Thursday, January 3, 2019

Aditya Hridaya Stotra lyrics in hindi आदित्य हृदय स्तोत्र

Aditya hrudayam
आदित्य ह्रदय स्तोत्र अगस्त्य ऋषि की रचना है और भगवान सूर्य को समर्पित यह स्तोत्र शक्ति और बुद्धि का संचार करने वाला है यह स्तोत्र मुनि अगस्त्य ने, जब भगवान् श्री राम युद्ध से थककर खड़े थे, तब श्री राम से कहा था। इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन सुबह सूर्योदय के समय में करना सबसे अच्छा माना जाता है . आदित्य ह्रदय की lyrics यहाँ दी गयी है इसी के साथ इस स्तोत्र की english lyrics भी नीचे दी गयी है।

Aditya Hridaya Stotra ( Aditya hrudayam ) lyrics in Hindi / sanskrit-

विनियोगः
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।।

ध्यानम्-
नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,
जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,
विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ।।१।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्या ब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः ।।2।।

उधर थककर चिंता करते हुए श्री राम जी रणभूमि में खड़े थे, उतने में रावण भी  युद्ध के लिए उनके सामने आ गया। यह देखकर अगस्त्य मुनि श्री राम चंद्र जी के पास गए और इस प्रकार बोले।।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ।।3।।
आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम् ।
जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम् ।।4।।

सभी के हृदय में रमण करने वाले ( बसने वाले ) हे महाबाहो ( लम्बी भुजाओं वाले ) राम ! यह गोपनीय स्तोत्र सुनो। इस स्तोत्र के जप से तुम अवश्य ही शत्रुओं पर विजय पाओगे।। यह आदित्य ह्रदय स्तोत्र परम पवित्र और सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला है। इसके जप से सदा ही विजय की प्राप्ति  होती है। यह नित्य अक्षय तथा परम कल्याणकारी स्तोत्र है।।

सर्वमङ्गल माङ्गल्यं सर्व पाप प्रणाशनम्।
चिन्ताशोक प्रशमनम् आयुर्वर्धन मुत्तमम् ।।5।।
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।।6।।

 यह सभी मंगलों में भी मंगल और सभी पापों का नाश करने वाला यह स्तोत्र चिन्ता और शोक को मिटाने वाला और आयु को बढ़ाने वला है।। जो अनंत किरणों से शोभायमान ( रश्मिमान ), नित्य उदय होने वाले ( समुद्यंत ), देवों और असुरों दोनों के द्वारा नमस्कृत हैं, तुम विश्व में अपनी प्रभा ( प्रकाश ) फैलाने वाले संसार के स्वामी ( भुवनेश्वर ) भगवान् भास्कका पूजन करो।। 

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुर गणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः ।।7।।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ।।8।।

सभी देवता इनके रूप हैं, ये देवता ( सूर्य ) अपने तेज और किरणों से जगत को स्फूर्ति प्रदान करते हैं। ये ही अपनी किरणों ( रश्मियों ) से देवता और असुरगण आदि सभी लोकों का पालन करते हैं।। ये ही ब्रह्मा, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, समय, यम, चन्द्रमा, वरुण आदि को प्रकट करने वाले हैं।।

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः ।।9।।
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुः हिरण्यरेता दिवाकरः ।।10।।

ये पितरों, वसु, साध्य, अश्विनीकुमारों, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण और ऋतुओं को जन्म देने वाले प्रभा के पुंज हैं। इनके नाम आदित्य, सविता ( जगत को उत्पन्न करने वाले ), सूर्य (सर्व व्याप्त), खग, पूषा, गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश, भानु, हिरण्येता, दिवाकर और।।

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्ति-र्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुः त्वष्टा मार्ताण्डको‌ऽशुमान् ।।11।।
हिरण्यगर्भः शिशिरः तपनो भास्करो रविः ।
अग्निगर्भो‌दितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ।।12।।

हरिदश्व, सहस्रार्चि, सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले ), मरीचिमान (किरणों से सुशोभित ), तिमिरोमन्थन (अंधकार का नाश करने वाले ), शम्भु, त्वष्टा, मार्तन्डक, अंशुमान, हिरण्यगर्भ, शिशिर ( स्वाभाव से सुख प्रदान करने वाले ), तपन ( गर्मी उत्पन्न करने वाले ), भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितीपुत्र, शङ्ख, शिशिरनाशन (शीत का  करने वाले ) और।।

व्योमनाथ स्तमोभेदी ऋग्यजुःसाम-पारगः ।
धनावृष्टि-रपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः ।।13।।
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ।।14।।

व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र ( जल उत्पन्न करने वाले ), विन्ध्यवीथिप्लवंग (आकाश में तीव्र गति से चलने वाले ), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल ( जिनका भूरा रंग है ), सर्वतापन (सभी को तप देने वाले ), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सब की उत्पत्ति के कारण ) हैं।।

नक्षत्र ग्रह ताराणाम् अधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्-नमोऽ‌स्तु ते ।।15।।
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।।16।।

नक्षत्र, ग्रह और तारों के अधिपति, विश्वभावन ( विश्व की रक्षा करने वाले ), तेजस्वियों में भी तेजस्वी और द्वादशात्मा को नमस्कार है।। पूर्वगिरि उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों ( तारों और ग्रहों ), के स्वामी तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है।।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ।।17।।
नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ।।18।।

जो जय के रूप हैं, विजय के रूप है, हरे रंग के घोड़ों से युक्त रथ वाले भगवान् को नमस्कार है। सहस्रों किरणों से प्रभावान आदित्य भगवान को बारम्बार नमस्कार है।। उग्र, वीर तथा सारंग सूर्य देव को नमस्कार है। कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेज वाले मार्तण्ड को  नमस्कार है।।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्य-वर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ।।19।।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नाया मितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ।। 20।।

