप से दुर्गा कवच और अर्गला स्तोत्र के बाद किया जाता है।

इस स्तोत्र के पहले मंत्र का ३१ बार प्रतिदिन जप करने से मन में शान्ति प्राप्त होती है। यहाँ कीलक स्तोत्र का पूरा विवरण अर्थ सहित दिया गया है। 
~~अथ कीलक स्तोत्रम्~~
विनियोगः- ॐ अस्य कीलकमंत्रस्य शिव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीमहासरस्वती देवता श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।।
ॐ नमश्चण्डिकायै
मार्कण्डेय उवाच
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे ।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ।।१।।
सर्वमेतद्विजानियान्मंत्राणामभिकीलकम् ।
सो-अपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ।।२।।

मार्कण्डेय जी कहते हैं- विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, तीनों वेद ही जिनके तीन नेत्र हैं, जो कल्याण प्राप्ति के हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करते हैं, उन भगवान् शिव को नमस्कार है। मन्त्रों का जो अभिकीलक है अर्थात मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शापरूपी कीलक का निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिए (और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिए)।।१-२।।

सिध्यन्त्युच्याटनादीनि वस्तुनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ।। ३।।
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्यते सर्वमुच्चाटनादिकम् ।।४।।

उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति होती है; तथापि जो अन्य मन्त्रों का जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से ही सच्चिदानन्दस्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती हैं। उन्हें अपने कार्य की सिद्धि के लिये मंत्र, औषधि तथा अन्य किसी साधन के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती | बिना जप के उनके उच्चाटन आदि समस्त अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं ।।३-४।।

समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास  सर्वमेवमिदं शुभम् ।।५।।
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।

समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावान्नियन्त्रणाम् ।।६।।

इतना ही नहीं ,उनकी संपूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती है | लोगों के मन में यह शंका थी कि 'जब केवल सप्तशती की उपासना से भी सामान रूप से अथवा सप्तशती को छोड़कर अन्य मंत्रो की उपासना से भी सामान रूप से सब कार्य सिद्ध होते है, अब इनमे श्रेष्ठ कौन सा साधन है?' लोगों की इस शंका को सामने रखकर भगवान् शंकर ने अपने पास आए हुए जिज्ञासुओं को समझाया की यह सप्तशती नामक संपूर्ण स्रोत ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है तदनन्तर भगवती चण्डिकाके सप्तशती नामक स्त्रोत को महादेव जी ने गुप्त कर दिया; सप्तशती के पाठसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उसकी कभी समाप्ति नहीं होती; किंतु अन्य मंत्रो के जपजन्य पुण्य की समाप्ति हो जाती है, अतः भगवान् शिव ने अन्य मंत्रो की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठता का निर्णय किया उसे जानना चाहिए ।।५-६।।

सोअपि  क्षेममवाप्नोति  सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ।।७।।
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम ।।८।।

अन्य मंत्रो का जप करनेवाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्त्रोत और जप का अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्ण रूप से ही कल्याण का भागी होता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित होकर भगवती कीसेवा में अपना सर्वस्वा समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसाद रूप से ग्रहण करता है, उसी पर भगावती प्रसन्न होती है; अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती; इस प्रकार सिद्धि के प्रतिबंधक रूप कीलके द्वारा महादेव जी ने इस स्त्रोत को कीलित कर रखा है ।।७-८।।

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोअपि गन्धर्वो जायते नरः।।9।।
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ।।१०।।

जो पूर्वोक्त रीति से निष्कीलन करके इस सप्तसती स्त्रोत का प्रतिदिन स्पष्ट उच्चारणपूर्वक पाठ करता है, वह मनुस्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गांधर्व भी होता है । सर्वत्र विचरते रहने पर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता | वह अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागने के अनन्तर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।9-10।।

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ।।११।।
सौभाग्यादि च यत्किञ्चित्त दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं  तत्प्रसादेन तेन  जाप्यमिदं शुभम् ।।१२।।

अतः कीलन को जानकार उसका परिहार करके ही सप्तसती का पाठ आरंभ करे, जो ऐसा ही करता उसका नाश हो जाता है, इसलिए कीलकऔर निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही यह स्त्रोत निर्दोष होता है और विद्वान् पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का ही पाठ आरंभ करते है। स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृश्टिगोचर होता है, वह सब देवी के प्रसाद का ही फल है | अतः इस कल्याणमय स्त्रोत का सदा जप करना चाहिए ।।११-१२।।

शनैस्तु जप्यमाने-अस्मिन स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव  समग्रापि  ततः  प्रारभ्यमेव  तत् ।।१३।।
ऐश्वर्यं    यत्प्रसादेन   सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः।।ॐ।।१४।।

इस स्त्रोत का मंद स्वर से पाठ करने पर स्वल्प फल की सिद्धि है, अतः उच्च स्वर से ही इसका पाठ आरंभ करना चाहिए जिनके प्रसाद से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है, उन कल्याणमयी जगदम्बा की स्तुति मनसा क्यों नहीं करते ?
इति श्री देव्याः कीलकस्तोत्रम सम्पूर्णम् ।

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