Saturday, April 27, 2019

Vedoktam Devi Suktam (Durga Saptashati) lyrics in Hindi

devi bhagwati gurga
यह सूक्त ऋग्वेद के मंडल १० के सूक्त १२५ में लिखा गया है, इसे कहीं-कहीं वाकम्भरणी सूक्त भी कहा गया है,

 ऋग्वेदोक्तं देवी सूक्तम् ( हिन्दी अर्थ सहित ) -

 विनियोगः -
ॐ अहमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य वागाम्भृणी ऋषिः, सच्चित्सुखात्मकः सर्वगतः परमात्मा देवता, द्वितीयाया ऋचो जगती, शिष्टानां त्रिष्टुप् छन्दः, देविमाहात्म्यपाठे विनियोगः 

ध्यानम्  -
ॐ सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुःशराम्श्च् दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता,
आमुक्ताङ्ग्दहारकङ्क्णरणत्कान्चीरणन्नूपूरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला.

देवीसूक्तम् -

ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः।
अहं मित्रावरुणोभा विभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ।।1।।

अहं  सोममाहनसं विभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ।।2।।

अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्य्यावेशयन्तीम् ।।3।।

मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ।।4।।

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ।।5।।

अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ ।
अहं जनाय समदं क्रिणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश ।।6।।

अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे ।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ।।7।।

अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा ।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव ।।8।।

।। इति श्री ऋग्वेदोक्तं देवी सूक्तं संपूर्णम् ।। 

To buy Durga Saptashati book by Gita Press-
Amazon India (Rs. 59)- Click here
Amazon US- Click here

 Hindi Meaning of Devi Suktam-

ध्यान- 
जो सिंह की पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है, जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, तीन नेत्रों से सुशोभित होती हैं, जिनके भिन्न भिन्न अंग बांधे हुए बाजूबंद, हार, कंकण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं तथा जिनके कानों में रत्नजड़ित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूरकरने वाली हों।

मन्त्र ( अर्थ )-

[ महर्षि अम्भृण की कन्या का नाम वाक् था, वह ब्रह्म ज्ञानिनी थी, उसने देवी के साथ अभिन्नता धारण कर ली थी, ये उसी के उद्गार ( वचन ) हैं- ] मैं सच्चिदानंदमयी सर्वात्मा देवी रूद्र, वसु, आदित्य, तथा विश्वेदेव गणों के रूप में विचरती हूँ। मैं ही मित्र और वरुण दोनों को, इंद्र और अग्नि तथा दोनों अश्विनीकुमारों को धारण करती हूँ।।१।।

मैं ही शत्रुओं के नाशक आकाशचारी देवता सोम को, त्वष्टा प्रजापति को तथा पूषा और भाग को भी धारण करती हूँ। जो हविष्य से संपन्न हो देवताओं को हविष्य की प्राप्ति कराता है, उस यजमान के लिए मैं ही उत्तम यज्ञ का फल और धन प्रदान करती हूँ।।२।।

मैं सम्पूर्ण जगत की अधीश्वरी अपने उपासकों को धन की प्राप्ति कराने वाली, साक्षात्कार करने योग्य परब्रह्म को अपने से अभिन्न रूप में जानने वाली तथा पूजनीय देवताओं में प्रधान हूँ। मैं प्रपंच रूप से अनेक भावों में स्थित हूँ। सम्पूर्ण भूतों में मेरा प्रवेश है। अनेक स्थानों में रहने वाले देवता जहां कहीं जो कुछ भी करते हैं, वह सब मेरे लिए करते हैं।।३।।

जो अन्न खाता है, वह मेरी शक्ति से ही खाता है, इसी प्रकार जो देखता है, जो सांस लेता है और जो कही हुई बात सुनता है वह मेरी ही सहायता से उन सब कर्मों को करने में समर्थ होता है। जो मुझे इस रूप में नहीं जानते, वे न जानने के कारण ही दीन दशा को प्राप्त होते जाते हैं। हे बहुश्रुत, मैं तुम्हे श्रद्धा से प्राप्त होने वाले ब्रह्मतत्व का उपदेश करती हूँ, सुनो- ।।४।।

मैं स्वयं ही देवताओं और मनुष्यों द्वारा सेवित इस दुर्लभ तत्व का वर्णन करती हूँ, मैं जिस जिस पुरुष की रक्षा करना चाहती हूँ, उस-उस को सब की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बना देती हूँ, उसी को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, परोक्षज्ञान संपन्न ऋषि तथा उत्तम मेधाशक्ति से युक्त बनाती हूँ।।५।।

मैं ही ब्रह्मद्वेषी हिंसक असुरों का वध करने के लिए रूद्र के धनुष को चढाती हूँ। मैं ही शरणागत जनों की रक्षा के लिए शत्रुओं से युद्ध करती हूँ तथा अन्तर्यामी रूप से पृथ्वी और आकाश के भीतर व्याप्त रहती हूँ।।६।।

मैं ही इस जगत के पिता रूप आकाश को सर्वाधिष्ठान स्वरुप परमात्मा के रुप में उत्पन्न करती हूँ। समुद्र में तथा जल में मेरे कारण चैतन्य ब्रह्म की स्थिति है, अतएव ( इसी कारण से ) मैं समस्त भुवन में व्याप्त रहती हूँ तथा उस स्वर्गलोक का भी अपने शरीर से स्पर्श करती हूँ।।७।।

