Thursday, September 3, 2020

Shri Surya Chalisa in Hindi सूर्य चालीसा लिरिक्स

Surya Chlisa

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Surya Chalisa lyrics in Hindi-

 दोहा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख-चक्र के संग।

चौपाई-
जय सविता जय जयति दिवाकर,सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।1।
 भानु पतंग मरीचि भास्कर, सविता हंस सुनूर विभाकर।2।

विवस्वान आदित्य विकर्तन, मार्तंड हरिरूप विरोचन ।3।
अम्बरमणि खग रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।4।

सहस्रांशु प्रद्योतन कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।5।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।6।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।7।
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरंदर लज्जित होते।8।

मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर, सविता सूर्य अर्क खग कलिकर।9।
 पूषा रवि आदित्य नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै ।10।

द्वादस नाम प्रेम सौं गावै, मस्तक बारह बार नवावै ।11।
चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै।12।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि-हरिहर को कृपासार यह।13।
सेवै भानु तुमहि मन लाइ, अष्ट सिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।14।

बारह बार उच्चारण करते, सहस जनम के पातक टरते ।15।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।16।

धन सूत जुत परिवार बढ़त है, प्रबल मोह को फंद कटत है।17।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते ।18।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत ।19।
भानु नासिका वास करहु नित,भास्कर करत सदा मुख को हित।20।
 
ओंठ रहैं परजन्य तुम्हारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।21।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्म तेजसः काँधे लोभा ।22।

पूषा बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा वरुण रहत सु-उष्णुकर।23।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सु-उदरचन।24।

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कतिमंह रहत मन मुदभर ।25।
जंघा गोपति सविता वासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।26।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।27।
सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे ।28।

अस जोजन अपने मन मांही, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं।29।
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहुं न व्यापै, जो जन याको मन मंह जापै।30।

अन्धकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनंद भरता।31।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवों ताही।32।

मंद सदृश सुत जग में जाके, धर्मराज सम अदभुत बांके।33।
धन्य धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।34।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।35।
परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।36।

अरुणमाघ मंह सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन।37।
भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इंद्र अषाढ़ रवि गावै।38।
 
यम भादों अश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।39।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूषहिं, पुरुष नाम रवि हैं मल मासहिं।40।

दोहा-
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख संपत्ति लहि बिबिध, होहिं सदा कृतकृत्य।।
 
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Surya Chalisa Lyrics in English

DOHA-
Kanak badan kundal makar, mukta mala ang.
Padmaasan sthita dhyaaiye, shankh-chakra ke sang.

CHAUPAI-

Jay Savita jay jayati diwakar, sahasranshu saptaashva timirhar.
Bhaanu patang mareechi bhaskar, savita hans sunoor vibhaakar .2

vivasvaan aaditya vikartan, maartand hariroop virochan.
ambarmani khag ravi kehlaate, ved hiranyagarbh kah gaate .4

sahasranshu pradyotan kahi kahi, munigan hot prasann moda lahi.
arun sadrisha saarathi manohar, haankat hay saata chadhi rath par .6

mandal ki mahima ati nyaari, tej roop keri balihaari.
ucchaishravaa sadrish hay jote, dekh purandar lajjit hote .8

mitra mareechi bhaanu arun bhaaskar, savita soory ark khag kalikar.
poosha ravi aaditya naam lai, hirangarbhaay namah kahi kai .10

dwaadas naam prem so gaavai, mastak baarah baar navavai.
chaar padaarath jan so paavai, dukh daaridra agh punj nasaavai .12

namaskar ko chamatkaar yah, vidhi-harihar ko kripasaar yah.
sevai bhaanu tumahi man laai, ashta siddhi navanidhi tehin paai .14

baarah baar uchaaran karte, sahas janam ke paatak tarate.
upaakhyan jo karte tavajan, ripu son jamalahate sotehi chan .16

dhan sut jut parivar badhat hai, prabal moh ko fand katat hai.
ark sheesh ko raksha karte, ravi lalaat par nitya baharate .18

soory netra par nitya viraajat, karna des par dinkar chaajat.
bhaanu naasika vaas karahu nit, bhaaskar karat sadaa mukh ko hit .20

onth rahen parjanya tumhaare, rasna beech teekshn bas pyaare.
kanth suvarnret ki shobha, tigma tejasah kaandhe lobha .22

poosha baahu mitr peethanhin par, tvashtaa varun rehet su-ushnukar.
yugal haath par raksha kaaran, bhaanumaan ursarma su-udarachan .24

basat naabhi aaditya manohar, katimanh rehet man mudabhar.
janghaa gopati savita vaasa, gupt diwakar karat hulaasa .26

vivasvaan pad ki rakhvaari, baahar basate nit tam haari.
sahasraanshu sarvaang samhaarai, raksha kavach vichitr vichaare .28