आप ब्रम्हा, शिव  विष्णु के भी स्वामी हैं, सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है आप प्रकाश  से परिपूर्ण हैं। सबको स्वाहा करने वाली अग्नि स्वरुप हे रौद्र रूप आपको नमस्कार है।। अज्ञान, अंधकार के नाशक, शीत  के निवारक तथा शत्रुओं के नाशक आपका रूप अप्रमेय है। कृतघ्नों का नाश करने वाले देव और सभी ज्योतियों के अधिपति को नमस्कार है।।

तप्त चामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमो‌ऽभि निघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ।। 21।।
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ।। 22।।

आपकी प्रभा तप्त स्वर्ण के समान है आप ही हरि ( अज्ञान को हरने वाले ), विश्वकर्मा ( संसार की रचना करने वाले ), तम ( अँधेरा ) के नाशक, प्रकाशरूप और जगत के साक्षी आपको नमस्कार है।
हे रघुनन्दन, भगवान् सूर्य देव ही सभी भूतों का संहार, रचना और पालन करते हैं। यही देव अपनी रश्मि (किरणों ) से तप ( गर्मी ) और वर्षा  हैं।।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्नि होत्रिणाम् ।। 23।।
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ।।24।। 

यही देव सभी भूतों में अन्तर्स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं, यही अग्निहोत्री कहलाते हैं और अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।
ये ही वेद, यज्ञ और यज्ञ से मिलने वाले फल हैं, यह देव सम्पूर्ण लोकों की क्रियाओं का फल देने वाले हैं।।

फलश्रुति

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्-नावशीदति राघव ।।25।।
पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ।।26।।

राघव! विपत्ति में, कष्ट में, कठिन मार्ग में और किसी भय के समय जो भी सूर्य देव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं सहना ( भोगना ) पड़ता।
तुम एकाग्रचित होकर इन जगतपति देवादिदेव का पूजन करो, इसका ( आदित्य हृदय स्तोत्र ) तीन बार जप करने से तुम अवश्य ही युद्ध में विजय पाओगे।।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि ।
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ।।27।।
एतच्छ्रुत्वा महातेजाः नष्टशोको‌ऽभवत्-तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ।।28।।

हे महाबाहो ! इसी क्षण तुम रावण का वध कर सकोगे, इस प्रकार मुनि अगस्त्य जिस प्रकार आये थे उसी प्रकार लौट गए।
तब इस प्रकार [अगस्त्य मुनि का उपदेश ] सुनकर महातेजस्वी राम जी का शोक दूर हो गया, प्रसन्न और प्रयत्नशील होकर।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ।।29।।
रावणंप्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतो‌ऽभवत् ।।30।।

परम हर्षित और शुद्धचित्त होकर उन्होंने भगवान सूर्य की ओर देखते हुए तीन बार आदित्य ह्रदय स्तोत्र  का तीन बार जप किया।
तत्पश्चात राम जी ने धनुष उठाकर युद्ध के लिए आये हुए रावण को देखा और उत्साह से भरकर सभी यत्नो से रावण के निश्चय किया।।

अथ रविरवदन्-निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपति सङ्क्षयं विदित्वा सुरगण मध्यगतो वचस्त्वरेति।।३१।।

तब देवताओं के मध्य में खड़े हुए सूर्य देव ने प्रसन्न होकर श्री राम की ओर देखकर निशाचराज ( राक्षस के राजा ) के विनाश का समय निकट जानकर प्रसन्नता पूर्वक कहा "अब जल्दी करो"।।

।। इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मिकीये आदिकाव्ये युद्दकाण्डे पञ्चाधिक शततम सर्गः।। 


Related Posts-
Mahishasura Mardini Stotram lyrics
Rudrashtakam ( Shivashtakam ) in hindi
Sidhha Kunjika Stotram
Shri Surya Chalisa in Hindi

Tags: Aditya hridayam, Shri Surya Aditya hidaya Stotram, Aditya hridaya stotra

Sunday, December 30, 2018

Shiv Tandav Stotram lyrics in Hindi with meaning- शिव तांडव स्तोत्र

Shiva tandav stotram
Lord Shiva

Shri Shiv Tandav Stotram is one of the most popular hymn (mantra) of lord Shiva. When Ravana wanted to take the whole Kailash with him to his kingdom Lanka, Lord Shiva pressed whole mountain with his left thumb and Ravana (रावण) got trapped under the mountain Kailasha. So, to please lord Shiva, he orated the Tandav Stotra and Shiva pleased on him. Lyrics of Tandav Stotram is as written down in hindi and then english.

NOTE: There are two version of Shiva Tandava- one with 15 shlokas and another with 17 shlokas. Shloka 14 and 15 are not used by some people. Here, 17 Shlokas arewritten. If you want to read Tandava Stotra with 15 Shlokas then please skip Shloka no. 14 and no. 15.

Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi and english (with meaning)-

।। अथ श्री शिव तांडव स्तोत्रम ।।

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले।
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम् ।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्निनाद वड्-डमर्वयं।
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।

 उनके बालों से बहने वाले जल से जिनका कंठ पवित्र है, जिनके गले में सांप एक माला की तरह लटका हुआ है और जिनके डमरू से डमड-डमड का नाद हो रहा है, शिव प्रचंड तांडव कर रहे हैं, वे हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

जटा कटाहसंभ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी।
विलोलवीचि वल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्ललाट पट्ट्पावके।
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिःक्षणम् मम।।२।।

गंगा की धारा से युक्त जिनकी लम्बी जटाएं [चक्कर में, round and round] घूम रही है, उनके बालों की लटें [गंगा की] लहरों की भांति लहरा रही हैं, जिनका मस्तक दीप्तिमान है जिस पर धगद-धगद की आवाज करती हुई अग्नि [तीसरा नेत्र] विराजित है, जिस [मस्तक] के शिखर पर अर्धचंद्र सुशोभित है, ऐसे शिव का तांडव प्रति क्षण मेरे मन में आनंद उत्पन्न कर रहा है।