मैं कारण रूप से जब समस्त विश्व की रचना आरम्भ करती हूँ तब दूसरों की प्रेरणा के बिना स्वयं ही वायु के भाँति चलती हूँ, स्वेच्छा से ही कर्म में प्रवृत्त होती हूँ, मैं पृथ्वी और आकाश दोनों से परे हूँ, अपनी महिमा से ही मैं ऐसी हुई हूँ।।८।।

Related Posts-
Mahishasura Mardini Stotram
Siddha Kunjika Stotram
Devi Aparadha Kshmapan Stotram
दुर्गा सप्तशती के सभी स्तोत्र
 
दुर्गा सप्तशती पुस्तक को अमेजोन से खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें - दुर्गा सप्तशती (मात्र 59 रूपए)
 

TAGS: devi suktam rig veda, devi suktam from rigveda, rigvedokta devi suktam

Friday, April 5, 2019

Devyaparadha Kshamapana Stotram देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र Lyrics

Devyaparadh Kshamapan Lyrics ( Sanskrit )- 

देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र आद्य शंकराचार्य के द्वारा रचित स्तोत्र है जो देवी भगवती को समर्पित है, आदि शंकराचार्य देवी से अपने पापों के लिए क्षमा याचना करते हैं। यहाँ यह स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित दिया गया है।

। अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
न चावाह्नं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं,
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्।।1।।

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया,
विधेयाशक्यत्वात्त्व चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।2।।

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः,
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।3।।

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता,
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया,
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।4।।

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया,
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि,
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता,
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ।।5।।

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा,
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः,
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं,
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौः ।।6।।

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो,
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः,
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं,
भवानि तवत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ।।7।।

न मोक्षस्याकाङक्षा भवविभववाञ्छापि च न मे,
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः,
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै,
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ।।8।।

 नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः,
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः,
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे,
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव।।9।।

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं,
करोमि दुर्गे करुनार्नवेशि,
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः,
क्षुधा तृषार्ता जननीं स्मरन्ति ।।10।।

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि,
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम् ।।11।।

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि,
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ।।12।।

।।इति श्री शङ्कराचार्यविरचितं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रं संपूर्णम् ।।

To buy Durga Saptashati book by Gita Press-
Amazon India (Rs. 59)- Click here
Amazon US- Click here

 Meaning of Stotra in Hindi, हिंदी अर्थ-

माँ ! मैं न मन्त्र जानता हूँ, न यंत्र; अहो! मुझे स्तुति का भी ज्ञान नहीं है. न आवाहन का पता है, न ध्यान का. स्तोत्र और कथा की भी जानकारी नहीं है. न तो तुम्हारी मुद्राएँ जानता हूँ और न मुझे व्याकुल होकर विलाप करना हि आता है; परन्तु एक जानता हूँ, केवल तुम्हारा अनुसरण करना- तुम्हारे पीछे चलना, जो कि सब क्लेशों को समस्त दुःख विपत्तियों को हर लेने वाला है. 1

सब का उद्धार करने वाली कल्यान्मायी माता ! में पूजा की विधि नहीं जानता, मेरे ओआस धन का भी अभाव है, में स्वभा से भी आलसी हूँ तथा मुझसे ठीक-ठीक पूजा का सम्पादन भी नहीं हो सकता; इन सब कारणों से तुम्हारे चरणों की सेवा में जो त्रुटि हो गयी है, उसे क्षमा करना; क्योंकि कुपुत्र का होना संभव है, किन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती. 2

 माँ ! इस पृथ्वी पर तुम्हारे सीधे साधे पुत्र तो बहुत से हैं, किन्तु उन सब में मैं ही अत्यंत चपल तुम्हारा बालक हूँ मेरे जैसा चंचल कोई विरला हि होगा. शिवे मेरा जो यह त्याग हुआ है, यह तुम्हारे लिए कदापि उचित नहीं है; क्योकि संसार में कुपुत्र का होना संभव है, किन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती. ३

जगदम्ब ! माता, मैंने तुम्हारे चरणों की सेवा कभी नहीं की, देवि! तुम्हे अधिक धन भी समर्पित नहीं किया; तथापि मुझ जैसे अधम पर जो तुम अनुपम स्नेह करती हो, इसका कारण यही है कि संसार में कुपुत्र पैदा हो सकता है परन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती. ४

 गणेश जी को जन्म देने वाली माता पार्वती! [ अन्य देवताओं की आराधना करते समय ] मुझे नाना प्रकार की सेवाओं में व्यग्र रहना पड़ता था, इसलिए पचासी वर्ष से अधिक अवस्था हो जाने पर आइने देवताओं को छोड़ दिया है, अब उनकी सेवा-पूजा मुझसे नहीं हो पाती; अतएव उनसे कुछ भी सहायता मिलने की आशा नहीं है. इस समय यदि तुम्हारी कृपा नहीं होगी तो मैं अवलम्बरहित होकर किसकी शरण मैं जाउंगा. 5.

 माता अपर्णा ! तुम्हारे मन्त्र का एक अक्षर भी कान में पड़ जाय तो उसका फल यह होता है कि मुर्ख चांडाल भी मधुपाक के समान मधुर वाणी का उच्चारण करने वाला उत्तम वक्ता हो जाता है, दीन मनुष्य भी करोड़ों स्वर्णमुद्राओं से संपन्न हो चिरकाल तक निर्भय विहार करता रहता है. जब मन्त्र के एक अक्षर श्रवण का ऐसा फल है तो जो लोग विधि पूर्वक जप में लगे रहते हैं, उनके जप से प्राप्त होने वाला उत्तम फल कैसा होगा ? इसको कौन मनुष्य जान सकता है. ६.