as jojan apne man maanhi, bhay jagbeech karahun tehi naaheen.
dadru kushth tehin kabahun na vyaapai, jo jan yaako man manh jaapai .30

andhakaar jag ka jo harta, nav prakash se aanand bharta.
grah gan grasi na mitaavat jaahi, koti baar main pranavon taahi .32

mand sadrish sut jag men jaake, dharmraaj sam adbhut baanke.
dhany dhany tume din mani deva, kiya karat sur-muni-nar seva .34

bhaktibhav yut purna niyam saun, door hatat so bhav ke bhram saun.
param dhany saun nar tandhaari, hain prasanna jehi par tam haari .36

arun maagh manh surya faalgun, madhu vedaang naam ravi udayan.
bhaanu uday vaisaakh ginaavai, jyeshth indra ashaadh ravi gaavai .38

yam bhaadon ashvin himreta, kaatik hot divaakar neta.
agahan bhinn vishnu hain pushahin, purush naam ravi hain malmaasahin .40

DOHA-
bhanu chalisa prem yut, gaavahin je nar nitya.
sukh sampatti lahi bibidh, honhi sadaa krikritya.

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Saturday, August 29, 2020

Ganga Stotram Lyrics in Sanskrit with Hindi Meaning

Maa ganga

 Ganga Stotram lyrics in Hindi-

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तवपदकमले।1। 

हे देवों की देवी भगवती गंगा! तुम तीनों लोकों को तारने वाली हो, तुम तरल लहरों से युक्त हो, हे शंकर के शीश पर विहार करने वाली विमला (जो पूर्ण रूप से स्वच्छ हो), मेरी भक्ति सदा तुम्हारे चरणों में स्थापित रहे।।

भागिरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानं ।2। 

हे भागीरथी, सुखदायिनी, माँ! तुम्हारे जल की महिमा ग्रंथों में प्रशस्त है, मैं तुम्हारी महिमा नहीं जानता, मेरे इस अज्ञानता के बाद भी मेरी रक्षा करो।।

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्क्रतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारं ।3।

 हे गंगे! तुम श्रीहरि के चरणों से तरंग के रूप में निकली हो, तुम्हारी तरंग हिम (बर्फ), चन्द्र और हीरे के समान है, मेरे बुरे कर्मों से मेरे मन पर जो बोझ है उसे दूर करो और अपनी कृपा करके मुझे इस भवसागर से पार करो।।

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं  खलु तेन ग्रहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रुष्टुं न यमः शक्तः ।4। 

जो तुम्हारे शुद्ध जल को पीता है उसे अवश्य ही परमपद की प्राप्ति होती है, हे माता गंगे! जो तुम्हारा भक्त होता है उस पर यम भी नजर नहीं डाल पाता है ।।

पतितोद्धारिणी जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।5।

हे जाह्नवी गंगे! तुम पतितों का उद्धार करती हो, तुम हिमालय (गिरिवर) को काटकर उसे सुन्दर बनाती हो, हे भीष्म को उत्पन्न करने वाली मुनि कन्या (जाह्नु ऋषि की कन्या), तुम पतितों की रक्षा करती हो और तीनों लोकों को समृद्ध करती हो।।

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ।6।

तुम कल्पलता की भाँति विश्व को फल प्रदान करती हो, जो तुम्हें प्रणाम करता है वह कभी शोक में नहीं गिरता है, तुम समुद्र में इस प्रकार विहारती (मिल जाती) हो जिस प्रकार कोई अविवाहित कन्या तिरछी नजरें करके अपने मार्ग से मुड़ जाती है।।

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोSपि न जातः।
नरकनिवारिणि जाहनवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ।7।

 हे माता! जो तुम्हारे तुम्हारे शुद्ध जल की धार में एक बार स्नान कर लेता है, वह दूसरी बार किसी के पेट से जन्म नहीं लेता (उसका पुनर्जन्म नहीं होता), हे जाह्नवी गंगे! तुम नरक से छुड़ाती हो, तुम अशुद्धियों का नाश करती हो, तुम्हारी महिमा ऊँची है।।

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भ्रत्यशरण्ये ।8।

अपनी पवित्र लहरों से अशुद्ध शरीर को पुनः शुद्ध करने वाली हे करुणामयी दृष्टि वाली जाह्नवी! तुम्हारी जय हो-जय हो, इंद्र के मुकुट की मणि तुम्हारे चरणों में विराजित है, तुम अपने शरणागत को सुख प्रदान करती हो, शुभ प्रदान करती हो।।

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलुं संसारे ।9।

हे भगवती! मेरे रोग, शोक, ताप (पीड़ा), पाप और मेरी कुमति को हर लो, तीनों लोकों की समृद्धि हो, पृथ्वी का हार हो और मेरा आश्रय हो।।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातर्वन्दये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ।10।