धराधरेन्द्र नंदिनी विलासबन्धु वन्धु-
रस्फुरद्-दिगन्त संतति प्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्ष-धोरणी निरुद्ध-दुर्धरापदि।
क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि।।३।।

 पर्वतराज (हिमालय) की पुत्री (पार्वती) जिनकी अर्धांगिनी हैं, जिस तांडव से सारा संसार कांपने लगता है उसकी सूक्ष्म तरंगें मेरे मन में सुख की लहरें उत्पन्न कर रही हैं, वे शिव जिनके कटाक्ष [तिरछी नजर] से बड़ी-बड़ी आपदाएं भी टल जाती हैं, जो दिगंबर हैं, मेरा मन उन ध्यान में आनंद प्राप्त करे।

जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुंम-द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे।
मनो विनोदमद्-भुतं विंभर्तुभूत-भर्तरि।।४।।

 जिनकी जटा पर लाल-भूरे सर्प अपना मणियों से चमकता फन फैलाये हुए बैठे हैं जो सभी की देवियों के चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जिनका ऊपरी वस्त्र मंद पवन में मदमस्त हाथी के चर्म (skin) की भांति हिल रहा है, जो सभी जीवों के रक्षक हैं मेरा मन उनके इस तांडव से पुलकित हो रहा है।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः।
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः।।५।।

 जो नाचते हुए अपने पैरों की धूल से सहस्र लोचन (जिनके हजार नेत्र हैं अर्थात इंद्र) आदि देवताओं पर कृपा करते हैं, धरती पर नाचने से जिनके पैर भूरे रंग के हो गए है, जिनकी जटा सर्पराज की माला से बंधी है, चकोर पक्षी के मित्र चन्द्रमा जिनके मस्तक पर शोभित हैं, वे हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

ललाट चत्वरज्व-लद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं।
महा कपालि संपदे शिरोजटालमस्तु नः।।६।।

जिनके ललाट पर अग्नि की चिंगारी जल रही है और अपनी दीप्ति फैला रही है, इस अग्नि ने कामदेव के पांच तीरों को नष्ट कर कामदेव को भस्म कर दिया था, जो अर्ध चंद्र से सुशोभित हैं उनकी जटाओं में स्थित सम्पदा हमें प्राप्त हो।

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्जवलद्ध-
नंजया धरीकृत प्रचण्डपंचसायके।
धराधरेन्द्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।

 उनके  कराल (डरावने) मस्तक के तल पर धगद-धगद की ध्वनि करती हुई अग्नि जल रही है जिसने पांच तीर वाले (कामदेव) को नष्ट कर दिया था, तांडव की कदमताल से धरती (जो कि पर्वत पुत्री पार्वती का अंश है) के वक्ष पर सजावटी रेखाएं खिंच गयी हैं, मेरा मन त्रिनेत्रधारी शिव के इस तांडव से अत्यंत प्रसन्न है।

नवीनमेघ मंडली निरुद्ध-दुर्धरस्फुरत्कुहु-
निशीथनीतमः प्रबद्धबद्ध कन्धरः।
निलिम्पनिर्झरी धरस्तनोतु-कृत्ति-सिन्धुरः।
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः।।८।।

महान तांडव के स्पंदन (धड़क) से शिव की गर्दन बादलों की परतों से ढकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है, हे गंगा को धारण करने वाले, हे गजचर्म पहनने वाले, हे अर्धचंद्रधारी, हे सारे संसार का भार उठाने वाले शिव! हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

प्रफुल्ल नील पंकज-प्रपंचकालिमप्रभा ।
विडंबि कंठकंधरारुचि प्रबन्धकंधरम्।
रमच्च्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं।
गजच्छिदान्ध कच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे।।९।।

ब्रह्माण्ड की काली चमक (हलाहल विष) उनके गले में नीले कमल की तरह प्रतीत हो रहा है और करधनी की भाँती प्रतीत हो रहा है जिसे उन्होंने स्वयं रोक रखा है, जिन्होंने स्मर (कामदेव) और त्रिपुरासुर का अंत किया, जो सांसारिक बंधनों को नष्ट करते हैं, जिन्होंने दक्ष, अंधकासुर और गजासुर को विदीर्ण किया और यम को पराजित किया था मैं उन शिव की पूजा करता हूँ।

अखर्व(अगर्व) सर्वमंगला कलाकदंबमञ्जरी।
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं।
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।१०।।

वे सभी की सम्पन्नता के लिए कभी न कम होने वाले मंगल का भण्डार हैं, वे सभी कलाओं के स्रोत हैं, कदम्ब के फूलों से आने वाली शहद की सुगंध के कारण उनके चारों ओर मधुमक्खियां घूमती रहती हैं, जिन्होंने स्मर (कामदेव) और त्रिपुरासुर को नष्ट किया, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त करते हैं, जिन्होंने दक्ष, अंधकासुर और गजासुर का अंत किया और यम को पराजित किया था मैं उन शिव की पूजा करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फु-
रद्-धगद्-धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन्मृदंग-तुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंड ताण्डवः शिवः।।११।।

उनकी भौहें आगे-पीछे गति कर रही हैं जो तीनों लोकों पर उनके स्वामित्व को दर्शाती हैं, उनकी गर्दन पर फुफकार मारते हुए सांप लोट रहे हैं, उनके मस्तक पर डरावनी तीसरी आँख यज्ञ की अग्नि की भाँति धड़क रही है, मृदंगों से लगातार धिमिध-धिमिध की ध्वनि हो रही है और इस ध्वनि पर शिव तांडव कर रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्र-
जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्।१२।।

 मैं आरामदायक बिस्तर और कठोर भूमि का स्पर्श में समानता कब देखूंगा? मैं मोतियों के हार और साँपों के हार को समान रूप से कब देखूंगा? मैं मित्र और शत्रु में एकरूपता कब देखूंगा? मैं कब सुन्दरता और कुरूपता को सामान दृष्टि से कब देखूंगा? मैं कब सम्राट और सामान्य लोगों को एकरूपता से देखूंगा? मैं दृष्टि और आचरण की समानता से सदाशिव की पूजा कब करूँगा?