 भवानी ! जो अपने अंगों में चिता की राख-भभूत लपेटे रहते हैं, विष ही जिनका भोजन है, जो दिगंबरधारी ( नग्न रहने वाले ) हैं, मस्तक पर जटा और कंठ में नागराज वासुकि को हार के रूप में धारण करते हैं तथा जिनके हाथ में कपाल ( भिक्षापात्र ) शोभा पाता है, ऐसे भूतनाथ पशुपति भी जो एकमात्र 'जगदीश' की पदवी धारण करते हैं, इसका क्या कारण है? यह महत्त्व उन्हें कैसे मिला ; यह केवल तुम्हारे पाणिग्रहण की परिपाटी का फल है; तुम्हारे साथ विवाह होने से हि उनका महत्त्व बाद गया. 7.

 मुख में चन्द्रमा की शोभा धारण करने वाली माँ ! मुहे मोक्ष की इच्छा नहीं है, संसार के वैभव की अभिलाषा नहीं हैं; न विज्ञान की अपेक्षा है; न सुख की आकांक्षा; अतः तुमसे मेरी यही याचना है कि मेरा जन्म 'मृडाणी, रुद्राणी, शिव, शिव, भवानी' इन नामों का जप करते हुए बीते. 8

 माँ श्यामा ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी. सदा कठोर भाव का चिंतन करने वाली मेरी वाणी ने कौन सा अपराध नहीं किया है ! फिर भी तुम स्वयं ही प्रयत्न करके मुह अनाथ पर जो कुछ भी कृपा दृष्टि करती हो, माँ ! यह तुम्हारे हि योग्य है. तुम्हारे जैसी दयामयी माता ही मेरे जैसे कुपुत्र को भी आश्रय दे सकती है. 9

 माता दुर्गे ! करुनासिंधु महेश्वरी ! मैं विपत्तियों में फंसकर आज जो तुम्हारा स्मरण करता हूँ, इसे मेरी शठता न मान लेना; क्योंकि भूख प्यास से पीड़ित बालक माता का ही स्मरण करते हैं. 10

 जगदम्ब ! मुह पर जो तुम्हारी पूर्ण कृपा बनी हुई है, इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है, पुत्र अपराध पर अपराध क्यों न करता जा रहा हो, फिर भी माता उसकी उपेक्षा नहीं करती. 11

 महादेवि ! मेरे समान कोई पातकी नहीं है और तुम्हारे समान दूसरी कोई पापहारिणी नहीं है; ऐसा जानकार जो उचित जान पड़े, वह करो.12

Meaning of Stotra in Hindi-

Related Posts-
Durga Saptashati- Keelak Stotram
Argala Stotram
Siddha Kunjika Stotram
Durga Saptashati- Devi Kavacham
Saptashati Stotras (Full List) 
 
दुर्गा सप्तशती पुस्तक को अमेजोन से खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें - दुर्गा सप्तशती (मात्र 59 रूपए)
To buy Durga Saptashati from Amazon.com (US)- Click Here

Tuesday, April 2, 2019

Shiv Panchakshara Stotram Lyrics शिव पंचाक्षर स्तोत्र



 Mantra: Shiv Panchakshari Stotra (Hindi)

शिव पंचाक्षर स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी. भगवान शिव के पंचाक्षरी (पांच अक्षर वाले) मन्त्र "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र पर आधारित इस स्तोत्र से शंकराचार्य भगवान् की स्तुति करते हैं और इस मन्त्र के महत्त्व को बताते हैं. इस स्तोत्र के मन्त्र हिंदी अर्थ सहित यहाँ दिए गए हैं--

।अथ शिव पंचाक्षर स्तोत्रम।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।१।।

जो नागेंद्र ( नागराज ) को हार स्वरुप धारण  करते हैं, जो त्रिलोचन ( तीन नेत्रों वाले ) हैं, जो भस्म से अलंकृत हैं, उन महेश्वर, नित्य, शुद्ध, दिगंबर ( जिसका अम्बर दिशाओं के सिवा कुछ न हो ), 'न' अक्षर के द्वारा विदित स्वरुप को नमस्कार है।

मन्दाकिनी सलिल चन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दार पुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै मकाराय नम: शिवाय।।२।।

मन्दाकिनी ( गंगाजल ) और चन्दन से जिनकी अर्चना होती है, मंदार और अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नंदी के अधिपति और प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' कार स्वरुप भगवान शिव को नमस्कार है।

शिवाय गौरी वदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नम: शिवाय।।३।।

जो कल्याण स्वरुप हैं, जो पार्वती जी के मुख कमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्य देव के सामान हैं , जो राजा दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जो वृषध्वज हैं ( जिनकी ध्वजा पर बैल का चिन्ह है ) उन शोभावान श्री नीलकंठ 'शि' कार स्वरुप शिव को नमस्कार है।

वसिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानर लोचनाय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय।।४।।

वसिष्ठ, कुम्भोद्भव ( घड़े से उत्पन्न होने वाले अगस्त्य मुनि ), गौतम आदि मुनियों और इन्द्रादि देवताओं के द्वारा अर्चित ( पूजित ), चन्द्रमा, सूर्य, अग्नि जिनके तीन नेत्र हैं, उन 'व' कार स्वरुप शिव को नमस्कार है।

यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नम: शिवाय।।५।।

जिन्होंने यक्ष रूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जो हाथ में पिनाक ( धनुष ) धारण किये हैं, उन दिव्य देव, दिगंबर 'य' कार स्वरुप शिव को नमस्कार है।

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मन्त्र का नित्य पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त कर शिव जी के साथ आनंदित होता है।

।इति श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्रम सम्पूर्णम।

Shiv Panchakshar stotram English Lyrics-

Naagendra Haray Trilochanaay,
Bhasmang Ragay Maheshwaray,
Nityaay shudhhay digambaraay,
Tasmai na karay namah Shivaay.1.