हे अलकनंदा! हे परमानंद स्वरूपिणी! हे दीन-दुखियों से वन्दित करुणामयी देवी! मेरी विनती सुनो, जो तुम्हारे किनारों पर निवास करता है वह मानो वैकुण्ठ में निवास करता है।।

 वर्मिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः।11।

 तुम्हारे निकट कछुआ, मछली, कमजोर गिरगिट या मलिन (छोटा) जीव बनकर रहना भी तुमसे दूर एक राजा बनकर रहने से अच्छा है।।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गङ्गास्तवमिमम-अमलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ।12।

हे भुवनेश्वरी! पुण्य प्रदान करने वाली, समृद्धि प्रदान करने वाली, हे जलरूपिणी (द्रवमयी) मुनि कन्या! जो इस निर्मल गंगा स्तव (गंगा स्तोत्र) का नित्य पाठ करता है, वह सच्ची सफलता प्रात करता है।।

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः।
मधुराकान्तापञ्झटिकाभिः परमानन्दकलित-ललिताभिः।13।

जिसके मन में देवी गंगा की भक्ति होती है उसे सदा मुक्ति का सुख प्राप्त होता है, यह मधुर, सुखप्रद गंगा स्तोत्र जो पझ्झटिका छंद में लिखा गया है, यह कलित(कलारहित)-ललित (सरल) परमानंद के समान है।।

गङ्गा स्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छित-फलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवक-शङ्कररचितम् पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः ।14।

यह गंगा स्तोत्र इस ब्रह्माण्ड का सार है, वांछित फलकी प्राप्ति कराने वाला है और परम शुद्ध है, शंकरसेवक (आदि शंकराचार्य) द्वारा रचित इस स्तोत्र को जो पढता है वह सुखी होता है, इस प्रकार यह स्तव [समाप्त] है।।

Benefits by Ganga Stotram:

 By reciting this hymn called Shri Ganga Stotram, one can achieve peace of his mind and get rid of the burden (in mind) of evil-deeds he/she have done in past. Reading this Stotra in the morning is assumed to be even more auspicious. May Bhagwati Ganga shower us with joy and holyness. Some people also find it favorable to chant when bathing.


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Monday, August 10, 2020

Ganesha Pancharatnam lyrics in English and Sanskrit with Meaning

Shri Ganesha

Shri Ganesha Pancharatnam Lyrics:

Mudakaraata modakam, Sadaa Vimukti Saadhakam,
Kalaa-dharaa-vatamsakam, Vilaasi Loka Rakshakam.
Anaayakaika-naayakam, Vinaashitebhadaityakam,
Nataashubhaashu naashakam namaami tam vinaayakam. 1

मुदकरात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम्
कला धरावतंसकं विलासि-लोकरक्षकम्
अनायकैक-नायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकम् नमामि तं विनायकम्।1।

Natetaraati-bheekaram Navodita-ark Bhaasvaram,
Namatsuraari nirjaram nataadhika-ap Dud-dharam.
Sureshwaram Nidheeshwaram Gajeshwaram Ganeshwaram,
Maheshwaram Tamaashraye Paraatparam Nirantaram. 2

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्क-भास्वरम्
नमत्सुरारि निर्जरम् नताधिकापदुद्धरम्
सुरेश्वरम् निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरम् तमाश्रये परात्परं निरन्तरम्।2।

Samasta-loka Shankaram Nirasta-Daitya Kunjaram,
Dare-taro-daram varam, Vare-bhavatra-maksharam.
Kripakaram Kshamakaram Mudakaram Yashaskaram,
Manaskaram Namaskritaam Namas- karomi Bhaaswaram. 3

समस्तलोकशङ्करम् निरस्तदैत्यकुञ्जरम्
दरेतरोदरम् वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरम् यशस्करम्
मनस्करं नमस्कृताम् नमस्करोमि भास्वरम्।3।

Akimchana-arti Maarjanam Chirantano-okti Bhaajanam,
Puraari Purva-nandanam, Suraarigarva-charvanam.
Prapancha-naasha Bheeshanam Dhananjayaadi-Bhushanam,
Kapola-daana vaaranam, bhaje purana-vaaranam. 4

अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनम् सुरारिगर्व चर्वणम्
प्रपञ्चनाश-भीषणम् धनञ्जयादि भूषणम्
कपोलदानवारणं भजेपुराणवारणम्।4।

Nitaanta-Kaanta-Danta-Kaanti-Manta-Kaanta-Kaatamajam,
Achintya Roopa-manta-heena-mantaraay krintanam.
Hridayantare Nirantaram Vasantamev Yoginaam,
Tameka-dantameva Tam, Vichintayaami Santatam. 5

नितान्तकान्त-दन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तराय-कृन्तनम्
हृदन्तरे निरन्तरम् वसन्तमेव योगिनाम्
तमेकदन्तमेव-तं विचिन्तयामि संततम्।5।

PhalaShruti:
MahaGanesha-Pancharatnam-aadarena Yo-anvaham,
Prajal-pati Prabhatake Hridi-smaran Ganeshwaram.
Arogataam-adoshataam Su-saasihi-teem Suputrataam,
Samaahitaa-ayurashta-bhootim-abhyu-paiti So chiraat. 

महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहम्
प्रजल्पति-प्रभातके हृदि-स्मरन् गणेश्वरं
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम्
समाहितायुर्-अष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात्।6।
 

इति श्री गणेशपंचरात्नम सम्पूर्णं

Ganesha Pancharatnam meaning in Hindi-

अर्थ- जो अपने हाथों में सदैव प्रसन्नतापूर्वक मोदक को धारण किये रहते हैं, जो सदा अपने साधकों (भक्तों) को मुक्ति प्रदान करते हैं, जिन्होंने चन्द्रमा को आभूषण के रूप में धारण किया है और जो सभी लोकों के रक्षक हैं, जो अनाथों के नाथ और गजासुर के संहारकर्ता हैं, जो तीव्र वेग से सभी अशुभों का नाश करते हैं उन विनायक को नमस्कार है. 1

जो घमंड से भरे लोगों के लिए भयंकर रूप धारण करते हैं, जो उगते हुए सूर्य की भांति चमकते हैं, जो देवों के द्वारा नमस्कृत और निर्जर (कभी वृद्ध न होने वाले) हैं, जो अपने शरणागतों की बाधाओं को दूर करते हैं, उन सुरेश्वर, निधीश्वर (समृद्धि के देव), गजेश्वर और गणेश्वर (गणों के राजा), महेश्वर की मैं शरण लेता हूँ. 2

जो सभी लोकों में शुभ हैं, जो बड़े-बड़े दैत्यों को दूर करते हैं, जिनका बड़ा उदर (पेट) समृद्धि का प्रतीक है और जिनका मुख अविनाशी प्रकृति को दर्शाता है, जो अपने भक्तों पर कृपा, क्षमा, आनंद और यश और बुद्धि की वर्षा करते हैं, उन विनायक के ओजस्वी रूप को मैं प्रणाम करता हूँ. 3

जो अपने शरणागतों की पीड़ा को दूर करते हैं, जिसकी प्राचीन काल से प्रशंसा हो रही है, जो भगवान् शिव (पुरारी) के पूर्वनन्दन (पुत्र) हैं, जो देवताओं के शत्रुओं के घमंड को चबा जाते हैं, जो प्रलय के समय प्रचंड शक्ति धारण करते हैं, जो अग्नि की शक्ति से विभूषित हैं, जिनके गालों (कपोलों) से कृपा की धारा बहती है उन आदिदेव श्री गणेश को मैं पूजता हूँ. 4

जिनका एकदन्त रूप भक्तों को प्रिय है, जो यम के संहारक (शिव) के पुत्र हैं, जिनका अनादि रूप अकल्पनीय है और जो भक्तों  के कष्टों को हर लेते हैं, जो योगियों के ह्रदय में निरंतर वास करते हैं, उन एकदन्त भगवान् का मैं ध्यान करता हूँ. 5

जो इस महागणेश पंचरत्न को भक्तिपूर्वक एवं भगवान् गणेश का ह्रदय में ध्यान करके पढ़ते हैं, उन्हें रोगों और दोषों से मुक्ति मिलती है और उन्हें गुणवान पत्नी और पुत्र की प्राप्ति होती है, वे लोग अष्ट ऐश्वर्य पाकर लम्बी आयु प्राप्त करते हैं. 6

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Wednesday, August 5, 2020

शिव रक्षा स्तोत्र- Shiva Raksha Stotram lyrics in Hindi

Lord shiva
शिव रक्षा स्तोत्र के रचयिता (Writer) याज्ञवल्क्य ऋषि हैं. भगवान नारायण ने याज्ञवल्क्य ऋषि के सपने में इस स्तोत्र का वर्णन किया था.

Shiva Raksha Stotra Lyrics in hindi-

सभी बुरी शक्तियों, रोगों, दुर्घटनाओं और दरिद्रता से रक्षा के लिए भगवान् शिव के इस रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
भगवान् शिव मृत्युंजय कहे जाते हैं, अर्थात जिसने मृत्यु को जीत लिया हो। अपने परिवार की सभी प्रकार के दुःख, दारिद्र, बीमारी और अपमृत्यु से रक्षा करने के लिए साधक को शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ (नित्य प्रतिदिन या केवल सोमवार को) करना चाहिए। यह स्तोत्र इस प्रकार है-

विनियोग-
ॐ अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमंत्रस्य याज्ञवल्क्यऋषिः, श्री सदाशिवो देवता, अनुष्टुपछन्दः श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिव रक्षा स्तोत्रजपे विनियोगः।