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्।
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः।
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।

मैं कब मन के पापयुक्त स्वभाव से मुक्त होकर गंगा के किनारे घने जंगलों की गुफाओं में दोनों हाथों को सर पर रखकर शिव की तपस्या में लीन रहूँगा? मैं कब नेत्रों के भटकाव (काम भावना) से मुक्त होकर माथे पर तिलक लगाकर शिव की पूजा करूँगा? मैं कब शिव के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए सुखी होऊंगा?

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं-महनिशं।
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः।।१४।।

 देवांगनाओं के सिर में गुंथे कदम्ब के पुष्पों की मालाओं के झड़ते सुगन्धित पराग से मनोहर, शोभा के धाम महादेव के अंगों की सुंदरता आनंदयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सदा बढ़ाती रहे।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी।
महाष्टसिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः।
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्।।१५।।

बड़वानल (समुद्र की अग्नि) की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों और चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गयी मंगल ध्वनि सब पर मन्त्रों में श्रेष्ठ शिव मन्त्र से परिपूर्ण होकर हम सांसारिक दुखों को नष्ट कर विजय पाएं।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं।
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिम्।
विमोहनं हि देहनाम् तु शंकरस्य चिन्तनम।।१६।।

पवित्र मन से शिव का मनन (चिंतन) करके इस महान से भी महानतम स्तव ( स्तोत्र ) का जो भी नित्य अखंड पाठ करता है, गुरु शिव उस की ओर गति करते हैं, उस शिव की भक्ति प्राप्त होती है, इस भक्ति को पाने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है, शिव के मनन से ऐसे व्यक्ति का मोह नष्ट हो जाता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं।
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां।
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः।।१७।।

शम्भू (शिव) की पूजा की समाप्ति के समय शाम को जो दशानन रावण के इस स्तोत्र (छंद) का पाठ करते हैं, जो इस पूजा में दृढ़ रहते हैं वे हाथी घोड़ों के रथ पर चलते हैं (सम्पन्नता दर्शाने के लिए. देवी लक्ष्मी की कृपा उन पर बनी रहती है, श्री शम्भू उन पर वरदान बनाये रखते हैं।

।। इति रावण रचितं शिव तांडव स्तोत्रं सम्पूर्णम।।

Monday, December 24, 2018

भैरो बाबा की आरती Bhairo Baba ki Arti, सुनो जी भैरव लाडले

bhairo baba ki arti
bhaairo baba

भैरो बाबा की आरती (Bhairav Baba ki aarti)

सुनो जी भैरव लाडले, कर जोड़ कर विनती करूँ
कृपा तुम्हारी चाहिए , में ध्यान तुम्हारा ही धरूँ

मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन सुन लीजिए
मैं हूँ मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो कीजिए

महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ
सुनो जी भैरव लाडले...

करते सवारी श्वानकी, चारों दिशा में राज्य है
जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं |
हथियार है जो आपके, उनका क्या वर्णन करूँ
सुनो जी भैरो लाडले...

माताजी के सामने तुम, नृत्य भी करते हो सदा
गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा
एक सांकली है आपकी तारीफ़ उसकी क्या करूँ
सुनो जी भैरो लाडले...

बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है
आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है
श्री प्रेतराज सरकारके, मैं शीश चरणों मैं धरूँ
सुनो जी भैरव लाडले...

निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें
सर पर तुम्हारे हाथ रखकर आशीर्वाद देती रहे

कर जोड़ कर विनती करूँ अरुशीश चरणों में धरूँ
सुनो जी भैरव लाड़ले, कर जोड़ कर विनती करूँ

Bhairav Ji Ki Aarti (bhairo baba aarti)-


Suno ji bhairav ladle kar jod kar vinti karun,
Kripa tumhari chahiye, mein dhyaan tumhara hi dharun,

Mein charan choota aapke, arji meri sun leejiye,
mein hun mati ka mand, meri kuch madad to keejiye,

mahima tumhari bahut, kuch thodi si me barnan karun,
suno ji bhairo ladle...

karte sawari shwaan ki, chaaron disha me rajya hai,
jitne bhoot or pret, sabke aap hi sartaaj hai,
hatiyaar hai jo aapke, unka mein kya warnan karun,
suno ji bhairo ladle...

mataji ke saamne tum, nritya bhi karte ho sada,
ga ga ke gun anuvaad se, unko rijhaate ho sada,
ek saankali hai aapki, taarif uski kya karun,
suno ji bhairav ladle...

bahut si mahima tumhari, mehndipur sarnaam hai,
aate jagat ke yaatri bajrang ka sthaan hai,
shree pretraj sarkar ke, me shees charno me dharun,
suno ji bhairav ladle...

Nishdin tumhare khel se, mata ji khush  hoti rahen,
sir per tumhare haath rakhkar asheerwad deti rahein,
kar jor kar vinti karun aru sheesh charno me dharun,
suno ji bhairav laadle, kar jod kar vinti karun.