Mandakini Salila chandan Charchitaay,
Nandishwar Pramathnath maheshwaraay,
Mandaar pushpa bahupushpa supujitaay,
Tasmai ma kaaray namah Shivaay.2.

Shivaay gouri vadanabj vrind,
Suryaay dakshadhwar naashkaay,
shri nilkanthaay vrishdwajaay,
Tasmai shi karay namah Shivaay.3.

Vashishth Kumbhodbhav goutamaary,
Munindra Devarchita shekharaay,
Chnadrark Vaishwa Naralochanaay,
Tasmai va karay Namah Shivaay.4.

Yaksha swarupaay Jatadharaay,
Pinaak hastaay Sanatanaay,
Divyaay Devaay digambaraay,
Tasmai ya karay namah Shivaay.5.

Panchaksharmidam punyam yah pathechhiv Sannidhhou,
Shivlokama vaapnoti Shiven Sah Modate.

Related Posts-
Aditya Hrudayam in Sanskrit


Tags: shiva panchakshar stotram, panchaakshar stotra, panchakshara mantra meaning hindi

Tuesday, March 26, 2019

Shri Suktam in Sanskrit, Hindi श्री सूक्त अर्थ सहित

श्री सूक्त 'पञ्च सूक्तों' में से एक है, ( पंच सूक्त - पुरुष सूक्तम, विष्णु सूक्तम, श्री सूक्तम, भू सूक्तम, नील सूक्तम )। देवी महालक्ष्मी को समर्पित यह स्तोत्र ऋग्वेद से लिया गया है। देवी की कृपा से सुख प्राप्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। यहाँ श्री सूक्त हिंदी और english में अर्थ सहित ( with meaning ) दिया गया है।

यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि श्री सूक्त तीन प्रकार से मिलते हैं जिनमे कुछ श्लोकों का और इनकी रचना के समय का अंतर है। प्रमुख रूप से इस स्तोत्र के तीन प्रकार हैं -
1. पहले प्रकार में श्लोक १-१५  तक है, यह प्राचीन और मूल स्तोत्र है।
2. दूसरे प्रकार में 1-29 श्लोक हैं।
3. तीसरा प्रकार श्री सूक्त का नवीनतम रूप है जिसमे लगभग 37 श्लोक हैं।

इस page पर श्री सूक्तम का दूसरा प्रकार दिया गया है जो Divyajivan.org से लिया गया है।

Shri Suktam in hindi -

।। अथ श्री सूक्तम् ।। 

 ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम।
यस्या हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषताम ।३।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्दा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।४।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।५।

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः।६।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मिराष्ट्रेऽस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।७।

क्षुप्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाश्याम्यहम।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात।८।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरी सर्वभूतानांतामिहोपह्वये श्रियम।९।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।१०।

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम।११।

आपः सृजन्तु स्नि-ग्धानि चिक्लीत वस् में गृहे।
निच देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।१२।

आर्द्रां पुष्करिणीम पुष्टिंपिँगलां पद्ममालिनीं।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१३।

आर्द्रां यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीं।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१४।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्र्वान् विन्देयं पुरुषान्हम्।१५।

यः शुचि प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्।१६।

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम।१७।

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।१८।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयिसन्निधत्सव।१९।

पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम्।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मन्तं करोतु मे।२०।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो वृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु मे।२१।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः।२२।

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृत पुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तम जपत्।२३।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्य शोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यं।२४।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधव प्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्।२५।

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।२६।।

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः।२७।

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्सव।२८।

श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु।
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजन्ति सद्यः सवितो विदध्यून्।२९।

श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति।
सन्ततमृचा वषट्कृत्यं संधत्तं संधीयते प्रजया पशुभिः य एवं वेद।३०।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात।३१।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

Related Posts-
Siddha Kunjika Stotram with meaning
AshtaLakshmi Stotram in Hindi
KanakaDhara Stotram in Sanskrit hindi meaning

Thursday, January 3, 2019

Aditya Hridaya Stotra lyrics in hindi आदित्य हृदय स्तोत्र

Aditya hrudayam
आदित्य ह्रदय स्तोत्र अगस्त्य ऋषि की रचना है और भगवान सूर्य को समर्पित यह स्तोत्र शक्ति और बुद्धि का संचार करने वाला है यह स्तोत्र मुनि अगस्त्य ने, जब भगवान् श्री राम युद्ध से थककर खड़े थे, तब श्री राम से कहा था। इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन सुबह सूर्योदय के समय में करना सबसे अच्छा माना जाता है . आदित्य ह्रदय की lyrics यहाँ दी गयी है इसी के साथ इस स्तोत्र की english lyrics भी नीचे दी गयी है।

Aditya Hridaya Stotra ( Aditya hrudayam ) lyrics in Hindi / sanskrit-

विनियोगः
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।।

ध्यानम्-
नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,
जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,
विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ।।१।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्या ब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः ।।2।।

उधर थककर चिंता करते हुए श्री राम जी रणभूमि में खड़े थे, उतने में रावण भी  युद्ध के लिए उनके सामने आ गया। यह देखकर अगस्त्य मुनि श्री राम चंद्र जी के पास गए और इस प्रकार बोले।।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ।।3।।
आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम् ।
जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम् ।।4।।