अर्थ- ॐ इस शिव रक्षा स्तोत्र मन्त्र के याज्ञवल्क्य ऋषि हैं श्रीसदाशिव देवता हैं अनुष्टुप छंद है, श्री सदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिव रक्षा स्तोत्र के जप का यह विनियोग है।

चरितम् देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारम् परमोदारम् चतुर्वर्गस्य साधनम् ।1।

देवों के देव महादेव का चरित (वर्णन) पवित्र-पावन है, अपार (जिसका अंत न हो) है, परम उदार है और धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष इन चारों वर्गों को सिद्ध करने वाला है।

गौरी विनायाकोपेतम् पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवम् ध्यात्वा दशभुजम् शिवरक्षां पठेन्नरः।2।

जो गौरी और विनायक के साथ हैं, त्रिनेत्रधारी और पंचमुखी शिव हैं, उन दशभुज का ध्यान करके शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

गंगाधरः शिरः पातु भालमर्धेन्दु शेखरः।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषणः ।3।

अपनी जटाओं में गंगा को धारण करने वाले मेरे मस्तक की रक्षा करें, अर्धचन्द्र धारण करने वाले मेरे माथे की रक्षा करें। कामदेव का ध्वंस (संहार) करने वाले मेरे नेत्रों की रक्षा करें, सर्प को आभूषण की तरह पहनने वाले मेरे कानों की रक्षा करें।

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शितिकन्धरः ।4।

त्रिपुरासुर का वध करने वाले मेरी नाक की रक्षा करें, जगत के स्वामी जगत्पति मेरे मुख की रक्षा करें। वाणी के देव वागीश्वर मेरी जिव्हा की और शितिकंधर ( नीले गले वाल) मेरी गर्दन की रक्षा करें।

श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।
भुजौ भूभार संहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।5।

श्री अर्थात सरस्वती जिनके कंठ में स्थित हैं वे मेरे कंठ की रक्षा करें, विश्व की धुरी को धारण करने वाले शिव मेरे कन्धों की रक्षा करें। [असुरों को मारकर] पृथ्वी के भार को कम करने वाले मेरी भुजाओं की रक्षा करें, पिनाक (धनुष) धारण करने वाले मेरे हाथों की रक्षा करें।

हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ।6।

शंकर जी मेरे ह्रदय की रक्षा करें, गिरिजापति मेरे जठर (पेट)  रक्षा करें। श्री मृत्युंजय मेरी नाभि की रक्षा करें और व्याघ्र (बाघ) के चर्म को पहनने वाले मेरी कमर की रक्षा करें।

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागत वत्सलः।
उरु महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ।7।

दीन-दुखियों और शरणागतों से प्रेम करने वाले मेरी हड्डियों  की रक्षा करें, महेश्वर मेरी जाँघों की रक्षा करें तथा जगदीश्वर मेरे घुटनों (जानुनों) की रक्षा करें।

जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ।8।

जगत के रचयिता जंघाओं की रक्षा करें, गणों के अधिपति मेरे गुल्फों (टखनों) की रक्षा करें, करुना के सागर मेरे पैरों की रक्षा करें और सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें।

एताम् शिवबलोपेताम् रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्।9।

जो सुकृती (धन्य) व्यक्ति शिवकीशक्ति से युक्त इस रक्षा [स्तोत्र] का पाठ करता है, वह सभी कामों (इच्छाओं) को भोग कर अंत में शिव से मिल जाता है (शिव के समीप हो जाता है। )

गृहभूत पिशाचाश्चाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूराद् आशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्।10।

तीनों लोकों में जितने भी ग्रह, भूत, पिशाच आदि विचरते हैं, वे सब शिव के नामों से मिली रक्षा से तत्काल दूर भाग जाते हैं।

अभयम् कर नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।11।

जो भी पार्वतीपति शिव के इस कवच को अपने कंठ में भक्ति के साथ धारण कर लेता है, तीनों लोक उसके वश में हो जाते हैं।

इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत् ।12।

श्री नारायण ने सपने में याज्ञवल्क्य ऋषि को इस शिवरक्षा [स्तोत्र] का जैसा उपदेश दिया, योगीन्द्र ने प्रातः उठकर वैसा ही इसे लिख दिया।

।इति श्री शिवरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम।

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Thursday, July 30, 2020

Durga Dwatrinsha NaamaMala Lyrics in hindi दुर्गा द्वात्रिंश नामावली

Maa durga
Devi Durga

यह स्तोत्र मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य से लिया गया है तथा इस लेख के कुछ भाग गीताप्रेस (गोरखपुर) की पुस्तक देवी दुर्गा सप्तशती (Learn More) से प्रेरित हैं, इस पुस्तक को अमेजोन से खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें - दुर्गा सप्तशती (मात्र 59 रूपए)

। अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला ।

दुर्गा दुर्गतिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी।

दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।
दुर्गमज्ञानदा, दुर्गदैत्यलोकदवानला ।।

दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ।।

दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गामार्थस्वरूपिणी।।

दुर्गमासुरसन्हंत्री दुर्गमायुधधारिणी।
दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी।।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।।

नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः।
पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः।। 
 
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हिंदी अर्थ-
एक समय कि बात है, ब्रम्हा आदि देवताओं ने पुष्प आदि विविध उपचारों से महेश्वरी दुर्गा का पूजन किया। इससे प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी कहा- 'देवताओं ! मैं पूजन से संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो, मैं तुम्हें दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करुँगी।' 

दुर्गा का यह वचन सुनकर देवता बोले - 'देवी ! हमारे शत्रु महिषासुर को,जो तीनों लोकों के लिए कंटक था, आपने मार डाला, इससे सम्पूर्ण जगत स्वस्थ एवं निर्भय हो गया। आपकी ही कृपा से हमें पुनः अपने अपने पद की प्राप्ति हुई। 

आप भक्तों के लिए कल्पवृक्ष हैं,  हम आपकी शरण में आये हैं। अतः अब हमारे मन में कुछ भी  अभिलाषा शेष नहीं है। हमे सब कुछ मिल गया; तथापि आपकी आज्ञा है, इसलिए हम जगत की रक्षा के लिए आपसे कुछ पूछना चाहते हैं। 

महेश्वरि!कौन सा ऐसा उपाय है, जिससे शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए जीव की रक्षा करती है।  देवेश्वरि! यह बात सर्वथा गोपनीय हो गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतावें।'

देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गादेवी ने कहा- 'देवगण! सुनो- यह रहस्य अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ है । मेरे बत्तीस नामों कि माला सब प्रकार की आपत्ति का विनाश करने वाली है । तीनों लोकों में इसके सामान दूसरी कोई स्तुति नहीं है।

 यह रहस्यरूप है। इसे बतलाती हूँ, सुनो- 
१- दुर्गा, २- दुर्गातिशमिनी, ३- दुर्गापद्विनिवारिणी, ४- दुर्गमच्छेदिनी, ५- दुर्गसाधिनी, ६- दुर्गनाशिनी, ७- दुर्गतोद्धारिणी, ८- दुर्गनिहंत्री, ९- दुर्गमापहा, १०- दुर्गमज्ञानदा, ११- दुर्गदैत्यलोकद्वानला, १२- दुर्गमा, १३- दुर्गमालोका, १४- दुर्गमात्मस्वरूपिणी, १५- दुर्गमार्गप्रदा, १६- दुर्गमविद्या, १७- दुर्गमाश्रिता, १८- दुर्गमज्ञानसंस्थाना, १९- दुर्गमध्यानभासिनी, २०- दुर्गमोहा, २१- दुर्गमगा, २२-दुर्गामार्थस्वरूपिणी, २३- दुर्गमासुरसन्हंत्री, २४- दुर्गमायुधधारिणी, २५- दुर्गमाङ्गी, २६- दुर्गमता, २७- दुर्गम्या, २८- दुर्गमेश्वरी, २९- दुर्गभीमा, ३०- दुर्गभामा, ३१- दुर्गभा, ३२- दुर्गदारिणी। 

जो मनुष्य मुझ दुर्गा कि इस नाममाला का पाठ करता है, वह निसंदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जायेगा। '

कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बतीस नामों के पाठ मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता है। इसमें तनिक भी संदेह के लिए स्थान नहीं हैं।

यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिए अथवा और किसी कठोर दंड के लिए आज्ञा  युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाये अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फँस जाये, तो इन बतीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ मात्र करने से वह संपूर्ण भयों से मुक्त हो जाता है। 

विपत्ति के समय इसके सामान भय नाशक उपाय दूसरा नहीं है। देवगण! इस नाममाला का पाठ करने वाले मनुष्यों को कभी कोई हनी नही होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को इसका उपदेश नहीं देना चाहिए। जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हज़ार, दस हज़ार अथवा लाख बार पाठ स्वयं करता या ब्राम्हणों से करता है, वह सब प्रकार कि आपतियों से मुक्त हो जाता है। 

सिद्ध अग्नि में मधुमिश्रित सफ़ेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता है। इस नाममाला का पुरश्चरण तीस हज़ार का है।

पुरश्चरणपूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा संपूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है। मेरी सुन्दर मिटटी कि अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आतों भुजाओं में क्रमशः गदा, खडग, त्रिशूल, बाण, धनुष,कमल, खेट(ढाल) और मुद्गर धारण करावे। 

मूर्ति के मस्तक में चन्द्रमा का चिन्ह हो, उसके तीन नेत्र हो, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषाशुर का वध कर रही हो, इस प्रकार कि प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार कि सामग्रियों से भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे।

मेरे उक्त नामों से लाल कनेर के फूल चढाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र जप करते हुए पुए से हवन करे। भांति-भांति के उत्तम पदार्थ भोग लगावे। इस प्रकार करने से मनुष्य असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता है। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता है, वह कभी विपत्ति में नहीं पड़ता। '

देवताओं से ऐसा कहकर जगदम्बा वहीं अंतर्ध्यान हो गयीं। दुर्गा जी के इस उपाख्यान को जो सुनते है, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती। समाप्त...  