Related Posts-
Pretraj Sarkar ki Aarti lyrics
Jai Hanumat Veera lyrics (Balaji ki Aarti)
Arti- Le lo ye arti ki thali ho Jagdambe ambe

Tags: Suno ji bhairav ladle lyrics in hindi, aarti,

Tuesday, November 27, 2018

Siddha Kunjika Stotram lyrics in Hindi (अर्थ सहित)

chandika sidhha kunjika stotram
Maa durga
सिद्धकुंजिका स्तोत्र (siddh kunjika stora) देवी माहात्म्य के अंतर्गत परम कल्याणकारी स्तोत्र है। यह स्तोत्र रुद्रयामल तंत्र के गौरी तंत्र भाग से लिया गया है। सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर है। इस स्तोत्र के मूल मन्त्र नवाक्षरी मंत्र ( ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) के साथ प्रारम्भ होते है। कुंजिका का अर्थ है चाबी (key) अर्थात कुंजिका स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की शक्ति को जागृत करता है जो महेश्वर शिव के द्वारा गुप्त (lock) कर दी गयी है। इस स्तोत्र के पाठ के उपरान्त किसी और जप या पूजा की आवश्यकता नहीं होती, कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से सभी जाप सिद्ध हो जाते है। कुंजिका स्तोत्र में आए बीजों (बीज मन्त्रो) का अर्थ जानना न संभव है और न ही अतिआवश्यक अर्थात केवल जप पर्याप्त है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है:-

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।।

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।।३।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम।
पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।।

अथ मंत्रः

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।

। इति मंत्रः ।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।

ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते।।३।।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।४।।

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।५।।

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।।६।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।

पां  पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
।। ॐ तत्सत्।।

अर्थ ( Meaning ) -

शिव जी बोले-
  देवी !सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का  उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप ( पाठ ) सफल होता है ।।१।।

कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है ।।२।।
  केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। ( यह कुंजिका ) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है ।।३।।
  हे पार्वती !  स्वयोनि की भांति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि ( अभिचारिक ) उद्देश्यों को सिद्ध करता है ।।४।।
   मन्त्र -ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।

( मंत्र में आये बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और न ही वांछनीय (Desirable)। केवल जप पर्याप्त है। )
  हे रुद्ररूपिणी ! तुम्हे नमस्कार। हे मधु दैत्य को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारने वाली देवी ! तुम्हे नमस्कार है ।।१।।
  शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है ।।२।।
  हे महादेवी ! मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो। 'ऐंकार' के रूप में सृष्टिरूपिणी, 'ह्रीं' के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली ।।३।।
  क्लीं के रूप में कामरूपिणी ( तथा अखिल ब्रह्माण्ड ) की बीजरूपिणी देवी ! तुम्हे नमस्कार है। चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और 'यैकार' के रूप में वर देने वाली हो ।।४।।
  'विच्चे' रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो। ( इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) तुम इस मन्त्र का स्वरुप हो ।।५।।
  'धां धीं धूं' के रूप में धूर्जटी ( शिव ) की तुम पत्नी हो। 'वां वीं वूं' के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। 'क्रां क्रीं क्रूं' के रूप में कालिकादेवी, 'शां शीं शूं' के रूप में मेरा कल्याण करो ।।६।।
  'हुं हुं हुंकार' स्वरूपिणी, 'जं जं जं' जम्भनादिनी, 'भ्रां भ्रीं भ्रूं' के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी ! तुम्हे बार बार प्रणाम ।।७।।
  'अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं' इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा। 'पां पीं पूं' के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। 'खां खीं खूं' के रूप में तुम खेचरी ( आकाशचारिणी ) अथवा खेचरी मुद्रा हो।।८।।
  'सां सीं सूं' स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो। यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखो। हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।
( इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में शिव पार्वती संवाद में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ )

Benefits of Siddha Kunjika Stotram
-
By reciting this Stotra on can easily achieve to overcome murder, enchants, slavery, paralysing (stambham).
One's all enemies are destroyed and problems are solved by this Mantra.

Related Posts-

दुर्गा सप्तशती के स्तोत्र (Full List)
Kanakadhara Stotram - कनकधारा स्तोत्र
devi Kavacham - देवी कवच
Mahishasura Mardini Stotram-  महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र
 
To buy Durga Saptashati book by Gita Press:
Amazon India (Rs.59)- Click here
Amazon US- Click here

Wednesday, July 4, 2018

Shri Kanakadhara Stotram lyrics in Hindi | Sanskrit

Kanakadhara stotram lyrics
Goddess Lakshmi
कनकधारा स्तोत्रम - अङ्गम हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती-
kanakadhara stotram lyrics in hindi sanskrit-

It is believed that Adi Shankaracahrya composed this hymn Sri Kanakdhara stotram to praise Godess Lakshmi and to shower wealth in home of a poor lady who gave him olive (amla fruit) as Bhiksha. Kanak means gold and Dhara means stream.

This incident happened on Akshay Tritiyaa. Adi Sankara was in the age of 8 years.
Best day for initiating this mantra: Friday or any Full Moon day.

अङ्गम हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती,
भृङ्गाङ्गगनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला,
मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवतायाः ।।१।।

जैसे भँवरे अधखिले पुष्पों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेते हैं , उसी प्रकार जो भगवान् विष्णु के अंगों पर सदैव पड़ती रहती है, जिसमें सभी ऐश्वर्यों का निवास है, सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री भगवती देवी महालक्ष्मी की वह कृपादृष्टि दृष्टि मुझ पर मंगलदायी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वडने मुरारेः,
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या,
सा में श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ।।२।।

जैसे भ्रमरी (भँवरे) कमल के पत्तों पर मंडराते रहती हैं, उसी प्रकार जो भगवान हरि के मुखारविंद की ओर प्रेमपूर्वक जाकर लज्जा के कारण लौट आती है, समुद्र कन्या देवी लक्ष्मी की वह मनोहर दृष्टि मुझे धन-संपत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्,
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ।।३।।

Also read : Mahalakshmi Ashtakam

जो सम्पूर्ण देवताओं के राजा इंद्र के पद का वैभव विलास देने में समर्थ हैं, श्री भगवान् हरि को  आनंदित करने वाली हैं तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर दिखाई पड़ती हैं उन देवी लक्ष्मी के अधखुले नेत्रों की क्षण भर के लिए मुझ पर भी अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम-
आनदकंदमनिमेषमनङ्ग-तन्त्रम ।
आकेकरस्थितकनीनि-कपक्ष्मनेत्रं,
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ।।४।।