सभी के हृदय में रमण करने वाले ( बसने वाले ) हे महाबाहो ( लम्बी भुजाओं वाले ) राम ! यह गोपनीय स्तोत्र सुनो। इस स्तोत्र के जप से तुम अवश्य ही शत्रुओं पर विजय पाओगे।। यह आदित्य ह्रदय स्तोत्र परम पवित्र और सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला है। इसके जप से सदा ही विजय की प्राप्ति  होती है। यह नित्य अक्षय तथा परम कल्याणकारी स्तोत्र है।।

सर्वमङ्गल माङ्गल्यं सर्व पाप प्रणाशनम्।
चिन्ताशोक प्रशमनम् आयुर्वर्धन मुत्तमम् ।।5।।
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।।6।।

 यह सभी मंगलों में भी मंगल और सभी पापों का नाश करने वाला यह स्तोत्र चिन्ता और शोक को मिटाने वाला और आयु को बढ़ाने वला है।। जो अनंत किरणों से शोभायमान ( रश्मिमान ), नित्य उदय होने वाले ( समुद्यंत ), देवों और असुरों दोनों के द्वारा नमस्कृत हैं, तुम विश्व में अपनी प्रभा ( प्रकाश ) फैलाने वाले संसार के स्वामी ( भुवनेश्वर ) भगवान् भास्कका पूजन करो।। 

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुर गणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः ।।7।।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ।।8।।

सभी देवता इनके रूप हैं, ये देवता ( सूर्य ) अपने तेज और किरणों से जगत को स्फूर्ति प्रदान करते हैं। ये ही अपनी किरणों ( रश्मियों ) से देवता और असुरगण आदि सभी लोकों का पालन करते हैं।। ये ही ब्रह्मा, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, समय, यम, चन्द्रमा, वरुण आदि को प्रकट करने वाले हैं।।

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः ।।9।।
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुः हिरण्यरेता दिवाकरः ।।10।।

ये पितरों, वसु, साध्य, अश्विनीकुमारों, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण और ऋतुओं को जन्म देने वाले प्रभा के पुंज हैं। इनके नाम आदित्य, सविता ( जगत को उत्पन्न करने वाले ), सूर्य (सर्व व्याप्त), खग, पूषा, गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश, भानु, हिरण्येता, दिवाकर और।।

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्ति-र्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुः त्वष्टा मार्ताण्डको‌ऽशुमान् ।।11।।
हिरण्यगर्भः शिशिरः तपनो भास्करो रविः ।
अग्निगर्भो‌दितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ।।12।।

हरिदश्व, सहस्रार्चि, सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले ), मरीचिमान (किरणों से सुशोभित ), तिमिरोमन्थन (अंधकार का नाश करने वाले ), शम्भु, त्वष्टा, मार्तन्डक, अंशुमान, हिरण्यगर्भ, शिशिर ( स्वाभाव से सुख प्रदान करने वाले ), तपन ( गर्मी उत्पन्न करने वाले ), भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितीपुत्र, शङ्ख, शिशिरनाशन (शीत का  करने वाले ) और।।

व्योमनाथ स्तमोभेदी ऋग्यजुःसाम-पारगः ।
धनावृष्टि-रपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः ।।13।।
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ।।14।।

व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र ( जल उत्पन्न करने वाले ), विन्ध्यवीथिप्लवंग (आकाश में तीव्र गति से चलने वाले ), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल ( जिनका भूरा रंग है ), सर्वतापन (सभी को तप देने वाले ), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सब की उत्पत्ति के कारण ) हैं।।

नक्षत्र ग्रह ताराणाम् अधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्-नमोऽ‌स्तु ते ।।15।।
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।।16।।

नक्षत्र, ग्रह और तारों के अधिपति, विश्वभावन ( विश्व की रक्षा करने वाले ), तेजस्वियों में भी तेजस्वी और द्वादशात्मा को नमस्कार है।। पूर्वगिरि उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों ( तारों और ग्रहों ), के स्वामी तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है।।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ।।17।।
नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ।।18।।

जो जय के रूप हैं, विजय के रूप है, हरे रंग के घोड़ों से युक्त रथ वाले भगवान् को नमस्कार है। सहस्रों किरणों से प्रभावान आदित्य भगवान को बारम्बार नमस्कार है।। उग्र, वीर तथा सारंग सूर्य देव को नमस्कार है। कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेज वाले मार्तण्ड को  नमस्कार है।।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्य-वर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ।।19।।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नाया मितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ।। 20।।

आप ब्रम्हा, शिव  विष्णु के भी स्वामी हैं, सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है आप प्रकाश  से परिपूर्ण हैं। सबको स्वाहा करने वाली अग्नि स्वरुप हे रौद्र रूप आपको नमस्कार है।। अज्ञान, अंधकार के नाशक, शीत  के निवारक तथा शत्रुओं के नाशक आपका रूप अप्रमेय है। कृतघ्नों का नाश करने वाले देव और सभी ज्योतियों के अधिपति को नमस्कार है।।

तप्त चामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमो‌ऽभि निघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ।। 21।।
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ।। 22।।