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Tuesday, July 21, 2020

Dasavatara Stotram lyrics in Sanskrit दशावतार स्तोत्रं अर्थ सहित

Shri Vishnu

दशावतार स्तोत्रं हिंदी अर्थ सहित-

। अथ श्री दशावतार स्तोत्रम् ।
मीन अवतार-
प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम । विहितवहित्रचरित्रमखेदम् |
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ।1।

हे केशव! प्रलय के समय तुमने विशाल मछली का रूप धारण करके वेदों को एक नाव (जो बिना खेद के किसी भी वस्तु को पार ले जाती है) के समान सुरक्षा प्रदान की, हे जगदीश तुम्हारी जय हो।

कूर्म अवतार-
छितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति प्रष्ठे । धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे।
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे ।2।

हे केशव! आपकी पीठ पर मन्दराचल पर्वत स्थित है, जिसके कारण आपकी पीठ पर गोल निशान बने हुए हैं, इस कूर्म अवतार के रूप में हे जगदीश तुम्हारी जय हो।

वराह अवतार-
वसति दशनशिखरे धरणी अव लग्ना । शशिनि कलन्कलेव निमग्ना।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ।3।

हे केशव! पृथ्वी, जो समुद्र में डूब गयी थी, वह आपके दाँतों के ऊपर चंद्रमा पर लगे दाग की भांति स्थित है, शूकर अवतार के रूप में हे जगदीश तुम्हारी जय हो।

नृसिंह अवतार-
तव करकमलवरे नखमद्भुतशृंगम्। दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम् ।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ।4।

हे केशव! आपके कर कमलों के तीखे नाखून अनोखे हथियार हैं, जिनसे आपने हिरण्यकश्यप के शरीर को फाड़ दिया, हे जगदीश नरसिंह अवतार के रूप में आपकी जय हो।

वामन अवतार-
छल्यसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन । पदनखनीरजनितजनपावन।
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे ।5।

हे केशव! एक वामन का रूप धारण करके  वीर राजा बलि को पराजित किया, आपके पद नखों से सभी को पावन करने वाली गंगा निकलती है, वामन अवतार में हे जगदीश, तुम्हारी जय हो।

परशुराम अवतार-
क्षत्रिययरूधिरमये  जगदपगतपापम । सनपयसि पयसि शमितभवतापम ।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ।6।

हे केशव! तुमने अत्याचारी क्षत्रियों के रक्त से पृथ्वी को नहलाकर पाप मुक्त किया है और तुमने जगत की वेदना दूर की है, भृगुपति (परशुराम) अवतार के रूप में हे जगदीश, तुम्हारी जय हो।

राम अवतार-
वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम । दशमुखमौलिबलिं रमणीयम् ।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ।7।

हे केशव! धर्म की स्थापना हेतु तुमने दस दिग्पालों को रावण के 10 मुख वितरित (अर्पित) किये, श्री राम अवतार के रूप में हे जगदीश तुम्हारी जय हो।

बलराम अवतार-
वहसि वपुषे विशदे वसनं जलदाभम। हलहतिभीतिमिलितमुनाभम् ।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ।8।

हे केशव! आपने मेघों के रंग के समान नीले वस्त्र धारण किये हैं, ऐसा लगता है मानो यमुना आपके हल से भयभीत हो आपके वस्त्रों में छुपी हैं, हे जगदीश, हलधर (बलराम) अवतार में आपकी जय हो।

बुद्ध अवतार-
निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम । सदयह्रदयदर्शितपशुघातम्।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ।9।

हे केशव! यज्ञों में पशु बलि का निंदा करने वाले, सभी जीवों पर करुणा करने वाले दयालुह्रदय प्रभु, बुद्ध अवतार धारण करने वाले हे जगदीश तुम्हारी जय हो।

कल्कि अवतार-
मलेक्छनिवहनिधने कलयसि करवालम । धूमकेतुमिव किमपि करालम ।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ।10।

म्लेच्छों का विनाश करने के लिए भयंकर तलवार लिए हुए धूमकेतु के समान प्रतीत होने वाले हे केशव, कल्कि शरीर (अवतार) में हे जगदीश आपकी जय हो।

श्रिजय्देवकवेरिदमुदितमुदारम् । शृणु सुखदं शुभदं भवसारम ।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ।11।

दस रूपों में अवतार लेने वाले हे जगदीश! आप जयदेव द्वारा रचित यह सुखप्रद, शुभकारी, कल्याणप्रद स्तुति सुनें।
। इति श्री दशावतारस्तोत्रम् संपूर्णम् ।

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Friday, June 26, 2020

दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् Shree Durga Ashtottara Shatanama Stotram Lyrics

Devi Durga
श्री दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र (अष्टोत्तर शतनामावली) दुर्गा सप्तशती के अंतर्गत एक मन्त्र है, यह स्तोत्र देवी भगवती के 108 नामों का वर्णन करता है. भगवान् शिव ने इन 108 नामों की व्याख्या की है (इन नामों का अर्थ बताया है).