जिसकी पुतली एवं भौंहें काम के वशीभूत हो अर्ध विकसित एकटक नयनों को देखने वाले आनंदकंद सच्चिदानंद भगवान मुकुन्द को अपने सन्निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती है। ऐसे शेषशायी भगवान विष्णु की अर्द्धंगिनी श्री लक्ष्मी जी के नेत्र हमें प्रभूत धन-संपत्ति प्रदान करने वाले हों।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या,
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला,
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ।।५।।

जिन श्री हरि के कौस्तुभमणि से वशीभूत वक्षस्थल में इन्द्रनीलमय हारावली के समान सुशोभित होती है तथा उन भगवान के भी चित्त मे काम अर्थात स्नेह फैलाने वाली कमलवासिनी देवी लक्ष्मी की कटाक्ष माला मेरा मंगल करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर-
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर-
भद्राणि में दिशतु भार्गवनन्दनायाः ।।६।।

जिस प्रकार मेघों की घनघोर घटा में बिजली चमकती है उसी प्रकार कैटभ दैत्य के शत्रु भी विष्णु भगवान के काले मेघों के समान मनोहर वक्ष:स्थल पर आप विद्युत के समान देदीप्यमान होती हैं तथा जो समस्त लोकों की माता, भार्गव-पुत्री भगवती श्री लक्ष्मी की पूजनीयामूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्,
मांगल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ||७||


समुद्रकन्या लक्ष्मी का वह मंदालस, मंथर, अर्धोंन्मीलित चंचल दृष्टि के प्रभाव से कामदेव ने मंगलमूर्ति भगवान मधुसूदन के हृदय में प्राथमिक (मुख्य) स्थान प्राप्त किया था। वही दृष्टि यहां मेरे ऊपर पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम
अस्मिन्नकिंचनविहङ्गशिशौ  विषण्णे |
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नरायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ||८||

भगवान नारायण की प्रेमिका लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ, दाय रूपी अनुकूल वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को दीर्घकाल के लिए परे हटाकर विषादग्रस्त मुझ दीन-दुखी सदृश्य जातक पर धनरुपी जलधारा की वर्षा करे।

इष्टा विशिष्ट्मतयोऽपि यया दर्याद्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते |
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ||९||

विलक्षण मतिमान मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी कृपा दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को अनायास ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं कमलासना कमला लक्ष्मी की वह विकसित कमल गर्भ के सदृश्य कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोSभिलाषित पुष्टि-सन्तत्यादि वृद्धि प्रदान करें।

गीर्देवतेति गरुणध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्ल्भेति।
 सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्मै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै।।१०।।

जो भगवती लक्ष्मी वृष्टि-क्रीड़ा के अवसर पर वाग्देवता अर्थात ब्रह्म शक्ति के स्वरूप में विराजमान होती है और पालन-क्रीड़ा के समय पर भगवान गुरुड़ ध्वज अथवा विष्णु भगवान सुंदरी पत्नी लक्ष्मी (वैष्णवी शक्ति) के स्वरूप में स्थित होती है तथा प्रयल लीला के समय शाकंभरी (भगवती दुर्गा) अथवा भगवान शंकर की प्रिय पत्नी पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में विद्यमान होती है उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु भगवान विष्णु की नित्ययौवन प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्टयै नमोऽस्तु पुरषोत्तमवललभाय।।११।।

हे लक्ष्मी! शुभकर्म फलदायक! श्रुति स्वरूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों के समुद्र स्वरूपा रति के रूपा में स्थित आपको नमस्कार है। शतपत्र कमल-कुंज में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा रमा को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तम श्री हरि की अत्यंत प्राणप्रिय पुष्टि-रूपा लक्ष्मी को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालिकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवाल्ल्भायै।।१२।।


कमल के समान मुखवाली लक्ष्मी को नमस्कार है। क्षीर समुद्र में उत्पन्न होने वाली रमा को प्रणाम है। चंद्रमा और अमृत की सहोदर बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी को नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरूहाक्षि।
त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्तानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।।१३।।


हे कमलाक्षि! आपके चरणों में की हुई स्तुति ऐश्वर्यदायिनी और समस्त इंद्रियों को आनन्दकारिणी है तथा साम्राज्य अर्थात पूर्णाधिकार देने में सर्वथा समर्थ एवं संपूर्ण पापों को नष्ट करने में उद्यत है। माता, मुझे आपके चरण कमलों की वन्दना करने का सदा शुभ अवसर प्राप्त होते रहे।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
सन्नोती वचनाङ्गमानसैस
त्वां मुरारीहृदयेश्वरीम भजे।।१४।।


जिनके कृपा-कटाक्ष (तिरक्षी चितवन) के लिए की गई उपासना (आराधना), सेवक (उपासक) के लिए समस्त मनोरथ और संपत्ति का विस्तार करती है, उस भगवान मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी का मैं मन, वचन और काया से भजन करता हूं।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्येशोभे।
भगवती हरिवल्ल्भे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यं।।१५।।


जिनके कृपा-कटाक्ष (तिरक्षी चितवन) के लिए की गई उपासना (आराधना), सेवक (उपासक) के लिए समस्त मनोरथ और संपत्ति का विस्तार करती है, उस भगवान मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी का मैं मन, वचन और काया से भजन करता हूं।

दिघस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट -
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलाप्लुताड्ंगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष -
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम।।१६।।


दिग्गजों के द्वारा कनक कुंभ (सुवर्ण कलश) के मुख से पतित आकाशगंगा के स्वच्छ, मनोहर जल से जिस (भगवान) के श्री अंग का अभिषेक (स्नान) होता है उस समस्त लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु पत्नी, क्षीर सागर की पुत्री, जगन्माता लक्ष्मी को मैं प्रात:काल नमस्कार करता हूं।

कमल कमलाक्षवल्ल्भे
त्वं करुणापुरतरङ्गितैरपाङ्गै।
अवलोकय मामकिंचनानाम
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः।।१७।।