आपकी प्रभा तप्त स्वर्ण के समान है आप ही हरि ( अज्ञान को हरने वाले ), विश्वकर्मा ( संसार की रचना करने वाले ), तम ( अँधेरा ) के नाशक, प्रकाशरूप और जगत के साक्षी आपको नमस्कार है।
हे रघुनन्दन, भगवान् सूर्य देव ही सभी भूतों का संहार, रचना और पालन करते हैं। यही देव अपनी रश्मि (किरणों ) से तप ( गर्मी ) और वर्षा  हैं।।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्नि होत्रिणाम् ।। 23।।
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ।।24।। 

यही देव सभी भूतों में अन्तर्स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं, यही अग्निहोत्री कहलाते हैं और अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।
ये ही वेद, यज्ञ और यज्ञ से मिलने वाले फल हैं, यह देव सम्पूर्ण लोकों की क्रियाओं का फल देने वाले हैं।।

फलश्रुति

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्-नावशीदति राघव ।।25।।
पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ।।26।।

राघव! विपत्ति में, कष्ट में, कठिन मार्ग में और किसी भय के समय जो भी सूर्य देव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं सहना ( भोगना ) पड़ता।
तुम एकाग्रचित होकर इन जगतपति देवादिदेव का पूजन करो, इसका ( आदित्य हृदय स्तोत्र ) तीन बार जप करने से तुम अवश्य ही युद्ध में विजय पाओगे।।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि ।
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ।।27।।
एतच्छ्रुत्वा महातेजाः नष्टशोको‌ऽभवत्-तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ।।28।।

हे महाबाहो ! इसी क्षण तुम रावण का वध कर सकोगे, इस प्रकार मुनि अगस्त्य जिस प्रकार आये थे उसी प्रकार लौट गए।
तब इस प्रकार [अगस्त्य मुनि का उपदेश ] सुनकर महातेजस्वी राम जी का शोक दूर हो गया, प्रसन्न और प्रयत्नशील होकर।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ।।29।।
रावणंप्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतो‌ऽभवत् ।।30।।

परम हर्षित और शुद्धचित्त होकर उन्होंने भगवान सूर्य की ओर देखते हुए तीन बार आदित्य ह्रदय स्तोत्र  का तीन बार जप किया।
तत्पश्चात राम जी ने धनुष उठाकर युद्ध के लिए आये हुए रावण को देखा और उत्साह से भरकर सभी यत्नो से रावण के निश्चय किया।।

अथ रविरवदन्-निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपति सङ्क्षयं विदित्वा सुरगण मध्यगतो वचस्त्वरेति।।३१।।

तब देवताओं के मध्य में खड़े हुए सूर्य देव ने प्रसन्न होकर श्री राम की ओर देखकर निशाचराज ( राक्षस के राजा ) के विनाश का समय निकट जानकर प्रसन्नता पूर्वक कहा "अब जल्दी करो"।।

।। इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मिकीये आदिकाव्ये युद्दकाण्डे पञ्चाधिक शततम सर्गः।। 


Related Posts-
Mahishasura Mardini Stotram lyrics
Rudrashtakam ( Shivashtakam ) in hindi
Sidhha Kunjika Stotram
Shri Surya Chalisa in Hindi

Tags: Aditya hridayam, Shri Surya Aditya hidaya Stotram, Aditya hridaya stotra

Sunday, December 30, 2018

Shiv Tandav Stotram lyrics in Hindi with meaning- शिव तांडव स्तोत्र

Shiva tandav stotram
Lord Shiva

Shri Shiv Tandav Stotram is one of the most popular hymn (mantra) of lord Shiva. When Ravana wanted to take the whole Kailash with him to his kingdom Lanka, Lord Shiva pressed whole mountain with his left thumb and Ravana (रावण) got trapped under the mountain Kailasha. So, to please lord Shiva, he orated the Tandav Stotra and Shiva pleased on him. Lyrics of Tandav Stotram is as written down in hindi and then english.

NOTE: There are two version of Shiva Tandava- one with 15 shlokas and another with 17 shlokas. Shloka 14 and 15 are not used by some people. Here, 17 Shlokas arewritten. If you want to read Tandava Stotra with 15 Shlokas then please skip Shloka no. 14 and no. 15.

Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi and english (with meaning)-

।। अथ श्री शिव तांडव स्तोत्रम ।।

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले।
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम् ।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्निनाद वड्-डमर्वयं।
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।

 उनके बालों से बहने वाले जल से जिनका कंठ पवित्र है, जिनके गले में सांप एक माला की तरह लटका हुआ है और जिनके डमरू से डमड-डमड का नाद हो रहा है, शिव प्रचंड तांडव कर रहे हैं, वे हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

जटा कटाहसंभ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी।
विलोलवीचि वल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्ललाट पट्ट्पावके।
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिःक्षणम् मम।।२।।

गंगा की धारा से युक्त जिनकी लम्बी जटाएं [चक्कर में, round and round] घूम रही है, उनके बालों की लटें [गंगा की] लहरों की भांति लहरा रही हैं, जिनका मस्तक दीप्तिमान है जिस पर धगद-धगद की आवाज करती हुई अग्नि [तीसरा नेत्र] विराजित है, जिस [मस्तक] के शिखर पर अर्धचंद्र सुशोभित है, ऐसे शिव का तांडव प्रति क्षण मेरे मन में आनंद उत्पन्न कर रहा है।

धराधरेन्द्र नंदिनी विलासबन्धु वन्धु-
रस्फुरद्-दिगन्त संतति प्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्ष-धोरणी निरुद्ध-दुर्धरापदि।
क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि।।३।।