Benefits of 108 names of Durga- भगवान शिव कहते हैं कि जो इन नामों का पाठ करता है या जो इनका मात्र श्रवण कर लेता (सुन लेता) है, भगवती दुर्गा उस व्यक्ति पर प्रसन्न हो जाती हैं और उसका कल्याण करती हैं.

जो भी व्यक्ति देवी का निश्छल मन से ध्यान करके इस स्तोत्र के द्वारा पूजन करता है, वह निश्चय ही सिद्धि को प्राप्त होता है और उसे धन-धान्य, सभी पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं.

यहाँ दुर्गा देवी 108 नामों का हिंदी अर्थ सहित (lyrics) वर्णन किया गया है-


श्री दुर्गायै नमः

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्


ईश्वर उवाच

शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ।1।

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ।२।

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ।३।

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।४।

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ।५।

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनि ।६।

अमेयविक्रमा क्रूरा सुंदरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ।७।

ब्राम्ही माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुंडा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः।८।

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ।९।

निशुम्भशुम्भहननी  महिषासुरमर्दिनी।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ।१०।

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा।११।

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः।१२।

अप्रौढ़ा चैव प्रौढ़ा च वृद्धमाता बलप्रदा ।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।१३।

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ।१४।

शिवदूती कराली च अनंता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रम्हवादिनी ।१५।

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ।१६।

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।
चतुर्वर्गं तथा चांते लभेन्मुक्तिं च शास्वतीम ।१७।

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टाकम्।18।

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ।19।

गोरोचनालक्तकुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ।20।

भौमावस्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ।21।

इति श्री विश्वसारतन्त्रे दुर्ग्राष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्

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108 Names of Durga, Meaning-

शंकरजी पार्वती जी से कहते हैं-
श्लोक 1- कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनाम का वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण)- मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं.

श्लोक 2- ॐ सती, साध्वी, भवप्रीता (भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली), भवानी, भवमोचनी (संसार बंधन से मुक्त करने वाली), आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी.

श्लोक 3- पिनाकधारिणी (शिव का त्रिशूलधारण करने वाली), चित्रा, चंडघंटा (प्रचंड स्वर से घंटानाद करने वाली), महातपा (भारी तपस्या करने वाली), मन (मनन-शक्ति), बुद्धि (बोधशक्ति), अहंकारा (अहंता का आश्रय), चित्तरूपा, चिता, चिति (चेतना).

श्लोक 4- सर्वमंत्रमयी, सत्ता (सत्-स्वरूपा), सत्यानन्दस्वरूपिणी, अनंता (जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं), भाविनी (सबको उत्पन्न करने वाली), भाव्या (भावना और ध्यान करने योग्य), भव्य (कल्याणरूपा), अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं नहीं है), सदागति.

श्लोक 5- शाम्भवी (शिवप्रिया), देवमाता, चिंता, रत्नप्रिया, सर्वविद्या, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी

श्लोक 6- अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली), अनेकवर्णा (अनेक रंगों वाली), पाटला (लाल रंग वाली), पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपराधीना (रेशमी वस्त्र पहनने वाली), कमलमंजीर-रंजनी (मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसान रहने वाली)

श्लोक 7- अमेयविक्रमा (असीम पराक्रम वाली), क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर), सुंदरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता.

श्लोक 8- ब्राह्मी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी, पुरुषाकृतिः.

श्लोक 9- विमला, उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रेमा, सर्ववाहनवाहना.

श्लोक 10- निशुम्भ-शुम्भहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहन्त्री, चंडमुंडविनाशिनी.

श्लोक 11- सर्वासुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी.

श्लोक 12- अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति.

श्लोक 13- अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा, वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला.

श्लोक 14-  अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी.

श्लोक 15- शिवदूती, कराली, अनंता (विनाशरहिता), परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रम्हवादिनी.

श्लोक 16- देवी पार्वती ! जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है.

श्लोक 17- वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोडा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अंत में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है.

श्लोक 18- कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशतनाम का पाठ आरम्भ करे.

श्लोक 19- देवि! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है. राजा उसके दास हो जाते हैं. वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है.

श्लोक 20- गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु- इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यंत्र लिखकर जो विधिग्य पुरुष सदा उस यंत्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है.

श्लोक 21- भौमवती अमावस्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हो, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है.

इस प्रकार दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पूरा हुआ.
 
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