हे कमलनयन भगवान विष्णु प्रिय लक्ष्मी! मैं दीन-हीन मनुष्यों में अग्रमण्य हूं इसलिए आपकी कृपा का स्वभाव सिद्ध पात्र हूं। आप उमड़ती हुई करुणा के बाढ़ की तरल तरंगों के सदृश्य कटाक्षों द्वारा मेरी दिशा में अवलोकन कीजिए।

स्तुवन्ति ये  स्तुतीभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरम रमाम।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः।।१८।।


जो मनुष्य इन स्तोत्रों के द्वारा नित्य प्रति वेदत्रयी स्वरूपा तीनों लोकों की माता भगवती रमा (लक्ष्मी) का स्तोत्र पाठ करते हैं वे भक्तगण इस पृथ्वी पर महागुणी और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं एवं विद्वद्जन भी उनके मनोगत भाव को समझने के लिए विशेष इच्छुक रहते हैं।

।।इति श्री कनक धारा स्तोत्रम सम्पूर्णम।।

Monday, June 18, 2018

MahaLakshmi Ashtakam Lyrics- Mahalaxmi Stotram lyrics in English


mahalakshmi stotram
Mahalakshmi ashtakam

महा लक्ष्मी अष्टकं स्तोत्र हिंदी hindi lyrics-(Click here for English)

This hymn called Mahalakshmi Ashtakam or MahaLakshmi Stotram is chanted by the devotees of Goddess Laxmi to please her and to gain prosperity and wealth. This Stotra or Ashtakam fulfils material desires and financial goals of the devotee. This stotra is said to first orated by Lord Indra.

When and how to chant Mahalakshmi Stotram?

1. Padma purana says that this stotra should be chanted 8 times a day continuously for 41 days. Doing this can open your fortune.
 
2. Also, when any mantra is chanted 108 times, it will overcome ill effects of 9 planets. Chanting this mantra 108 times will be more beneficial to anyone.
 
3. For those who are busy in their life, they can do this paatha in the early morning every day.
 
4. Chanting Mahalakshmi Ashtakm on Deepawali is considered very auspicious.


।।अथ इंद्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्मी स्तोत्रम् )।।


नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।१।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।२।।

मैं महामाया कही जाने वाली देवी महालक्ष्मी को प्रणाम करता हूँ, श्री पीठ में देवता जिनकी पूजा करते हैं। जिनके हाथ में शंख, चक्र और गदा शोभित है उन महालक्ष्मी (देवी) को नमस्कार है।
उन देवी को नमस्कार है जो गरुड़ पर आरूढ़ होती हैं और कोलासुर के लिए जो भयंकर प्रतीत होती हैं। सभी पापों को हरने वाली महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।३।।s
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।४।।
 
जो सबकुछ जानती है और जो सभी वरदान देने वाली है, जो सभी दुखों को हर लेतीं हैं उन महालक्ष्मी को नमस्कार है।
सभी प्रकार की सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाली तथा मोक्ष प्रदान करने वाली देवी जो सदैव मन्त्र के सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहती हैं, उन महालक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।५।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।६।।
 
वे जो आदि और अंत से रहित हैं और जो आदिशक्ति हैं उन योग से जन्मीं और योग से जुड़ीं महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है। जो स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों में विद्यमान हैं, जो रुद्राणी देवी का भयंकर रूप हैं। जो महाशक्ति के उदर (womb) में स्थित हैं उन महापाप को हरने वाली महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है।

पद्मासनस्थिते देवि परब्रम्हस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।७।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।८।।
 
जो कमल के आसान पर विराजमान हैं और जो परब्रम्ह का स्वरुप हैं उन महादेवी सम्पूर्ण जगत की माता महालक्ष्मी को नमस्कार है।
जिन्होंने सफ़ेद वस्त्र पहने हुए हैं और जो अनेको आभूषणों से सुशोभित हैं उन (संसार में निहित) महालक्ष्मी देवी को नमस्कार है।

फलश्रुति: -
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।।
जो पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ महालक्ष्मी स्तोत्र को पढ़ता है वह सभी सिद्धियों और समृद्धि को प्राप्त करता है।
प्रतिदिन एक बार पाठ करने वाले के महान पापों का भी नाश हो जाता है। दो बार पढ़ने वाले को धनधान्य की प्राप्ति होती है।

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ।।

तीन बार इस स्तोत्र को पढ़ने वाले के शत्रुओं का नाश हो जाता है और महालष्मी सदैव उससे प्रसन्न होतीं है।

।। इति श्री महालक्ष्मी अष्टकम सम्पूर्णम।।

Shri MahaLakshmi Ashtakam (stotram) English Lyrics

om
Namaste- astu Mahamaaye shripeethe- surpujite
shankha- chakra- gadaa- haste Mahalakshmi Namostute, 1
Namaste Garudharudhe, Kolasura- bhayankari
Sarva- paap- hare devi, Mahalakshmi Namostute, 2

Sarvagye sarva varade sarvadushta bhayankari,
Sarva- dukhh- hare devi Mahalakshmi Namostute, 3
Siddhi buddhi prade devi bhukti mukti pradaayini,
Mantra moorte sada devi Mahalakshmi Namostute, 4

Aadyanta- rahite devi Aadyashakti Maheshwari,
Yogaje yogsambhoote, Mahalakshmi Namostute, 5
Sthulsukshm- maharaudre mahashakti mahodare,
Mahapaapa- hare devi Mahalakshmi Namostute, 6

Padmaasana- sthite devi Parabramha- swarupini,
Parameshi JaganmaatarMahalakshmi Namostute, 7
Shwetaambar- dhare devi Nana-alankaar bhushite,
Jagat- sthite JaganmaatarMahalakshmi Namostute, 8

Mahalakshmyashtakam Stotram yah pathed-bhaktimaanarah,
Sarvsiddhimavapnoti rajyam praapnoti sarvada, 9
Ekakaale pathennityam Mahapaapa- vinashanam,
dwikaalam yah pathennityam dhan-dhaanya- samanvitah, 10