 पर्वतराज (हिमालय) की पुत्री (पार्वती) जिनकी अर्धांगिनी हैं, जिस तांडव से सारा संसार कांपने लगता है उसकी सूक्ष्म तरंगें मेरे मन में सुख की लहरें उत्पन्न कर रही हैं, वे शिव जिनके कटाक्ष [तिरछी नजर] से बड़ी-बड़ी आपदाएं भी टल जाती हैं, जो दिगंबर हैं, मेरा मन उन ध्यान में आनंद प्राप्त करे।

जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुंम-द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे।
मनो विनोदमद्-भुतं विंभर्तुभूत-भर्तरि।।४।।

 जिनकी जटा पर लाल-भूरे सर्प अपना मणियों से चमकता फन फैलाये हुए बैठे हैं जो सभी की देवियों के चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जिनका ऊपरी वस्त्र मंद पवन में मदमस्त हाथी के चर्म (skin) की भांति हिल रहा है, जो सभी जीवों के रक्षक हैं मेरा मन उनके इस तांडव से पुलकित हो रहा है।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः।
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः।।५।।

 जो नाचते हुए अपने पैरों की धूल से सहस्र लोचन (जिनके हजार नेत्र हैं अर्थात इंद्र) आदि देवताओं पर कृपा करते हैं, धरती पर नाचने से जिनके पैर भूरे रंग के हो गए है, जिनकी जटा सर्पराज की माला से बंधी है, चकोर पक्षी के मित्र चन्द्रमा जिनके मस्तक पर शोभित हैं, वे हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

ललाट चत्वरज्व-लद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं।
महा कपालि संपदे शिरोजटालमस्तु नः।।६।।

जिनके ललाट पर अग्नि की चिंगारी जल रही है और अपनी दीप्ति फैला रही है, इस अग्नि ने कामदेव के पांच तीरों को नष्ट कर कामदेव को भस्म कर दिया था, जो अर्ध चंद्र से सुशोभित हैं उनकी जटाओं में स्थित सम्पदा हमें प्राप्त हो।

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्जवलद्ध-
नंजया धरीकृत प्रचण्डपंचसायके।
धराधरेन्द्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।

 उनके  कराल (डरावने) मस्तक के तल पर धगद-धगद की ध्वनि करती हुई अग्नि जल रही है जिसने पांच तीर वाले (कामदेव) को नष्ट कर दिया था, तांडव की कदमताल से धरती (जो कि पर्वत पुत्री पार्वती का अंश है) के वक्ष पर सजावटी रेखाएं खिंच गयी हैं, मेरा मन त्रिनेत्रधारी शिव के इस तांडव से अत्यंत प्रसन्न है।

नवीनमेघ मंडली निरुद्ध-दुर्धरस्फुरत्कुहु-
निशीथनीतमः प्रबद्धबद्ध कन्धरः।
निलिम्पनिर्झरी धरस्तनोतु-कृत्ति-सिन्धुरः।
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः।।८।।

महान तांडव के स्पंदन (धड़क) से शिव की गर्दन बादलों की परतों से ढकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है, हे गंगा को धारण करने वाले, हे गजचर्म पहनने वाले, हे अर्धचंद्रधारी, हे सारे संसार का भार उठाने वाले शिव! हमें सम्पन्नता प्रदान करें।

प्रफुल्ल नील पंकज-प्रपंचकालिमप्रभा ।
विडंबि कंठकंधरारुचि प्रबन्धकंधरम्।
रमच्च्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं।
गजच्छिदान्ध कच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे।।९।।

ब्रह्माण्ड की काली चमक (हलाहल विष) उनके गले में नीले कमल की तरह प्रतीत हो रहा है और करधनी की भाँती प्रतीत हो रहा है जिसे उन्होंने स्वयं रोक रखा है, जिन्होंने स्मर (कामदेव) और त्रिपुरासुर का अंत किया, जो सांसारिक बंधनों को नष्ट करते हैं, जिन्होंने दक्ष, अंधकासुर और गजासुर को विदीर्ण किया और यम को पराजित किया था मैं उन शिव की पूजा करता हूँ।

अखर्व(अगर्व) सर्वमंगला कलाकदंबमञ्जरी।
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं।
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।१०।।

वे सभी की सम्पन्नता के लिए कभी न कम होने वाले मंगल का भण्डार हैं, वे सभी कलाओं के स्रोत हैं, कदम्ब के फूलों से आने वाली शहद की सुगंध के कारण उनके चारों ओर मधुमक्खियां घूमती रहती हैं, जिन्होंने स्मर (कामदेव) और त्रिपुरासुर को नष्ट किया, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त करते हैं, जिन्होंने दक्ष, अंधकासुर और गजासुर का अंत किया और यम को पराजित किया था मैं उन शिव की पूजा करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फु-
रद्-धगद्-धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन्मृदंग-तुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंड ताण्डवः शिवः।।११।।

उनकी भौहें आगे-पीछे गति कर रही हैं जो तीनों लोकों पर उनके स्वामित्व को दर्शाती हैं, उनकी गर्दन पर फुफकार मारते हुए सांप लोट रहे हैं, उनके मस्तक पर डरावनी तीसरी आँख यज्ञ की अग्नि की भाँति धड़क रही है, मृदंगों से लगातार धिमिध-धिमिध की ध्वनि हो रही है और इस ध्वनि पर शिव तांडव कर रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्र-
जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्।१२।।

 मैं आरामदायक बिस्तर और कठोर भूमि का स्पर्श में समानता कब देखूंगा? मैं मोतियों के हार और साँपों के हार को समान रूप से कब देखूंगा? मैं मित्र और शत्रु में एकरूपता कब देखूंगा? मैं कब सुन्दरता और कुरूपता को सामान दृष्टि से कब देखूंगा? मैं कब सम्राट और सामान्य लोगों को एकरूपता से देखूंगा? मैं दृष्टि और आचरण की समानता से सदाशिव की पूजा कब करूँगा?