Trikaaalam yah pathennityam Mahashatru Vinaashanam,
Mahalakshmeer- bhavennityam prasanna varadaa shubha, 11

iti shri mahalakshmi ashtakam sampurnam

Related Posts-
Kanakdhara Stotram lyrics in Sanskrit
Mahishasura Mardini Stotram lyrics
AshtaLakshmi Stotram Lyrics hindi, english

Saturday, June 16, 2018

प्रेतराज सरकार की आरती | Pretraj Sarkar Ki Aarti lyrics

shri pretraj sarkar aarti
Pretraj Sarkar

श्री प्रेतराज सरकार की आरती -

प्रेतराज सरकार का मंदिर मेहंदीपुर राजस्थान में स्थित है, प्रेतराज सरकार को भूतों के देवता(राजा) के रूप में पूजा जाता है। प्रेतराज सरकार बालाजी के सहायक देव हैं और बालाजी की पूजा के साथ प्रेतराज सरकार की पूजा भी अनिवार्य है। यहाँ हमारी वेबसाइट पर प्रेतराज सरकार की आरती हिंदी और उसके नीचे english में दी गयी है।

जय प्रेतराज कृपाल मेरी, अरज अब सुन लीजिये |
मैं शरण तुम्हारी आ गया हूँ , नाथ दर्शन दीजिये ||

मैं करूँ विनती आपसे अब तुम दयामय चित्त धरो |
चरणों का ले लिया आसरा, प्रभु वेग से दुःख मेरा हरो ||

सिर पर मुकुट कर में धनुष, गल बीच मोतियन माल है |
जो करें दर्शन प्रेम से, सब कटत भाव के जाल है ||

जब पहन दस्तर  खडग बाई बगल में ढाल है |
ऐसा भयंकर रूप जिसको देख डरपत काल है ||

अति प्रबल सेना विकत योद्धा, संग में विकराल है|
सब भूत प्रेत पिशाच बाँधे, कैद करते  हाल है ||

तव रूप धरते वीर का, करते तैयारी चलन की |
संग में लडाके जवान, जिनकी थाह नहीं बलन की ||

तुम सब तरह सामर्थ्य हो, सकल सुख के धाम हो |
दुष्टों के मारनहार हो,  भक्तों के पूरण काम हो ||

मैं हूँ मति का मंद मेरी, बुद्धि  को निर्मल करो |
अज्ञान का अँधेरा उर में ज्ञान का दीपक धरो ||

सब मनोरथ सिद्ध करते, जो कोई सेवा करे |
तंदुल, बूरा , घ्रत,  मेवा, भेंट ले आगे धरे ||

सुयश सुनके आपका, दुखिया तो आये दूर से |
सब स्त्री अरु पुरुष आकर पड़े हैं चरण हुजूर के ||

लीला है अदभुत आपकी महिमा तो अपरंपार है |
मैं ध्यान जिस दिन धरत हूँ, रच देना मंगलाचार है ||

सेवक गणेशपुरी महंत जी की, लाज तुम्हारे हाथ है |
करना खता सब माफ़ उनकी, देना हरदम साथ है||

दरबार में आयो अभी, सरकार में हाजिर खड़ा |
इंसाफ मेरा अब करो, चरणों में आकर गिर पड़ा ||

अर्जी बमूजिब दे चुका, अब गौर इस पर कीजिये |
तत्काल इस पर हुक्म लिख दो, फैसला कर दीजिये ||

महाराज की यह स्तुति, कोई नियम रूप से गाया करे |
सब सिद्ध कारज होये, उनके रोग पीड़ा सब हरे ||

भक्त सेवक आपके, उनको नहीं विसराइये |
जय जय मनायें आपकी, बेड़े को पार लगाइये ||

Read More : भैरव बाबा की आरती 

Pretraj Sarkar ki aarti lyrics-

Pretraj sarkar ki aarti lyrics in english

jay pretraj kripaal meri araj ab sun lijiye
mein sharan tumhari aa gaya hun naath darshan dijiye.

mein karun vinti aapse ab tum dayamay chitt dharo
charno ka le liya aasra prabhu veg se mera dukh haro.

sir par mukut kar me dhanush gal beech motiyan maal hai
jo karen darshan prem se sab katat bhav ke jaal hai.

jab pehan dastar le khadag by bagal me dhaal hai
esa bhayankar roop jisko dekh darpat kaal hai.

ati prabal sena vikat yodha sang me vikraal hai
sab bhoot pretpisaach baandhe kaid karte haal hai.

tab roop dharte veer ka karte taiyaari chalan ki
sang me ladake javan jinki thaah nhi balan ki.

tum sab tarah saamarthya ho prabhu sakal sukh ke dhaam ho
duston ke maaranhaar ho bhakton ke puran kaam ho.

mein hu mati ka mand meri buddhi ko nirmal karo
agyaan ka andhera ur mein gyaan ka deepak dharo.

sab manorath siddh karte jo koi seva kare
tandul boora ghrt meva bhent le aage dhare.

suyash sun ke aapka dukhiya to aaye dur se
sab stri or purush aakr pade charan hujur ke.

leela hai adbhut aapki mahima to aprampaar hai
me dhyaan jis din dharat hu, rach dena manglachar hai.

sevak ganeshpuri mahant ji ki laaj tumhare haanth hai
karna khata sab maaf unki dena hardam saath hai.

darbaar me aayo abhi sarkar me haajir khada
insaaf mera ab karo charon me aakar gir pada.

arji bamujib de chuka ab gor is par keejiye
tatkaal is pr hukm likh do faisla kar deejiya.

maharaj ki yah stuti koi niyam se gaaya kare
sab siddh kaaraj hoye unke rog peeda sab hare.

bhakt sevak aapke unko nahi visraaiye
jai jai manayen aapki bede ko paar lagaiye.

Read More : Bhairo (bhairav) baba ki arti lyrics