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्।
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः।
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।

मैं कब मन के पापयुक्त स्वभाव से मुक्त होकर गंगा के किनारे घने जंगलों की गुफाओं में दोनों हाथों को सर पर रखकर शिव की तपस्या में लीन रहूँगा? मैं कब नेत्रों के भटकाव (काम भावना) से मुक्त होकर माथे पर तिलक लगाकर शिव की पूजा करूँगा? मैं कब शिव के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए सुखी होऊंगा?

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं-महनिशं।
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः।।१४।।

 देवांगनाओं के सिर में गुंथे कदम्ब के पुष्पों की मालाओं के झड़ते सुगन्धित पराग से मनोहर, शोभा के धाम महादेव के अंगों की सुंदरता आनंदयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सदा बढ़ाती रहे।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी।
महाष्टसिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः।
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्।।१५।।

बड़वानल (समुद्र की अग्नि) की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों और चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गयी मंगल ध्वनि सब पर मन्त्रों में श्रेष्ठ शिव मन्त्र से परिपूर्ण होकर हम सांसारिक दुखों को नष्ट कर विजय पाएं।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं।
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिम्।
विमोहनं हि देहनाम् तु शंकरस्य चिन्तनम।।१६।।

पवित्र मन से शिव का मनन (चिंतन) करके इस महान से भी महानतम स्तव ( स्तोत्र ) का जो भी नित्य अखंड पाठ करता है, गुरु शिव उस की ओर गति करते हैं, उस शिव की भक्ति प्राप्त होती है, इस भक्ति को पाने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है, शिव के मनन से ऐसे व्यक्ति का मोह नष्ट हो जाता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं।
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां।
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः।।१७।।

शम्भू (शिव) की पूजा की समाप्ति के समय शाम को जो दशानन रावण के इस स्तोत्र (छंद) का पाठ करते हैं, जो इस पूजा में दृढ़ रहते हैं वे हाथी घोड़ों के रथ पर चलते हैं (सम्पन्नता दर्शाने के लिए. देवी लक्ष्मी की कृपा उन पर बनी रहती है, श्री शम्भू उन पर वरदान बनाये रखते हैं।

।। इति रावण रचितं शिव तांडव स्तोत्रं सम्पूर्णम।।

Monday, December 24, 2018

भैरो बाबा की आरती Bhairo Baba ki Arti, सुनो जी भैरव लाडले

bhairo baba ki arti
bhaairo baba

भैरो बाबा की आरती (Bhairav Baba ki aarti)

सुनो जी भैरव लाडले, कर जोड़ कर विनती करूँ
कृपा तुम्हारी चाहिए , में ध्यान तुम्हारा ही धरूँ

मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन सुन लीजिए
मैं हूँ मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो कीजिए

महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ
सुनो जी भैरव लाडले...

करते सवारी श्वानकी, चारों दिशा में राज्य है
जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं |
हथियार है जो आपके, उनका क्या वर्णन करूँ
सुनो जी भैरो लाडले...

माताजी के सामने तुम, नृत्य भी करते हो सदा
गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा
एक सांकली है आपकी तारीफ़ उसकी क्या करूँ
सुनो जी भैरो लाडले...

बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है
आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है
श्री प्रेतराज सरकारके, मैं शीश चरणों मैं धरूँ
सुनो जी भैरव लाडले...

निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें
सर पर तुम्हारे हाथ रखकर आशीर्वाद देती रहे

कर जोड़ कर विनती करूँ अरुशीश चरणों में धरूँ
सुनो जी भैरव लाड़ले, कर जोड़ कर विनती करूँ

Bhairav Ji Ki Aarti (bhairo baba aarti)-


Suno ji bhairav ladle kar jod kar vinti karun,
Kripa tumhari chahiye, mein dhyaan tumhara hi dharun,

Mein charan choota aapke, arji meri sun leejiye,
mein hun mati ka mand, meri kuch madad to keejiye,

mahima tumhari bahut, kuch thodi si me barnan karun,
suno ji bhairo ladle...

karte sawari shwaan ki, chaaron disha me rajya hai,
jitne bhoot or pret, sabke aap hi sartaaj hai,
hatiyaar hai jo aapke, unka mein kya warnan karun,
suno ji bhairo ladle...

mataji ke saamne tum, nritya bhi karte ho sada,
ga ga ke gun anuvaad se, unko rijhaate ho sada,
ek saankali hai aapki, taarif uski kya karun,
suno ji bhairav ladle...

bahut si mahima tumhari, mehndipur sarnaam hai,
aate jagat ke yaatri bajrang ka sthaan hai,
shree pretraj sarkar ke, me shees charno me dharun,
suno ji bhairav ladle...

Nishdin tumhare khel se, mata ji khush  hoti rahen,
sir per tumhare haath rakhkar asheerwad deti rahein,
kar jor kar vinti karun aru sheesh charno me dharun,
suno ji bhairav laadle, kar jod kar vinti karun.

Related Posts-
Pretraj Sarkar ki Aarti lyrics
Jai Hanumat Veera lyrics (Balaji ki Aarti)
Arti- Le lo ye arti ki thali ho Jagdambe ambe

Tags: Suno ji bhairav ladle lyrics in hindi, aarti,